निवाला

निवाला पिछली रात बड़ी बेचैनी से कटी....बमुश्किल सुबह एक रोटी खाकर घर से अपनी दुकान के लिए निकला..... आज किसी के पेट पर पहली बार लात मारने जा रहा हूं, यह बात अंदर ही अंदर कचोट रही है.... जिंदगी में यही फ़लसफ़ा रहा मेरा .... अपने आस-पास किसी को रोटी के लिए तरसना न पड़े..... पर इस विकट काल में अपने पेट पर ही आन पड़ी है... दो साल पहले ही अपनी सारी जमा पूंजी लगाकर कपड़े का शोरूम खोला था, मगर दुकान के सामान की बिक्री, अब आधी हो गई है। अपनी कपड़े की दुकान में दो लड़कों और दो लड़कियों को रखा है मैंने ग्राहकों को कपड़े दिखाने के लिए... लेडीज डिपार्टमेंट की दोनों लड़कियों को निकाल नहीं सकता... एक तो कपड़ो की बिक्री उन्हीं की ज्यादा है, दूसरे वे दोनों बहुत ग़रीब हैं। दो लड़कों में से एक पुराना है और वह घर में इकलौता कमाने वाला है। जो नया वाला लड़का है दीपक....मैंने विचार उसी पर किया है। शायद उसका एक भाई भी है, जो अच्छी जगह नौकरी करता है और वह खुद, तेजतर्रार और हँसमुख भी है। उसे कहीं और भी काम मिल सकता है... पिछले सात महीनों में....मैं बिलकुल टूट चुका हूं। स्थिति को देखते हुए एक वर्कर कम करना मे...