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Showing posts from January, 2024

अभिमान

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 अभिमान Image by Ilo from Pixabay श्री कृष्ण भगवान द्वारका में रानी सत्यभामा के साथ सिंहासन पर विराजमान थे। उनके पास ही गरुड़ और सुदर्शन चक्र भी बैठे थे। बातों ही बातों में रानी सत्यभामा ने श्री कृष्ण से पूछा, ‘हे प्रभु! आपने त्रेता युग में राम के रूप में अवतार लिया था, सीता आपकी पत्नी थी। क्या वे मुझसे ज्यादा सुंदर थी?’ कृष्ण समझ गए कि सत्यभामा को अपने रूप का अभिमान हो गया है। तभी गरुड़ ने कहा कि भगवान! क्या दुनिया में मुझसे भी ज्यादा तेज गति से कोई उड़ सकता है? सुदर्शन चक्र से भी रहा नहीं गया और वह भी कह उठे कि भगवान! मैंने बड़े-बड़े युद्धों में आपको विजय श्री दिलवाई है। क्या संसार में मुझसे भी शक्तिशाली कोई है? भगवान मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। वे जान रहे थे कि उनके इन तीनों भक्तों को अहंकार हो गया है और इनका अहंकार नष्ट होने का समय आ गया है। ऐसा सोचकर उन्होंने गरुड़ से कहा - हे गरुड़! तुम हनुमान के पास जाओ और उनसे कहना कि भगवान राम, माता सीता के साथ उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। गरुड़ भगवान की आज्ञा लेकर हनुमान को लाने चले गए। इधर श्री कृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि देवी आप सीत...

अनोखा रिश्ता

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 अनोखा रिश्ता Image by Karl Egger from Pixabay थैंक्यू “भैया” का भी एक अनोखा रिश्ता है। किदवईनगर चौराहे पर टेम्पो से उतर कर जैसे ही आगे बढ़ा तो तीन-चार रिक्शे वाले मेरी तरफ बढ़ते हुए बोले, “आओ बाबू, के-ब्लॉक....”। सुबह-शाम की वही सवारियाँ और चौराहे के वही रिक्शेवाले। सब एक दूसरे के चेहरे को पहचानने लगते हैं। जिन रिक्शों पर बैठ कर मैं शाम को घर तक पहुँचता था, वे तीन चार ही थे। स्वभाव से मैं अपनी दुकान, सवारी या मित्र चुनिंदा रखता हूँ, इन पर विश्वास करता हूँ और इन्हें बार-बार बदलता भी नहीं हूँ। एक रिक्शे पर मैं बैठ गया। आज ऑफिस में निदेशक ने अकारण ही मुझ पर नाराजगी जाहिर की थी, इसलिए मस्तिष्क विचलित और हृदय भारी था। कब रिक्शा मुख्य सड़क से मुड़ा और कब मेरे घर के सामने आ खड़ा हुआ, मैं नहीं जान पाया। “आओ, बाबू जी! आपका घर आ गया”, रिक्शेवाले का स्वर सुनकर मैं सचेत हुआ। रिक्शे को गेट के सामने खड़ा पाकर मैं उतरा और जेब से पैसे निकाल कर रिक्शेवाले को दिये और पलट कर घर की तरफ बढ़ गया। “बाबू जी....”, रिक्शेवाले की आवाज़ सुनकर मैं पलटा और प्रश्नवाचक दृष्टि से उसे देखते हुए कहा - “क्य...

अष्टावक्र का ज्ञान

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 अष्टावक्र का ज्ञान Image by Bruno from Pixabay ऋषि ने अपने शिष्य कहोड़ की प्रतिभा से प्रभावित होकर अपनी पुत्री सुजाता का विवाह कहोड़ से कर दिया। सुजाता के गर्भ ठहरने के बाद ऋषि कहोड़ सुजाता को वेदपाठ सुनाते थे। तभी सुजाता के गर्भ से बालक बोला - ‘पिताजी। आप गलत पाठ कर रहे हैं।’ इस पर कहोड़ को क्रोध आ गया और शाप दिया - तू आठ स्थानों से वक्र (टेढ़ा) होकर पैदा होगा। कुछ दिन बाद कहोड़ राजा जनक के दरबार में एक महान् विद्वान बंदी से शास्त्रार्थ में हार गए और नियमानुसार कहोड़ को जल समाधि लेनी पड़ी। कुछ दिनों बाद अष्टावक्र का जन्म हुआ। एक दिन उसे माँ से पिता की सच्चाई पता चली तो अष्टावक्र दुःखी हुआ और बारह साल का अष्टावक्र बंदी से शास्त्रार्थ करने के लिए राजा जनक के दरबार में पहुँचा। सभा में आते ही बंदी को शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दी, लेकिन अष्टावक्र को सभा में देखकर सभी पंडित और सभासद हंसने लगे, क्योंकि वह आठ जगह से टेढ़े थे। उनकी चाल से ही लोग हंसने लगते थे। सभी अष्टावक्र पर हंस रहे थे और अष्टावक्र सब लोगों पर। जनक ने पूछा - ‘हे बालक। सभी लोगों की हंसी समझ आती है। लेकिन तु...

सच्चा साधु

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 सच्चा साधु Image by GLady from Pixabay एक साधु को एक नाविक रोज इस पार से उस पार ले जाता था, बदले में कुछ नहीं लेता था। वैसे भी साधु के पास पैसा कहां होता था। नाविक सरल था, पढ़ा-लिखा तो नहीं था, पर समझ की कमी नहीं थी। साधु रास्ते में ज्ञान की बात कहते, कभी भगवान की सर्वव्यापकता बताते और कभी अर्थसहित श्रीमदभगवद्गीता के श्लोक सुनाते। नाविक मछुआरा बहुत ध्यान से सुनता और बाबा की बात हृदय में बैठा लेता। एक दिन उस पार उतरने पर साधु नाविक को अपनी कुटिया में ले गये और बोले - वत्स! मैं पहले व्यापारी था। धन तो कमाया था, पर अपने परिवार को आपदा से नहीं बचा पाया। अब ये धन मेरे किसी काम का नहीं। तुम इसे ले लो। तुम्हारा जीवन संवर जायेगा और तेरे परिवार का भी भला हो जाएगा। नहीं, बाबाजी! मैं ये धन नहीं ले सकता। मुफ्त का धन घर में जाते ही सब के आचरण बिगाड़ देगा, कोई मेहनत नहीं करेगा, आलसी जीवन मन में लोभ, लालच और पाप बढ़ायेगा। आप ही ने मुझे ईश्वर के बारे में बताया है। मुझे तो आजकल लहरों में भी कई बार वही नज़र आता है। जब मैं उसकी नज़र में हूँ, तो फिर भाग्य पर अविश्वास क्यों करूँ? क्यों न म...

गुलाम की सीख

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 गुलाम की सीख Image by Karsten Paulick from Pixabay दास प्रथा के दिनों में एक मालिक के पास अनेकों गुलाम हुआ करते थे। उन्हीं में से एक था लुक़मान। लुक़मान था तो सिर्फ एक गुलाम लेकिन वह बड़ा ही चतुर और बुद्धिमान था। उसकी ख्याति दूर-दराज़ के इलाकों में फैलने लगी थी। एक दिन इस बात की खबर उसके मालिक को लगी। मालिक ने लुक़मान को बुलाया और कहा - “सुनते हैं कि तुम बहुत बुद्धिमान हो। मैं तुम्हारी बुद्धिमानी की परीक्षा लेना चाहता हूँ। अगर तुम इम्तिहान में पास हो गए तो तुम्हें गुलामी से छुट्टी दे दी जाएगी। अच्छा! जाओ, एक मरे हुए बकरे को काटो और उसका जो हिस्सा बढ़िया हो, उसे ले आओ।” लुक़मान ने आदेश का पालन किया और मरे हुए बकरे की जीभ लाकर मालिक के सामने रख दी। कारण पूछने पर कि जीभ ही क्यों लाया, लुक़मान ने कहा - “अगर शरीर में जीभ अच्छी हो तो सब कुछ अच्छा-ही-अच्छा होता है।” मालिक ने आदेश देते हुए कहा - “अच्छा! इसे उठा कर ले जाओ और अब बकरे का जो हिस्सा बुरा हो उसे ले आओ।” लुक़मान बाहर गया, लेकिन थोड़ी ही देर में उसने उसी जीभ को लाकर मालिक के सामने फिर रख दिया। फिर से कारण पूछने पर लुक़मान न...

आत्मा और परमात्मा

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 आत्मा और परमात्मा Image by GLady from Pixabay आत्मा और परमात्मा को पहचानो तो संतोषी सदा सुखी रहेंगे। एक बार किसी महाराज ने किसी दूसरे राजा पर चढ़ाई में विजय प्राप्त कर ली। उस चढ़ाई में उस राजा के कुटुम्ब के सभी लोग मारे गये। अंत में महाराज ने सोचा कि अब वह राज्य नहीं लेगा और राज्य में जो कोई बचा हो उसको यह राज्य सौंप देगा। ऐसा विचार कर महाराज अपने वंशज की तलाश करने के लिए निकला। एक आदमी जो घर-गृहस्थी छोड़कर जंगल में रहता था, वही बच गया था। महाराज उस पुरुष के पास गये और बोले, “जो कुछ चाहते हो वह ले लो।” महाराज ने यह सोचकर बोला कि वह राज्य मांग ले क्योंकि उससे बढ़कर और क्या मांगेगा। इसलिए कहा, “जो इच्छा है वो ले लो।” वह पुरुष बोला, “मैं जो कुछ चाहता हूँ, वह आप देंगे?” महाराज बोले, “हाँ-हाँ! दे दूँगा।” वह पुरुष बोला, “महाराज! हमें ऐसा सुख दो कि जिसके बाद फिर कभी दुःख नहीं आये।” विचारने वाली बात है यहाँ कि संसार में ऐसा कौन-सा सुख है जिसके बाद फिर कभी दुःख की प्राप्ति न हो? सुख तो ज्ञान स्वभाव में रहने में ही है क्योंकि यदि ज्ञान में रहेंगे और ज्ञान से ही जानेंगे तो बाहरी...

परमात्मा पर भरोसा

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 परमात्मा पर भरोसा Image by Gabriela Piwowarska from Pixabay एक राजा था। उसका एक मंत्री था, जिसका नाम जय सिंह था। वह बहुत बुद्धिमान तथा समझदार था। एक बार राजा के राज्य पर साथ वाले राज्य के राजा ने आक्रमण कर दिया। वह बहुत दुःखी हुआ। वह अपनी जान बचाने के लिए गुप्त मार्ग से अपने मंत्री के साथ जंगल में पहुंच गया। उसके मंत्री को चाहे कोई दुःख हो या सुख हो, वह हमेशा यही कहता था कि परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है। परंतु राजा को यह बात अच्छी नहीं लगती थी। इसलिए जब भी वह मंत्री के मुख से यह बात सुनता, तो जल-भुन जाता। अब जब मंत्री और राजा अपनी जान बचाकर जंगल में पहुंचे, तो मंत्री मन ही मन परमात्मा को धन्यवाद दे रहा था। उसने राजा से कहा - राजन्! घबराने की क्या जरूरत है? ईश्वर पर भरोसा रखो। वह जो भी करता है, अच्छा ही करता है। हमारी पराजय में भी कोई भेद होगा, जो हमें अभी तक पता नहीं चल रहा है। राजा इस आशापूर्ण उत्तर से जल-भुन गया। उसने मंत्री से कहा - तुम्हारा परमात्मा कितना निर्दयी है? उसने मेरा राजपाट, ताज-तख्त सभी कुछ मुझसे छीन लिया। बातें करते काफी समय बीत गया। अंधेरा...