सेवाभाव और संस्कार
👼👼💧💧👼💧💧👼👼 सेवाभाव और संस्कार Image by Nimrod Oren from Pixabay एक संत ने एक विश्वविद्यालय का आरंभ किया। इस विद्यालय का प्रमुख उद्देश्य था - ऐसे संस्कारी युवक-युवतियों के चरित्र का निर्माण करना, जो समाज के विकास में सहभागी बन सकें। एक दिन उन्होंने अपने विद्यालय में एक वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया, जिसका विषय था - “जीवों पर दया एवं प्राणी मात्र की सेवा।” निर्धारित तिथि को तयशुदा वक्त पर विद्यालय के कॉन्फ्रेंस हॉल में प्रतियोगिता आरंभ हुई। किसी छात्र ने सेवा के लिए संसाधनों की महत्ता पर बल देते हुए कहा कि हम दूसरों की तभी सेवा कर सकते हैं, जब हमारे पास उसके लिए पर्याप्त संसाधन हों। वहीं कुछ छात्रों की यह भी राय थी कि सेवा के लिए संसाधन नहीं, भावना का होना ज़रूरी है। किसी ने कहा कि तन में शक्ति, मन में लगन और जेब में धन हो, तभी हम “जीवों पर दया एवं प्राणीमात्र की सेवा” कर सकते हैं, इनमें से एक का भी अभाव होने से यह कार्य सम्भव नहीं है। इस तरह तमाम प्रतिभागियों ने प्राणी सेवा के विषय में शानदार भाषण दिए। आखिर में जब पुरस्कार देने का समय आया तो संत ने एक ऐसे विद्यार्थी को च...