मेरे पति मेरे देवता (भाग - 86)
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मेरे पति मेरे देवता (भाग - 86)
श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं
श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी
प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967)
आदमियों की दोस्ती
इलाहाबाद से लौटने पर शास्त्री जी का बर्मा जाने का कार्यक्रम बना। वहाँ के प्रधानमंत्री श्री ने विन का निमंत्रण था। श्री ने विन के नेतृत्व ने बर्मा को एक नया रूप दिया है, जो हर तरह से सराहनीय है। शास्त्री जी के संग हम भी बर्मा गई। हमारी और श्रीमती ने विन की इतनी दोस्ती हो गई कि हम बता नहीं सकती। वे बड़ी मिलनसार व साफ़ हृदय की महिला हैं।
एक दिन जब जनरल ने विन, श्रीमती ने विन, हम और शास्त्री जी बैठे चाय पी रहे थे, तो हमने कहा - ‘एक हम लोग हैं कि मिलते ही दोस्ती हो गई और एक आप लोग हैं कि इतनी बातचीत के बाद भी किसी नतीजे पर नहीं पहुँच सके हैं।’
शास्त्री जी मुस्कुरा कर बोले - ‘सो तो ठीक है, लेकिन यह क्यों भूलती हैं कि जितनी जल्दी आप लोगों के बीच दोस्ती कायम होती है, उतनी ही जल्दी टूटती भी तो है। इसके अलावा आप सब की दोस्ती ख़त्म होने पर जब झगड़ा शुरू होता है, तो ज़िदगी भर चलता रहता है, लेकिन हम आदमियों के अन्दर ऐसी ओछी मनोवृत्ति नहीं है। हम अपने झगड़ों के दौरान भी बातचीत करके एक हल निकाल लेते हैं। है न सही बात!’
श्री ने विन और हम दोनों हंसने लगी।
क्रमशः
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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