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Showing posts from September, 2021

संतान के लिए विरासत

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 संतान के लिए विरासत Image by Jörg Möller from Pixabay मृत्यु के समय टॉम स्मिथ ने अपने बच्चों को बुलाया, और अपने पद चिह्नों पर चलने की सलाह दी, ताकि उनको अपने हर कार्य में मानसिक शाँति मिले। उसकी बेटी सारा ने कहा - डैडी! यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आप अपने बैंक में एक पैसा भी छोड़े बिना मर रहे हैं। यह घर भी जिसमें हम रहते हैं, किराये का है। Sorry . ... मैं आपका अनुसरण नहीं कर सकती। कुछ क्षण बाद उसके पिता ने अपने प्राण त्याग दिये। तीन साल बाद सारा एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में इंटरव्यू देने गई। इंटरव्यू में कमेटी के चेयरमैन को सारा ने उत्तर दिया - मैं सारा स्मिथ हूँ। मेरे पिता टॉम स्मिथ अब नहीं रहे। चेयरमैन, कमेटी के अन्य सदस्यों की ओर घूमकर बोले - यह आदमी स्मिथ वह था, जिसने प्रशासकों के संस्थान में मेरे सदस्यता फार्म पर हस्ताक्षर किये थे, और उसकी सिफारिश से ही मैं वह स्थान पा सका हूँ, जहाँ मैं आज हूँ। उसने यह सब, कुछ भी बदले में लिये बिना किया था। फिर वे सारा की ओर मुड़े, मुझे तुमसे कोई सवाल नहीं पूछना। तुम स्वयं को इस पद पर चुना हुआ मान लो। कल आना। तुम्हारा नियुक्ति पत्र...

शर्त

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 शर्त Image by Peter Kraayvanger from Pixabay महान् लेखक टालस्टाय की एक कहानी है - “शर्त” इस कहानी में दो मित्रों में आपस मे शर्त लगती है कि यदि उसके मित्र ने 1 माह एकांत में बिना किसी से मिले, बिना बातचीत किये एक कमरे में बिता दिए तो उसे वह 10 लाख नकद देगा। इस बीच यदि वो शर्त पूरी नहीं करता तो वो हार जाएगा। पहला मित्र ये शर्त स्वीकार कर लेता है। उसे दूर एक खाली मकान में बंद करके रख दिया जाता है। बस दो जून का भोजन और कुछ किताबें उसे दी गई। उसने जब वहां अकेले रहना शुरू किया तो 1 दिन, 2 दिन किताबों से मन बहल गया फिर वह खीझने लगा। उसे बताया गया था कि थोड़ा भी बर्दाश्त से बाहर हो तो वह घण्टी बजा कर संकेत दे सकता है और उसे वहां से निकाल लिया जाएगा। जैसे-जैसे दिन बीतने लगे, उसे एक-एक घण्टा युगों के समान लगने लगा। वह चीखता-चिल्लाता लेकिन शर्त का ख़्याल करके बाहर से किसी को नही बुलाता। वह अपने बाल नोचता, रोता, गालियां देता, तड़फ जाता। मतलब अकेलेपन की पीड़ा उसे भयानक लगने लगी पर वह शर्त की याद कर अपने को रोक लेता। कुछ दिन और बीते तो धीरे-धीरे उसके भीतर एक अजीब-सी शांति ...

वास्तु शास्त्र

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 वास्तु शास्त्र Image by Couleur from Pixabay सम्पत सिंह ने व्यापार में अच्छे पैसे कमाने के बाद फनवर्ल्ड के पास एक पाँच बीघा जमीन खरीदी, जिस पर एक दो मंजिला सुन्दर-सा घर और चारों तरफ पेड़, पौधे और हरियाली रहने दी। उसमें सम्पत ने एक छोटा सा स्विमिंग पूल बनाया। स्विमिंग पूल के पास एक पचास-साठ साल पुराना आम का पेड़ था। उसको सम्पत ने जैसा था, वैसे ही रहने दिया। दरअसल सम्पत सिंह ने ये पाँच बीघे का फार्म हाउस इस आम के पेड़ के कारण ही खरीदा था, क्योंकि उसकी बीवी को आम बहुत पसंद थे। जब सम्पत ने इस फार्म हाउस को खरीदा और उसका रैनोवेशन करवा रहा था तो उसके बहुत से मित्रों ने उसे किसी वास्तु शास्त्र वाले से सलाह लेने को कहा। हालांकि सम्पत सिंह को वास्तु शास्त्र पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं था, लेकिन दोस्तों का आग्रह था तो उसने शहर के जाने माने वास्तु शास्त्री मनु शर्मा को अपने फार्म हाउस ले जाना तय किया। मनु शर्मा विश्व प्रसिद्ध चालीस साल के तजुर्बा वाला वास्तु शास्त्री था। श्रीराम एक्सिलैंसी में खाना खाने के बाद सम्पत और मनु शर्मा फनवर्ल्ड की तरफ अपनी कार में जाने लगे। सम्पत सिंह...

सिमरन

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 सिमरन Image by Peter Dargatz from Pixabay जिस-जिस भाव को सिमरते हुए व्यक्ति अपनी देह त्याग करता है, वह उसी-उसी भाव को प्राप्त हुआ करता है। (श्रीमद्भगवद्गीता जी) सिख सम्प्रदाय के दसवें गुरु श्री गोविंद सिंह जी के समय एक राष्ट्र भक्त, राम भक्त हुए हैं वंदा जी! इन्होंने राम-राम जपते हुए, परमेश्वर का सिमरन करते हुए देश की सेवा की है, राष्ट्र की सेवा की है और समाज की सेवा की है। एकदा गुरु गोविंदसिंह जी इनके आश्रम में पहुँचे। औपचारिकताओं के उपरान्त गोविंद सिंह जी ने पूछा - वंदा! तेरे गुरु कौन हैं ? वंदा ने कहा - सच्चे पातशाह! मेरे गुरु का नाम तो अगमनाथ है। कहां है वह ? क्या मुझे उनसे मिलवाओगे नहीं ? वंदा ने गंभीर भाव से कहा - वे तो शरीर छोड़ चुके हैं महाराज! इस वक्त परमधाम में बैकुंठ में कहीं होंगे। यह सुनकर गुरु गोविंद सिंह जी मन्द-मन्द मुस्कुराने लगे पर उस मुस्कान में व्यंग्य भी था। वंदे ने उसे पहचाना और पूछा - क्या बात है सच्चे पातशाह! आप मुस्कुरा तो रहे हैं लेकिन आपकी मुस्कान में व्यंग्य है। इसलिये वंदा! तेरा गुरु इस आश्रम से बाहर गया ही नहीं है, यहीं है। क्या अर्थ...

निष्ठा पूर्वक कर्म

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 निष्ठा पूर्वक कर्म Image by Adina Voicu from Pixabay कौशिक नामक एक ब्राह्मण बड़ा तपस्वी था। तप के प्रभाव से उसमें बहुत आत्मबल आ गया था। एक दिन वह वृक्ष के नीचे बैठा हुआ था कि ऊपर बैठी हुई चिड़िया ने उस पर बीट कर दी। कौशिक को क्रोध आ गया। लाल नेत्र करके ऊपर को देखा तो तेज के प्रभाव से चिड़िया जल कर भस्म हो गई। ब्राह्मण को अपने बल पर गर्व हो गया। दूसरे दिन वह एक सद्-गृहस्थ के यहाँ भिक्षा माँगने गया। गृहस्वामिनी पति को भोजन परोसने में लगी थी। उसने कहा, “भगवन्! थोड़ी देर ठहरो अभी आपको भिक्षा दूँगी।” इस पर ब्राह्मण को क्रोध आया कि मुझ जैसे तपस्वी की उपेक्षा करके यह पति-सेवा को अधिक महत्व दे रही है। गृहस्वामिनी ने दिव्य दृष्टि से सब बात जान ली। उसने ब्राह्मण से कहा, “क्रोध न कीजिए मैं चिड़िया नहीं हूँ। अपना नियत कर्तव्य पूरा करने पर आपकी सेवा करूँगी।” ब्राह्मण क्रोध करना तो भूल गया, उसे यह आश्चर्य हुआ कि चिड़िया वाली बात इसे कैसे मालूम हुई ? ब्राह्मणी ने इसे पति सेवा का फल बताया और कहा कि इस संबंध में अधिक जानना हो तो मिथिलापुरी में तुलाधार वैश्य के पास जाइए। वे आपको अध...