आ अब लौट चलें
आ अब लौट चलें
इससे पहले कि देर हो जाये...इससे पहले कि सब किया धरा निरर्थक हो जाये..“
लौटना क्यों है?
लौटना कहाँ है?
लौटना कैसे है?
इसे जानने, समझने एवं लौटने का निर्णय लेने के लिए आइये! टॉलस्टाय की मशहूर कहानी एक बार फिर से पढ़ते हैं।... आज पुनः एक बार फिर आपके साथ हम इस कहानी को साझा कर रहे हैं :-
“लौटना कभी आसान नहीं होता“
एक आदमी राजा के पास गया और कहा कि वह बहुत ग़रीब है, उसके पास कुछ भी नहीं है, उसे मदद चाहिए...राजा दयालु था।...उसने पूछा कि “क्या मदद चाहिए...?“
आदमी ने कहा.. “थोड़ा-सा भूखंड...“
राजा ने कहा, “कल सुबह सूर्योदय के समय तुम यहां आना...खाली ज़मीन पर तुम दौड़ लगाना। जितनी दूर तक दौड़ पाओगे, वह पूरा भूखंड तुम्हारा। परंतु ध्यान रहे,....जहां से तुम दौड़ना शुरू करोगे, सूर्यास्त तक तुम्हें वहीं लौट आना होगा, जितना भूखंड नापा, सब तुम्हारा।... अन्यथा तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा...!“
”यह भी याद रहे कि भूखंड की भूख जीवन से कभी मूल्यवान नहीं होती। जीवन है, तो भूखण्ड की कीमत है, जीवन नहीं, तो वह भूखण्ड भी किसी काम का नहीं।“
ग़रीब आदमी खुश हो गया...
सुबह हुई...
सूर्योदय के साथ ही वह आदमी दौड़ने लगा...
आदमी दौड़ता रहा...दौड़ता रहा...सूरज सिर पर चढ़ आया था।...पर आदमी का दौड़ना नहीं रुका था।...वो हांफ रहा था, पर रुका नहीं था।...थोड़ा और बस! एक बार की मेहनत है।...फिर पूरी ज़िंदगी आराम ही आराम...शाम होने लगी थी...आदमी को याद आया, अरे! लौटना भी तो है, नहीं तो फिर कुछ नहीं मिलेगा...
उसने देखा, वह काफी दूर चला आया था।...अब उसे लौटना था।...पर कैसे लौटता...? सूरज पश्चिम की ओर मुड़ चुका था।...आदमी ने पूरा दम लगाया...
वह लौट सकता था।...पर समय तेजी से बीत रहा था।...थोड़ी ताकत और लगानी होगी...वह पूरी गति से वापिस दौड़ने लगा...पर अब दौड़ा नहीं जा रहा था।...वह थक कर गिर गया......और उसके प्राण वहीं निकल गए..!
राजा यह सब देख रहा था।।...
अपने सहयोगियों के साथ राजा वहां गया, जहां आदमी ज़मीन पर गिरा हुआ था।।...
राजा ने उसे गौर से देखा...
फिर सिर्फ़ इतना कहा...
“इसे सिर्फ दो गज़ ज़मीं की दरकार थी...बेचारा नाहक ही इतना दौड़ रहा था...! “
आदमी को समय पर लौटना था...पर लौट नहीं पाया...
वह लौट गया वहां, जहां से कोई लौट कर नहीं आता। न ही लौटकर, किसी ने किसी को कुछ भी बताया कि वह कहाँ चला गया है।
मृत्यु जीवन का अंतिम सत्य है! पूर्ण विराम........!! चिर निद्रा.......!!!
देह छूटी तो आत्मा परमात्मा में विलीन हो जाएगी या फिर पुनः जन्म मरण के चक्कर काटने लगेगी...
अब ज़रा उस आदमी की जगह हम अपने आपको रख कर कल्पना करें। कही हम भी तो वही भारी भूल नहीं कर रहे, जो उसने की...
हमें अपनी चाहतों की सीमा का पता नहीं होता...
हमारी ज़रूरतें तो सीमित होती हैं, पर इच्छाएँ अनंत...
अपनी चाहतों को पूरा करने के मोह में हम लौटने की तैयारी ही नहीं करते...अगर कभी करते भी हैं, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
फिर हमारे पास कुछ भी नहीं बचता। न पैसा, न शरीर का स्वास्थ्य, न मानसिक संतुलन.....।
अतः आज अपनी डायरी-पैन उठायें और कुछ प्रश्न एवं उनके उत्तर अनिवार्य रूप से लिखें...
मैं जीवन की दौड़ में सम्मलित हुवा था, आज तक कहाँ पहुँचा?
आखिर मुझे जाना कहाँ है और कब तक वापिस पहुँचना है?
यदि इसी तरह दौड़ता रहा, तो कहाँ और कब तक पहुँच पाऊंगा?
हम सभी दौड़ रहे हैं...बिना ये समझे कि सूरज भी अपने समय पर लौट जाता है।...
सच यह है कि “जो लौटना जानते हैं, वही जीना भी जानते हैं...“
पर लौटना इतना भी आसान नहीं होता...
हमें उस ग़रीब आदमी से सहानुभूति होती है कि काश! टॉलस्टाय की कहानी का वह पात्र समय से लौट पाता...!
कहीं वह पात्र मैं तो नही हूँ?
हम सदा के लिए इस जन्म में नहीं रहने वाले! हमसे पहले अरबों हुए थे..., हो रहे हैं...और होगें...!
आखिर हम कितने महान लोगों को जानते हैं ?
कितनों को हम याद रखते हैं?
अगर एक और केवल एक परमपिता परमात्मा याद रहे, वही पर्याप्त है! उससे ही हमारा जन्म सफल हो जाएगा!
“मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि हम सब समय पर वहाँ लौट पाएं, जहाँ से हम चले थे...! लौटने का विवेक, सामर्थ्य एवं निर्णय की क्षमता हम सबको मिले...सबका मंगल होय..!!!“
”जन्म से लेकर मरण तक, दौड़ता है आदमी।
दौड़ते ही दौड़ते दम तोड़ता है आदमी।
एक रोटी, दो लंगोटी, तीन गज़ कच्ची ज़मीन,
तीन चीज़ें ज़िन्दगी भर जोड़ता है आदमी।।“
यदि कर सकें तो लोगों पर तीन एहसान अवश्य कीजिएः
1.फायदा नही पहुंचा सकते तो नुकसान भी न पहुंचाए।
2.खुशी नहीं दे सकते तो दुःख भी न पहुंचाए।
3.तारीफ़ नहीं कर सकते, तो बुराई भी न करें।
सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, वही पर्याप्त है।
सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
विनम्र निवेदन
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धन्यवाद।
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