मेरे पति मेरे देवता (भाग - 82)
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मेरे पति मेरे देवता (भाग - 82)
श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं
श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी
प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967)
आए दिन पैसों की ज़रूरत
जीवन के प्रारम्भिक दिनों में जब हर तरह की कठिनाइयों से जूझते हुए आगे को बढ़ना था, तब पैसा जोड़ने या इस तरह की कोई बात सोचने का सवाल ही नहीं उठता था, पर जब से शास्त्री जी सरकार में आए, तब से हमारी यह इच्छा अवश्य रहती थी कि अगर कुछ पैसे जोड़ पाती, तो बच्चों की पढ़ाई-लिखाई या शादी-ब्याह में होने वाले ख़र्चों की एक बड़ी परेशानी से जान बची रहती, लेकिन अपनी इस इच्छा की पूर्ति भरसक प्रयत्न करके भी कभी न कर सकी थी। आए दिन शास्त्री जी को कभी किसी की मुसीबत में तो कभी किसी की आर्थिक कठिनाइयों को सुलझाने के लिए पैसे देने ही होते थे।
इसके अलावा ग़रीब विद्यार्थियों के प्रति तो उनका एक विशेष आकर्षण था। उनकी जानकारी में आने भर की देर होती थी, फिर तो उसके लिए जितना जो कुछ कर सकते थे, वे करते थे। फ़ल यह होता था कि इधर-उधर से कमी-बेशी करके जो भी इकट्ठा करती, वह सब इन कामों में लग जाता था। यद्यपि हमने शास्त्री जी से कह रखा था कि अगर उनसे कोई भी बात हम छिपा सकती हैं तो सिर्फ़ पैसे की बात हो सकती है। फिर भी जब वे किसी के लिए पैसे मांगते, तो पहले 2 - 4 बार हम ना-नुकुर ज़रूर करती, पर बाद में दे देती थी।
शास्त्री जी का हमसे पैसे मांगने का तरीका भी अजीब था, जो पहले ही जानकारी में आ जाता था। जिस दिन वे एक हाथ में टोपी और दूसरे हाथ से सिर खुजलाते हुए अन्दर आते, हम भांप जाती कि उन्हें पैसों की आवश्यकता पड़ गई है और हम उसी क्षण कुसुम या सुमन से, जो पास में होती, धीरे से कह देती - देखो! अब तुम्हारे बाबूजी रुपए मांगने वाले हैं। बात सच ही निकलती। शास्त्री जी पहले तो उस सम्बन्धित व्यक्ति की कठिनाइयों और तकलीफ़ों का पूरा हाल बताते, तत्पश्चात् हमसे रुपयों के लिए कहते। हमारे ना-नू करने पर वे मुस्कुरा कर कहते - ‘देखिए! देखिए!! किसी साढ़ी की परत में रखे होंगे। आप के पैसे से किसी की तकलीफ़ दूर होगी, यह कितनी बड़ी बात है!’ अन्त में हमें रुपए निकालने के लिए विवश हो जाना पड़ता था।
क्रमशः
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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