मेरे पति मेरे देवता (भाग - 81)
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मेरे पति मेरे देवता (भाग - 81)
श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं
श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी
प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967)
देश रहना चाहिए
शास्त्री जी को प्रधानमंत्री का पद संभाले अभी बहुत समय नहीं हुआ था कि देश पर कोई नया संकट आने के आसार दृष्टिगोचर होने लगे। काश्मीर में घुसपैठियों की कार्यवाहियां बढ़ने लगी। छिपे वेश में वे काश्मीर के अन्दर तोड़-फोड़ करने लगे। जंगलों व पहाड़ों के अन्दर अपने हथियारों के अड्डे बनाने लगे। साथ ही जनता के बीच गुप्त रूप से मिथ्या प्रचार भी आरम्भ कर दिया।
पहले तो सरकार को वास्तविक जानकारी न हो सकी, पर जब घुसपैठियों की हरकतें ज़्यादा बढ़ी, तो सतर्कता और धर-पकड़ शुरू हुई। सुराग लगने पर मालूम हुआ कि पाकिस्तान इन घुसपैठियों के द्वारा काश्मीर में उथल-पुथल मचवा कर उसे हड़प लेने की तैयारी में हैं। बड़ा आश्चर्य हुआ! पाकिस्तान से ऐसी आशा नहीं की जा सकती थी। आपस में लड़ने से नुकसान के सिवाय लाभ भी क्या था? क्योंकि शास्त्री जी का कहना था कि लड़ाई से समस्याएं सुलझती नहीं, बल्कि और पैदा होती हैं।
एक-दूसरे से लड़ने की बजाय हम ग़रीबी, बीमारी व अज्ञान से लड़ें। सामान्य लोग यही चाहते हैं कि उन को शान्ति से तरक्की करने का मौका मिले। शास्त्री जी बड़ी चिन्ता में थे। उन्हें लड़ाई की तो कम, दोनों देशों और देशवासियों की बरबादी की चिन्ता अधिक थी। उन्होंने पत्र-व्यवहार किए, पूछताछ की और भले-बुरे परिणामों की ओर इशारा भी किया, पर उनके इन प्रयत्नों का कोई परिणाम न मिल सका। उल्टे घुसपैठियों की हरकतें बढ़ती ही गई।
वे गाँवों को लूटने व जलाने लगे। निरीह जनता को सताने लगे व जगह-जगह भारतीय सैनिकों से ख़ुल कर मुकाबला भी करने लगे। फलस्वरूप अपने देशवासियों के बीच इस की जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई, जो स्वाभाविक ही थी। अपना देश किसको प्यारा नहीं होता? शास्त्री जी फिर भी शांत थे। हाँ! थोड़े सतर्क अवश्य हो गए थे। उन्होंने घुसपैठियों को पकड़ने और उनकी योजना को तहस-नहस करने के लिए बड़े पैमाने पर काम शुरू कर दिया। देखते-देखते हज़ार-दो हज़ार नहीं, बल्कि दसियों हज़ारों की संख्या में घुसपैठिये पकड़ लिए गए। तमाम पाकिस्तानी हथियारों के भण्डार मिले, सो अलग।
क्रमशः
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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