कर्मयोग और चिंतन

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कर्मयोग और चिंतन

Image by Greg Montani from Pixabay

एक बार संत कबीर से किसी ने पूछा, ‘आप दिन भर कपड़ा बुनते रहते हैं, तो भगवान का स्मरण कब करते हैं?’

कबीर उस व्यक्ति को लेकर अपनी झोपड़ी से बाहर आ गए। बोले, ‘यहाँ खड़े रहो। तुम्हारे सवाल का जवाब सीधे न देकर, मैं उसे दिखा सकता हूँ।’

कबीर ने दिखाया कि एक औरत पानी की गागर सिर पर रखकर लौट रही थी। उसके चेहरे पर प्रसन्नता और चाल में रफ्तार थी। उमंग से भरी हुई वह नाचती हुई-सी चली जा रही थी। गागर को उसने पकड़ नहीं रखा था, फिर भी वह पूरी तरह संभली हुई थी।

कबीर ने कहा, ‘उस औरत को देखो। वह ज़रूर कोई गीत गुनगुना रही है। शायद कोई प्रियजन घर आया होगा। वह प्यासा होगा, उसके लिए वह पानी लेकर जा रही है। मैं तुमसे जानना चाहता हूँ कि उसे गागर की याद होगी या नहीं।’

कबीर की बात सुनकर उस व्यक्ति ने जवाब दिया, ‘उसे गागर की याद नहीं होती, तो अब तक तो गागर नीचे ही गिर चुकी होती।’

कबीर बोले, ‘यह साधारण-सी औरत सिर पर गागर रखकर रास्ता पार करती है। मजे़ से गीत गाती है, फिर भी गागर का ख्याल उसके मन में बराबर बना हुआ है और तुम मुझे इससे भी गया गुज़रा समझते हो कि मैं कपड़ा बुनता हूँ और परमात्मा का स्मरण करने के लिए मुझे अलग से वक्त की ज़रूरत है। मेरी आत्मा हमेशा उसी में लगी रहती है। कपड़ा बुनने के काम में शरीर लगा रहता है और आत्मा प्रभु के चरणों में लीन रहती है। आत्मा हर समय प्रभु के चिंतन में डूबी रहती है। इसलिए ये हाथ भी आनंदमय होकर कपड़ा बुनते रहते हैं।’

जो सोते-जागते, खाते-पीते, चलते-फिरते समय सजग रहता है, जो ऐसा कोई काम नहीं करता जो उसके आराध्य को प्रिय न हो, वह सदा आत्म-चिंतन में ही मग्न रहता है। यही भगवान का सच्चा स्मरण है।

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 सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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धन्यवाद।

Comments

  1. , hath panv se Kam Kar chit Niranjan naal

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