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Showing posts from March, 2024

व्यक्ति की पहचान

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 व्यक्ति की पहचान Image by Uschi Dugulin from Pixabay किसी जंगल में एक संत महात्मा रहते थे। सन्यासियों वाली वेशभूषा थी और बातों में सदाचार का भाव, चेहरे पर इतना तेज था कि कोई भी इंसान उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था। एक बार जंगल में शहर का एक व्यक्ति आया और वह जब महात्मा जी की झोपड़ी से होकर गुजरा तो देखा, बहुत से लोग महात्मा जी के दर्शन करने आये हुए थे। वह महात्मा जी के पास गया और बोला कि आप अमीर भी नहीं हैं, आपने महंगे कपड़े भी नहीं पहने हैं, आपको देखकर मैं बिल्कुल प्रभावित नहीं हुआ, फिर ये इतने सारे लोग आपके दर्शन करने क्यों आते हैं? महात्मा जी ने उस व्यक्ति को अपनी एक अंगूठी उतार कर दी और कहा कि आप इसे बाजार में बेच कर आएं और इसके बदले एक सोने की माला लेकर आना। अब वह व्यक्ति बाजार गया और दुकान पर जाकर उस अंगूठी के बदले सोने की माला मांगने लगा, लेकिन सोने की माला तो क्या उस अंगूठी के बदले कोई पीतल का एक टुकड़ा भी देने को तैयार नहीं था। थक हार कर व्यक्ति वापस महात्मा जी के पास पहुँचा और बोला कि इस अंगूठी की तो कोई कीमत ही नहीं है। महात्मा जी मुस्कुराये और बो...

अंतिम सत्य

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 अंतिम सत्य Image by Mariya from Pixabay ऐसी उपनिषद में प्यारी कथा है। याज्ञवल्क्य घर बार छोड़ कर जा रहा है। जीवन के अंतिम दिन आ गए हैं और अब वह चाहता है कि दूर खो जाए किन्हीं पर्वतों की गुफाओं में। उसकी दो पत्नियां थी और बहुत धन था उसके पास। वह उस समय का प्रकांड पंडित था। उसका कोई मुकाबला नहीं था पंडितों में। तर्क में उसकी प्रतिष्ठा थी। ऐसी उसकी प्रतिष्ठा थी कि कहा जाता है - जनक ने एक बार एक बहुत बड़ा सम्मेलन किया और एक हजार गौएं, उनके सींग सोने से मढ़वा कर और उनके ऊपर बहूमूल्य वस्त्र डाल कर महल के द्वार पर खड़ी कर दी और कहा - जो पंडित विवाद जीतेगा, वह इन हजार गौओं को अपने साथ ले जाने का हकदार होगा। यह पुरस्कार है। बहुत बड़े-बड़े पंडित इकट्ठे हुए। दोपहर हो गई। बड़ा विवाद चला। कुछ तय भी नहीं हो पा रहा था कि कौन जीता, कौन हारा और तब दोपहर को याज्ञवल्क्य आया अपने शिष्यों के साथ। दरवाज़े पर उसने देखा कि गौएं खड़ी-खड़ी सुबह से थक गई हैं, धूप में उनका पसीना बह रहा है। उसने अपने शिष्यों को कहा - ऐसा करो, तुम गौओं को खदेड़ कर घर ले जाओ, मैं विवाद निपटा कर आता हूँ। जनक की भी हिम्मत न...

एक प्रेरक कहानी

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 एक प्रेरक कहानी Image by Uschi Dugulin from Pixabay मैं चेन्नई में कार्यरत था और मेरा पैतृक घर भोपाल में था। अचानक घर से पिताजी का फ़ोन आया कि तुरन्त चले आओ, जरूरी काम है। मैं आनन फानन में रेलवे स्टेशन पहुँचा और तत्काल रिजर्वेशन की कोशिश की, परंतु एक भी सीट उपलब्ध नहीं थी। सामने प्लेटफार्म पर ग्रैंड ट्रंक एक्सप्रेस खड़ी थी और उसमें भी बैठने की जगह नहीं थी, परन्तु मरता क्या नहीं करता? घर तो कैसे भी जाना ही था। बिना कुछ सोचे-समझे सामने खड़े स्लीपर क्लास के डिब्बे में चढ़ गया। डिब्बे के अन्दर भी बुरा हाल था। जैसे-तैसे जगह बनाने हेतु एक बर्थ पर एक सज्जन को लेटे देखा तो उनसे याचना करते हुए बैठने के लिए जगह मांग ली। सज्जन मुस्कुराये, उठकर बैठ गए और बोले - “कोई बात नहीं, आप यहाँ बैठ सकते हैं।” मैं उन्हें धन्यवाद देकर वहीं कोने में बैठ गया। थोड़ी देर बाद ट्रेन ने स्टेशन छोड़ दिया और रफ़्तार पकड़ ली। कुछ मिनटों में जैसे सभी लोग व्यवस्थित हो गए और सभी को बैठने का स्थान मिल गया। मैंने अपने सहयात्री को देखा और सोचा कि बातचीत का सिलसिला शुरू किया जाये। मैंने कहा - “मेरा नाम आलोक है और...

कर्मयोग और चिंतन

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 कर्मयोग और चिंतन Image by Greg Montani from Pixabay एक बार संत कबीर से किसी ने पूछा, ‘आप दिन भर कपड़ा बुनते रहते हैं, तो भगवान का स्मरण कब करते हैं?’ कबीर उस व्यक्ति को लेकर अपनी झोपड़ी से बाहर आ गए। बोले, ‘यहाँ खड़े रहो। तुम्हारे सवाल का जवाब सीधे न देकर, मैं उसे दिखा सकता हूँ।’ कबीर ने दिखाया कि एक औरत पानी की गागर सिर पर रखकर लौट रही थी। उसके चेहरे पर प्रसन्नता और चाल में रफ्तार थी। उमंग से भरी हुई वह नाचती हुई-सी चली जा रही थी। गागर को उसने पकड़ नहीं रखा था, फिर भी वह पूरी तरह संभली हुई थी। कबीर ने कहा, ‘उस औरत को देखो। वह ज़रूर कोई गीत गुनगुना रही है। शायद कोई प्रियजन घर आया होगा। वह प्यासा होगा, उसके लिए वह पानी लेकर जा रही है। मैं तुमसे जानना चाहता हूँ कि उसे गागर की याद होगी या नहीं।’ कबीर की बात सुनकर उस व्यक्ति ने जवाब दिया, ‘उसे गागर की याद नहीं होती, तो अब तक तो गागर नीचे ही गिर चुकी होती।’ कबीर बोले, ‘यह साधारण-सी औरत सिर पर गागर रखकर रास्ता पार करती है। मजे़ से गीत गाती है, फिर भी गागर का ख्याल उसके मन में बराबर बना हुआ है और तुम मुझे इससे भी गया गुज़रा सम...

गरीब क्यों

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 गरीब क्यों Image by Ralph from Pixabay भगवान कृष्ण हमारे लिए हमेशा सही कार्य ही करते हैं। एक बार नारद जी ने भगवान से प्रश्न किया कि प्रभु आपके भक्त गरीब क्यों होते हैं? तो भगवान बोले - “नारद जी! मेरी कृपा को समझना बहुत कठिन है।” इतना कहकर भगवान नारद के साथ साधु भेष में पृथ्वी पर पधारे और एक सेठ जी के घर भिक्षा मांगने के लिए दरवाजा खटखटाने लगे। सेठ जी बिगड़ते हुए दरवाजे की तरफ आए और देखा तो दो साधु खड़े हैं। भगवान बोले - “भैया! बड़े जोरों की भूख लगी है। थोड़ा सा खाना मिल जाएगा?” सेठ जी बिगड़कर बोले - “तुम दोनों को शर्म नहीं आती। तुम्हारे बाप का माल है? कर्म करके खाने में शर्म आती है, जाओ-जाओ! किसी होटल में खाना मांगना।” नारद जी बोले - “देखा, प्रभु! यह आपके भक्तों और आपका निरादर करने वाला सुखी प्राणी है। इसको अभी श्राप दीजिये।” नारद जी की बात सुनते ही भगवान ने उस सेठ को अधिक धन सम्पत्ति बढ़ाने वाला वरदान दे दिया। इसके बाद भगवान नारद जी को लेकर एक बुढ़िया मैया के घर में गए। जिसकी एक छोटी-सी झोपड़ी थी, जिसमें एक गाय के अलावा और कुछ भी नहीं था। जैसे ही भगवान ने भिक्षा के लिए आ...

चिंतन

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 चिंतन Image by Erik Lyngsøe from Pixabay यूनान के मशहूर दार्शनिक सुकरात भ्रमण करते हुए एक नगर में गए। वहाँ उनकी मुलाकात एक वृद्ध सज्जन से हुई। दोनों आपस में काफी घुल-मिल गए। वृद्ध सज्जन आग्रहपूर्वक सुकरात को अपने निवास पर ले गए। भरा-पूरा परिवार था उनका। घर में बहू-बेटे, पौत्र-पौत्रियां सभी थे। सुकरात ने वृद्ध से पूछा, ‘आपके घर में तो सुख-समृद्धि का वास है। वैसे अब आप करते क्या हैं?’ वृद्ध बोले, ‘अब मुझे कुछ नहीं करना पड़ता। अच्छा कारोबार है, जिसकी सारी जिम्मेदारियां अब बेटों को सौंप दी हैं। घर की व्यवस्था बहुएं संभालती हैं। इसी तरह जीवन सुखपूर्वक चल रहा है। मैंने जीवन के इस मोड़ पर एक ही नीति अपनाई है कि दूसरों से अधिक अपेक्षाएं मत पालो और जो मिले, उसमें संतुष्ट रहो। मैं और मेरी पत्नी अपने पारिवारिक उत्तरदायित्व अपने बेटे-बहुओं को सौंपकर निश्चिंत हैं। अब वे जो कहते हैं, वह मैं कर देता हूँ और जो कुछ भी खिलाते हैं, खा लेता हूँ। अपने पौत्र-पौत्रियों के साथ हंसता-खेलता हूँ। मैं बच्चों के किसी कार्य में बाधक नहीं बनता।’ ‘पर कभी तो आपका मन करता होगा कि वे आपकी बात मानें, ...

गुरु कौन

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 गुरु कौन Image by Ralph from Pixabay बहुत समय पहले की बात है, किसी नगर में एक बेहद प्रभावशाली महंत रहते थे। उनके पास शिक्षा लेने हेतु दूर-दूर से शिष्य आते थे। एक दिन एक शिष्य ने महंत से सवाल किया, ‘स्वामी जी! आपके गुरु कौन हैं? आपने किस गुरु से शिक्षा प्राप्त की है?’ महंत शिष्य का सवाल सुन मुस्कुराए और बोले, ‘मेरे हजारों गुरु हैं। यदि मैं उनके नाम गिनाने बैठ जाऊँ, तो शायद महीनों लग जाएं। लेकिन फिर भी मैं अपने तीन गुरुओं के बारे में तुम्हें ज़रूर बताऊंगा। मेरा पहला गुरु था एक ‘चोर’ । एक बार मैं रास्ता भटक गया था और जब दूर किसी गाँव में पहुँचा तो बहुत देर हो गयी थी। सब दुकानें और घर बंद हो चुके थे। लेकिन आखिरकार मुझे एक आदमी मिला, जो एक दीवार में सेंध लगाने की कोशिश कर रहा था। मैंने उससे पूछा कि मैं कहाँ ठहर सकता हूँ, तो वह बोला कि आधी रात गए इस समय आपको कहीं कोई भी आसरा मिलना बहुत मुश्किल होगा, लेकिन आप चाहें तो मेरे साथ आज की रात ठहर सकते हो। मैं एक चोर हूँ और अगर एक चोर के साथ रहने में आपको कोई परेशानी नहीं हो तो आप मेरे साथ रह सकते हैं। वह इतना प्यारा आदमी था कि ...