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Showing posts from August, 2024

आहार का प्रभाव

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 आहार का प्रभाव Image by 신희 이 from Pixabay गलत आहार का गलत प्रभाव पड़ता है। किसी नगर में एक भिखारिन एक गृहस्थी के यहाँ नित्य भीख मांगने जाती थी। गृहिणी नित्य ही उसे एक मुठ्ठी भात दे दिया करती थी। यह बुढ़िया का दैनिक कार्य था और महीनों से नहीं, कई वर्षों से यह कार्य बिना रुकावट के चल रहा था। एक दिन भिखारिन चावलों की भीख खाकर ज्यों ही द्वार से मुड़ी, गली में गृहिणी का ढाई वर्ष का बालक खेलता हुआ दिखाई दिया। बालक के गले में एक सोने की जंजीर थी। बुढ़िया की नीयत बदलते देर न लगी। इधर-उधर दृष्टि दौड़ाई, गली में कोई और दिखाई नहीं पड़ा। बुढ़िया ने बालक के गले से जंजीर ले ली और चलती बनी। घर पहुँची, अपनी बाकी भीख यथास्थान रखी और बैठ गई। सोचने लगी, “जंजीर को सुनार के पास ले जाऊंगी और इसे बेचकर पैसे खरे करूँगी।” यह सोचकर जंजीर एक कोने में एक ईंट के नीचे रख दी। भोजन बनाकर और खा पीकर सो गई। प्रातःकाल उठी, शौचादि से निवृत्त हुई तो जंजीर के सम्बन्ध में जो विचार सुनार के पास ले जाकर धन राशि बटोरने का आया था, उसमें तुरंत परिवर्तन आ गया। बुढ़िया के मन में बड़ा क्षोभ पैदा हो गया। सोचने लगी - “यह...

बीता हुआ कल

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 बीता हुआ कल Image by Teuvo Uusitalo from Pixabay एक संत एक गाँव में उपदेश दे रहे थे। उन्होंने कहा कि “हर किसी को धरती माता की तरह सहनशील तथा क्षमाशील होना चाहिए। क्रोध ऐसी आग है जिसमें क्रोध करने वाला दूसरों को भी जलाएगा तथा खुद भी जल जाएगा।” सभा में सभी शान्ति से संत की वाणी सुन रहे थे, लेकिन वहाँ स्वभाव से ही अतिक्रोधी एक ऐसा व्यक्ति भी बैठा हुआ था, जिसे ये सारी बातें बेतुकी लग रही थी। वह कुछ देर ये सब सुनता रहा, फिर अचानक ही आग-बबूला होकर बोलने लगा, “तुम पाखंडी हो। बड़ी-बड़ी बातें करना यही तुम्हारा काम है। तुम लोगों को भ्रमित कर रहे हो। तुम्हारी ये बातें आज के समय में कोई मायने नहीं रखती।” ऐसे कई कटु वचनों को सुनकर भी संत शांत रहे। उसकी बातों से न तो वे दुःखी हुए, न ही कोई प्रतिक्रिया की। यह देखकर वह व्यक्ति और भी क्रोधित हो गया और संत के मुंह पर थूक कर वहाँ से चला गया। अगले दिन जब उस व्यक्ति का क्रोध शांत हुआ, तो वह अपने बुरे व्यवहार के कारण पछतावे की आग में जलने लगा और वह उन्हें ढूंढते हुए उसी स्थान पर पहुँचा, पर संत कहाँ मिलते? वे तो अपने शिष्यों के साथ पास वा...

दो अनमोल रत्न

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 दो अनमोल रत्न Image by TheUjulala from Pixabay एक साधु घाट किनारे अपना डेरा डाले हुए था। वहाँ वह धुनी रमा कर दिन भर बैठा रहता और बीच-बीच में ऊँची आवाज़ में चिल्लाता, “जो चाहोगे सो पाओगे।” उस रास्ते से गुजरने वाले लोग उसे पागल समझते थे। वे उसकी बात सुनकर अनुसना कर देते और जो सुनते, वे उस पर हँसते थे। एक दिन एक बेरोजगार युवक उस रास्ते से गुजर रहा था। साधु की चिल्लाने की आवाज़ उसके कानों में भी पड़ी - “जो चाहोगे सो पाओगे। जो चाहोगे सो पाओगे।” ये वाक्य सुनकर वह युवक साधु के पास आ गया और उससे पूछने लगा, “बाबा! आप बहुत देर से ‘जो चाहोगे सो पाओगे’ चिल्ला रहे हो। क्या आप सच में मुझे वह दे सकते हो, जो मैं पाना चाहता हूँ?” साधु बोला, “हाँ बेटा, लेकिन पहले तुम मुझे ये बताओ कि तुम पाना क्या चाहते हो?” “बाबा! मैं चाहता हूँ कि एक दिन मैं हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बनूँ। क्या आप मेरी ये इच्छा पूरी कर सकते हैं?”, युवक बोला। “बिल्कुल, बेटा! मैं तुम्हें एक हीरा और एक मोती देता हूँ, उससे तुम जितने चाहे हीरे-मोती बना लेना”, साधु बोला। साधु की बात सुनकर युवक की आँखों में आशा की ज्योति चम...

मनुष्य योनि का भोग

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मनुष्य योनि का भोग Image by Ralph from Pixabay बहुत ही प्रेरणात्मक। एक दरिद्र ब्राह्मण यात्रा करते-करते किसी नगर से गुजर रहा था। बड़े-बड़े महल एवं अट्टालिकाओं को देखकर ब्राह्मण भिक्षा मांगने गया, किन्तु उस नगर में किसी ने भी उसे दो मुट्ठी अन्न नहीं दिया। आखिर दोपहर हो गयी, तो ब्राह्मण दुःखी होकर अपने भाग्य को कोसता हुआ जा रहा था, सोच रहा था - “कैसा मेरा दुर्भाग्य है! इतने बड़े नगर में मुझे खाने के लिए दो मुट्ठी अन्न तक नहीं मिला? रोटी बना कर खाने के लिए दो मुट्ठी आटा तक नहीं मिला?” इतने में एक सिद्ध संत की निगाह उस ब्राह्मण पर पड़ी। उन्होंने ब्राह्मण की बड़बड़ाहट सुन ली। वे बहुत पहुँचे हुए संत थे। उन्होंने कहा - “हे दरिद्र ब्राह्मण! तुम मनुष्य से भिक्षा मांगो, पशु क्या जानें भिक्षा देना?” यह सुनकर ब्राह्मण दंग रह गया और कहने लगा - “हे महात्मन्! आप क्या कह रहे हैं? बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं में रहने वाले मनुष्यों से ही मैंने भिक्षा मांगी है।” महात्मा बोले - “नहीं ब्राह्मण! मनुष्य शरीर में दिखने वाले वे लोग भीतर से मनुष्य नहीं हैं। अभी भी वे पिछले जन्म के हिसाब से ही जी रहे हैं...

पिता

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 पिता एक अखबार वाला प्रातःकाल लगभग 5 बजे, जिस समय वह अख़बार देने आता था, उस समय मैं उसको अपने मकान की गैलरी में टहलता हुआ मिल जाता था। अतः वह मेरे आवास के मुख्य द्वार के सामने चलती साइकिल से निकलते हुए मेरे आवास में अख़बार फेंकता और मुझको ‘नमस्ते बाबू जी’ वाक्य से अभिवादन करता हुआ फर्राटे से आगे बढ़ जाता था। क्रमशः समय बीतने के साथ मेरे सोकर उठने का समय बदल कर प्रातः 7:00 बजे हो गया। जब कई दिनों तक मैं उसको प्रातः टहलते नहीं दिखा, तो एक रविवार को प्रातः लगभग 9:00 बजे वह मेरा कुशल-क्षेम लेने मेरे आवास पर आ गया। जब उसको ज्ञात हुआ कि घर में सब कुशल-मंगल है, मैं बस यूँ ही देर से उठने लगा था, वह बड़े सविनय भाव से हाथ जोड़ कर बोला, “बाबू जी। एक बात कहूँ?” मैंने कहा - “बोलो।” वह बोला - “आप सुबह तड़के सोकर जगने की अपनी इतनी अच्छी आदत को क्यों बदल रहे हैं? आप के लिए ही मैं सुबह तड़के विधान सभा मार्ग से अख़बार उठा कर और फिर बहुत तेज़ी से साइकिल चला कर आप तक अपना पहला अख़बार देने आता हूँ, सोचता हूँ कि आप प्रतीक्षा कर रहे होंगे।” मैने विस्मय से पूछा - “तो आप विधान सभा मार्ग से अखबार ले...