शर्त
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शर्त
Image by Peter Kraayvanger from Pixabay
महान् लेखक टालस्टाय की एक कहानी है - “शर्त”
इस कहानी में दो मित्रों में आपस मे शर्त लगती है कि यदि उसके मित्र ने 1 माह एकांत में बिना किसी से मिले, बिना बातचीत किये एक कमरे में बिता दिए तो उसे वह 10 लाख नकद देगा। इस बीच यदि वो शर्त पूरी नहीं करता तो वो हार जाएगा।
पहला मित्र ये शर्त स्वीकार कर लेता है। उसे दूर एक खाली मकान में बंद करके रख दिया जाता है। बस दो जून का भोजन और कुछ किताबें उसे दी गई।
उसने जब वहां अकेले रहना शुरू किया तो 1 दिन, 2 दिन किताबों से मन बहल गया फिर वह खीझने लगा। उसे बताया गया था कि थोड़ा भी बर्दाश्त से बाहर हो तो वह घण्टी बजा कर संकेत दे सकता है और उसे वहां से निकाल लिया जाएगा।
जैसे-जैसे दिन बीतने लगे, उसे एक-एक घण्टा युगों के समान लगने लगा। वह चीखता-चिल्लाता लेकिन शर्त का ख़्याल करके बाहर से किसी को नही बुलाता। वह अपने बाल नोचता, रोता, गालियां देता, तड़फ जाता। मतलब अकेलेपन की पीड़ा उसे भयानक लगने लगी पर वह शर्त की याद कर अपने को रोक लेता।
कुछ दिन और बीते तो धीरे-धीरे उसके भीतर एक अजीब-सी शांति घटित होने लगी। अब उसे किसी की आवश्यकता का अनुभव नहीं होने लगा। वह बस मौन बैठा रहता। एकदम शांत! उसका चीखना चिल्लाना बंद हो गया।
इधर, उसके दोस्त को चिंता होने लगी कि एक माह के दिन पर दिन बीत रहे हैं पर उसका दोस्त है कि बाहर ही नहीं आ रहा है।
माह के अब अंतिम 2 दिन शेष थे। इधर उस दोस्त का व्यापार चौपट हो गया। वह दिवालिया हो गया। उसे अब चिंता होने लगी कि यदि उसके मित्र ने शर्त जीत ली तो इतने पैसे वह उसे कहाँ से देगा।
वह उसे गोली मारने की योजना बनाता है और उसे मारने के लिये जाता है।
जब वह वहां पहुँचता है तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहता।
वह दोस्त शर्त के एक माह के ठीक एक दिन पहले वहां से चला जाता है और एक खत अपने दोस्त के नाम छोड़ जाता है। खत में लिखा होता है -
प्यारे दोस्त! इस एक महीने में मैंने वह चीज़ पा ली है, जिसका कोई मोल नही चुका सकता। मैंने अकेले में रहकर असीम शांति का सुख पा लिया है और मैं ये भी जान चुका हूँ कि जितनी ज़रूरतें हमारी कम होती जाती हैं उतना हमें असीम आनंद और शांति मिलती जाती है। मैंने इन दिनों परमात्मा के असीम प्यार को जान लिया है। इसीलिए मैं अपनी ओर से यह शर्त तोड़ रहा हूँ। अब मुझे तुम्हारे शर्त के पैसे की कोई ज़रूरत नहीं।
इस उद्धरण से समझें कि लॉकडाउन के इस परीक्षा की घड़ी में खुद को झुंझलाहट, चिंता और भय में न डालें। उस परमात्मा की निकटता को महसूस करें और जीवन को नए दृष्टिकोण से देखने का प्रयत्न कीजिये।
इसमें भी कोई अच्छाई होगी यह मानकर सब कुछ भगवान को अर्पण कर दें।
विश्वास मानिए अच्छा ही होगा। लॉकडाउन के नियमों का पालन करें। स्वयं सुरक्षित रहें। परिवार, समाज और राष्ट्र को सुरक्षित रखें।
अब लॉकडाउन के बाद जी तोड़ मेहनत करना है, स्वयं, परिवार और राष्ट्र के लिए तथा देश की गिरती अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए।
जय भारत!
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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