मेरे पति मेरे देवता (भाग - 79)
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मेरे पति मेरे देवता (भाग - 79)
श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं
श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी
प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967)
आख़िरी भेंट नहीं है
रूस के प्रधानमंत्री के निमन्त्रण पर रूस जाने का कार्यक्रम बना। देश से बाहर जाने का हमारा यह पहला अवसर था। हमें प्रसन्नता थी। प्रसन्नता इसलिए भी थी कि रूस जैसे महान देश को देखने का अवसर मिल रहा था। उन रूसी भाई-बहिनों को देखने का अवसर मिल रहा था, जिन्होंने आपस में ऊँच-नीच और छोटे-बड़े के भेदभाव को मिटा कर संसार के सामने एक नई मिसाल कायम की है। इतना ही नहीं, रूसी प्रधानमंत्री श्री कोसिगिन ने दुनिया के सभी देशों को भाईचारे के बंधन में बांधने का भी सराहनीय प्रयास किया था और अब भी कर रहे हैं।
विदेश में स्वागत -
रूस में शास्त्री जी का जैसा स्वागत-सत्कार हुआ, उस का वर्णन करना कठिन है। रूसी भाई-बहिनों के उस स्वागत में सबसे बड़ी विशेषता उन की आत्मीयता थी। तनिक भी बनावटीपन नहीं था। जैसे हम एक शरीर के दो अंग हों। प्रधानमंत्री श्री कोसिगिन की पत्नी की क्या प्रशंसा की जाए? जैसे बरसों के बिछड़े हुए दो प्राणी मिल गए हों। बराबर हमारे साथ बनी रहती थी। हमें सब कुछ दिखाती और बताती थी। उन चन्द दिनों में उन की सहृदयता और अपनत्व ने हम पर जो छाया डाली थी, वह आज भी मिटी नहीं है।
विदा होने के समय वे बोली - ‘यह आख़िरी भेंट नहीं है। हम लोग फिर मिलेंगे।’ और वे रोने लगी। हम भी रोती रही और बाद में जहाज़ में भी बड़ी देर तक बैठी रोती रही थी। पर दुर्भाग्य को क्या कहा जाए? हम लोगों की दोबारा भेंट नहीं हो सकी। श्रीमती कोसिगिन भी अब इस संसार में नहीं हैं।
क्रमशः
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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