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Showing posts from August, 2025

अहमियत

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  अहमियत हर इंसान की अपनी अहमियत होती है। (एक नैतिक कहानी ) एक बार की बात है। एक बड़ा बिजनेसमैन अपने ड्राइवर के साथ किसी दूरस्थ गांव की ओर जा रहा था। रास्ते में एक चौड़ी नदी पड़ गई। ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी और बोला, “साहब, इस नदी के उस पार जो गांव है, वहां तक सड़क से जाना हो तो छह से आठ घंटे लग सकते हैं, लेकिन आपके पास तो इतना समय नहीं है।” बिजनेसमैन उस गांव में एक फैक्ट्री लगाने का विचार कर रहा था, इसलिए वह ज़मीन देखने आया था। समय की कमी थी, इसलिए वह चिंतित हो गया। तभी ड्राइवर ने सुझाव दिया, “साहब, चाहें तो नाव से जा सकते हैं, बस 15-20 मिनट लगेंगे।” यह विचार सुनकर बिजनेसमैन खुश हो गया। वो दोनों नदी किनारे पहुंचे। वहां एक नाव वाला खड़ा था। बिजनेसमैन ने कहा, “भाई, उस पार छोड़ दोगे?”  नाव वाले ने मुस्कराकर कहा, “जरूर साहब, बैठिए।” बिजनेसमैन नाव में बैठ गया। नदी की यात्रा शुरू हुई। रास्ता छोटा था, तो बिजनेसमैन ने बातचीत शुरू की। उसने नाव वाले से पूछा, “क्या तुम्हें पता है उस पार एक बड़ी फैक्ट्री खुलने वाली है?” नाव वाला भोलेपन से बोला, “साहब, फैक्ट्री क्या होती है, ये मुझे नहीं पता।” बिजने...

एक सोच

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 एक सोच एक सोच जो किसी का भला कर सकती है। एक कंपनी की हर दीपावली की पूर्व संध्या पर एक पार्टी और लॉटरी आयोजित करने की परंपरा थी। लॉटरी ड्रॉ के नियम इस प्रकार थेः  प्रत्येक कर्मचारी एक फंड के रूप में दस रुपये का भुगतान करता है। कंपनी में तीन सौ लोग थे। यानी कुल तीन हजार रुपये जुटाए जा सकते हैं। विजेता सारा पैसा ले जाता है। लॉटरी ड्रा के दिन कार्यालय चहल-पहल से भर गया। सभी ने कागज की पर्चियों पर नाम लिखकर लॉटरी बॉक्स में डाल दिया। हालांकि एक युवक लिखने से झिझक रहा था। उसने सोचा कि कंपनी की सफाई वाली महिला के कमजोर और बीमार बेटे का नए साल की सुबह के तुरंत बाद ऑपरेशन होने वाला था, लेकिन उसके पास ऑपरेशन के लिए आवश्यक पैसे नहीं थे, जिससे वह काफी परेशान थी। भले ही वह जानता था कि जीतने की संभावना कम है, केवल 0.33 प्रतिशत संभावना, उसने नोट पर सफाई वाली महिला का नाम लिखा। उत्साहपूर्ण क्षण आया। बॉस ने लॉटरी बॉक्स को हिलाते हुए उस में से एक पर्ची निकाला। वह आदमी भी अपने दिल में प्रार्थना करता रहाः इस उम्मीद से कि सफाई वाली महिला पुरस्कार जीत सकती है। तब बॉस ने ध्यान से विजेता के नाम की घो...

असली अमीरी (एक प्रेरणादायक कहानी)

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 असली अमीरी  (एक प्रेरणादायक कहानी) गोपाल एक बड़े और व्यस्त शहर में अपने माता-पिता के साथ रहता था। उसके पिता एक प्रतिष्ठित व्यवसायी थे और उनके पास धन-संपत्ति की कोई कमी नहीं थी। गोपाल के पास महंगे खिलौने, अच्छे कपड़े, एक बड़ा घर और सुविधाओं से भरपूर जीवन था। लेकिन वह इन सबका आदी हो चुका था और उसे कभी यह अहसास ही नहीं हुआ कि जीवन के असली मायने क्या होते हैं। एक बार गर्मी की छुट्टियाँ शुरू हुईं। गोपाल के पिता ने सोचा कि इस बार उसे सिर्फ मॉल और वीडियो गेम्स में समय नहीं बिताना चाहिए, बल्कि असली जीवन का अनुभव कराना चाहिए। उन्होंने गोपाल से कहा, “बेटा, चलो इस बार गर्मी की छुट्टियों में गाँव चलते हैं। तुम्हें बाहर की दुनिया दिखाते हैं।”  गोपाल थोड़ा चौंका, लेकिन पिता की बात मान गया। अगले दिन वे लोग अपने पैतृक गाँव के लिए रवाना हुए। कुछ ही घंटों की यात्रा के बाद वे गाँव पहुँच गए। वहाँ का वातावरण एकदम शांत था। चारों ओर हरियाली, खुले मैदान, साफ-सुथरी हवा और चहचहाते पक्षी। गोपाल को यह सब देखकर पहले थोड़ी हैरानी हुई, क्योंकि वह तो सिर्फ कंक्रीट के जंगलों और ट्रैफिक की आवाज़ों का आदी था। ग...

भक्तों से भगवान

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  भक्तों से भगवान एक बहुत सुंदर कहानी है। एक राजा था जो एक आश्रम को संरक्षण दे रहा था। यह आश्रम एक जंगल में था। इसके आकार और इसमें रहने वालों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी होती जा रही थी और इसलिए राजा उस आश्रम के लोगों के लिए भोजन और वहां की इमारत आदि के लिए आर्थिक सहायता दे रहा था। यह आश्रम बहुत तेजी से विकास कर रहा था। जो योगी इस आश्रम का सर्वे सर्वा था, वह मशहूर होता गया और राजा के साथ भी उसकी अच्छी नजदीकी हो गई। ज्यादातर मौकों पर राजा उसकी सलाह लेने लगा। ऐसे में राजा के मंत्रियों को ईर्ष्या होने लगी और वे असुरक्षित महसूस करने लगे। एक दिन उन्होंने राजा से बात की - ‘हे राजन, राजकोष से आप इस आश्रम के लिए इतना पैसा दे रहे हैं। आप ज़रा वहां जाकर देखिए तो सही। वे सब लोग अच्छे-खासे खाते पीते नजर आते हैं। वे आध्यात्मिक लगते ही नहीं।’ राजा को भी लगा कि वह अपना पैसा बर्बाद तो नहीं कर रहा है, लेकिन दूसरी ओर योगी के प्रति उसके मन में बहुत सम्मान भी था। उसने योगी को बुलवाया और उससे कहा - ‘मुझे आपके आश्रम के बारे में कई उल्टी-सीधी बातें सुनने को मिली हैं। ऐसा लगता है कि वहां अध्यात्म से संबंध...

दो फकीरों की कहानी

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  दो फकीरों की कहानी दो फकीर थे। वे दोनों वर्षा काल के लिए अपने झोपड़े पर वापस लौट रहे थे। आठ महीने घूमते थे, भटकते थे गांव-गांव और उस परमात्मा का गीत गाते थे। वर्षा काल में अपने झोपड़े पर लौट आते थे। गुरु बूढ़ा था, शिष्य जवान था। जैसे ही वे करीब पहुंचे झील के किनारे अपने झोपड़े को देखा, तो पाया कि छप्पर जमीन पर पड़ा है। जोर की आंधी आयी थी रात को, आधा छप्पर उड़ गया था।  छोटा-सा झोपड़ा। उसका भी आधा छप्पर उड़ गया है। वर्षा सिर पर है। अब कुछ करना भी मुश्किल होगा। दूर जंगल में यह निवास है। युवा संन्यासी शिष्य ने कहा - देखो! हम परमात्मा की प्रार्थना कर-कर के मरे जाते हैं, हम उसकी याद कर-कर के मरे जाते हैं, उसकी तरफ से हमें यह फल मिला। इसीलिए तो मैं कहता हूं कि कुछ सार नहीं है भक्ति में। प्रार्थना, पूजा में मिलता क्या हैं? दुष्टों के महल साबुत हैं, हम गरीब फकीरों की झोपड़ी गिर गयी आधी। और यह आंधी भी तो उसी की देन है। जब वह क्रोध से यह बातें कर रहा था तो उसने देखा कि उसका गुरु घुटने टेक कर, बड़े आनंदभाव से आकाश की तरफ हाथ जोड़े बैठा था। उसकी आंखों से परम संतोष के आंसू बह रहे हैं और वह गुनगुना क...

मन को वश में करने का तरीका

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  मन को वश में करने का तरीका मन को वश में करके प्रभु चरणों में लगाना बहुत ही कठिन है। शुरुआत में तो मन इसके लिये तैयार ही नहीं होता है, लेकिन इसे तैयार कैसे करें और इसे मनाएं कैसे...? एक शिष्य था.. किन्तु उसका मन किसी भी भगवान की साधना में नही लगता था, पर साधना करने की इच्छा भी उसके मन में थी। वह गुरु के पास गया और बोला कि गुरुदेव! मन साधना में लगता नहीं और साधना करने का मन होता है। कोई ऐसा साधन बताएं, जो मन भी लगे और साधना भी हो जाये। गुरु ने कहा - तुम कल आना।  दूसरे दिन वह गुरु के पास पहुँचा तो गुरु ने कहा - सामने रास्ते में कुत्ते के छोटे बच्चे हैं। उनमें से दो बच्चे उठा ले आओ और उनकी हफ्ता भर देखभाल करो। गुरु के इस अजीब आदेश को सुनकर वह भक्त चकरा गया लेकिन क्या करे, गुरु का आदेश जो था। वह 2 पिल्लों को पकड़ कर लाया लेकिन जैसे ही छोड़ा वे वहीं भाग गये। वह फिर से पकड़ लाया लेकिन वे फिर भागे।  अब की बार उसने उन्हें पकड़ लिया और दूध रोटी खिलायी। अब वे पिल्ले उसके पास रमने लगे। सप्ताह भर उन  की ऐसी सेवा यत्न पूर्वक की कि अब वे उसका साथ छोड़ नही रहे थे। वह जहाँ भी जाता पिल्ल...

सकून की तलाश

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  सुकून की तलाश  एक दुःखी व्यक्ति अपने हालात से दुखी होकर एक संत के पास आया और बोला कि मेरी जीवन जीने की इच्छा समाप्त हो चुकी है। मुझे बताएं कि मैं क्या करूं? संत बोले - किससे दुखी हो?  वह बोला, “अपने परिवार के झगड़ों से और अपने कारोबार से। संत बोले, “ जब से तुम पैदा हुए, तब से तुम्हें भगवान् ने रोटी, कपड़ा और मकान का सुख दिया है। जीवन में उतार चढ़ाव, यह तो प्रकृति का नियम है। राम को 14 साल का वनवास, तारा रानी की कठिन परीक्षा, प्रह्लाद का होलिका दहन और पिता द्वारा यातनायें मिलीं। गुरु नानक देव, साईं बाबा और भगवान् महावीर जैसे न जाने कितने ही लोगों ने अपने जीवन में संघर्ष किया। परंतु विजय उसी की हुई, जिसने वक्त को स्वीकार किया। अपने भूत से कुछ सीखा और भविष्य की चिंता न कर वर्तमान में जीना सीखा। हर क्षण इंसान का अंतिम क्षण होता है। इसलिए रोने की बजाय धन्यवाद करना सीखो। श्वांसों की क़ीमत तब तक कोई नहीं जानता, जब तक ये रुकने न लगें। हमारे अंदर जो साँस चल रही है, वह ईश्वर की सबसे बड़ी कृपा है हम पर। आज आपने कितनी साँसे लीं, कभी आपने इसे अहसास किया है। आप अपनी हर बहुमूल्य वस्तु का ध...

साक्षात् भगवान

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  साक्षात् भगवान   एक राजा ने भगवान कृष्ण का एक मंदिर बनवाया और पूजा के लिए एक पुजारी को लगा दिया। पुजारी बड़े भाव से बिहारीजी की सेवा करने लगे। भगवान की पूजा-अर्चना और सेवा टहल करते पुजारी की उम्र बीत गई । राजा रोज एक फूलों की माला सेवक के हाथ भेजा करता था। पुजारी वह माला बिहारीजी को पहना देते थे। जब राजा दर्शन करने आता तो पुजारी वह माला बिहारीजी के गले से उतारकर राजा को पहना देते थे। यह रोज का नियम था। एक दिन राजा किसी वजह से मंदिर नहीं जा सका । उसने एक सेवक से कहा- माला लेकर मंदिर जाओ। पुजारी से कहना कि आज मैं नहीं आ पाउंगा।  सेवक ने जाकर माला पुजारी को दे दी और बता दिया कि आज महाराज का इंतजार न करें। सेवक वापस आ गया। पुजारी ने माला बिहारीजी को पहना दी । फिर उन्हें विचार आया कि आज तक मैं अपने बिहारीजी की चढ़ी माला राजा को ही पहनाता रहा। कभी ये सौभाग्य मुझे नहीं मिला। जीवन का कोई भरोसा नहीं, कब रूठ जाए। आज मेरे प्रभु ने मुझ पर बड़ी कृपा की है। राजा आज आएंगे नहीं, तो क्यों न माला मैं पहन लूं? यह सोचकर पुजारी ने बिहारी जी के गले से माला उतारकर स्वयं पहन ली। इतने में सेवक आया...

मन की शांति

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  मन की शांति एक गरीब आदमी था। वह हर रोज अपने गुरु के आश्रम जाकर वहां साफ-सफाई करता और फिर अपने काम पर चला जाता था। अक्सर वह अपने गुरु से कहता कि आप मुझे आशीर्वाद दीजिए तो मेरे पास ढेर सारा धन-दौलत आ जाए।  एक दिन गुरु ने पूछ ही लिया कि क्या तुम आश्रम में इसीलिए काम करने आते हो?  उसने पूरी ईमानदारी से कहा कि हां, मेरा उद्देश्य तो यही है कि मेरे पास ढेर सारा धन आ जाए, इसीलिए तो आपके दर्शन करने आता हूं। पटरी पर सामान लगाकर बेचता हूं। पता नहीं, मेरे सुख के दिन कब आएंगे। गुरु ने कहा कि तुम चिंता मत करो। जब तुम्हारे सामने अवसर आएगा तब ऊपर वाला तुम्हें आवाज़ थोडे ही लगाएगा। बस, चुपचाप तुम्हारे सामने अवसर खोलता जाएगा।  युवक चला गया। समय ने पलटा खाया, वह अधिक धन कमाने लगा। इतना व्यस्त हो गया कि आश्रम में जाना ही छूट गया।   कई वर्षों बाद वह एक दिन सुबह ही आश्रम पहुंचा और साफ-सफाई करने लगा। गुरु ने बड़े ही आश्चर्य से पूछा - क्या बात है, इतने बरसों बाद आए हो? सुना है बहुत बड़े सेठ बन गए हो।  वह व्यक्ति बोला - गुरुजी! बहुत धन कमाया। अच्छे घरों में बच्चों की शादियां की...

ईश्वर का न्याय

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  ईश्वर का न्याय एक रोज रास्ते में एक महात्मा अपने शिष्य के साथ भ्रमण पर निकले. गुरुजी को ज्यादा इधर-उधर की बातें करना पसंद नहीं था, कम बोलना और शांतिपूर्वक अपना कर्म करना ही गुरु को प्रिय था. परन्तु शिष्य बहुत चपल था, उसे हमेशा इधर-उधर की बातें ही सूझती, उसे दूसरों की बातों में बहुत ही आनंद आता था. चलते-चलते जब वे तालाब के पास से होकर गुजर रहे थे, तो उन्होंने देखा कि एक झींवर नदी में जाल डाले हुए है. शिष्य यह सब देख खड़ा हो गया और झींवर को ‘अहिंसा परमोधर्म’ का उपदेश देने लगा. लेकिन झींवर कहाँ समझने वाला था! पहले उसने टालमटोल करनी चाही और बात जब बहुत बढ़ गयी, तो शिष्य और झींवर के बीच झगड़ा शुरू हो गया. यह झगड़ा देख गुरुजी जो उनसे बहुत आगे बढ़ गए थे, लौटे और शिष्य को अपने साथ चलने को कहा एवं शिष्य को पकड़कर ले चले. गुरुजी ने अपने शिष्य से कहा- “बेटा! हम जैसे साधुओं का काम सिर्फ समझाना है, लेकिन ईश्वर ने हमें दंड देने के लिए धरती पर नहीं भेजा है!”  शिष्य ने पूछा- “हमारे महाराज को न तो बहुत से दण्डों के बारे में पता है और न ही हमारे राज्य के राजा बहुतों को दण्ड देते हैं. तो आखिर इसको ...

सुख-दुःख का शाश्वत नियम

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  सुख-दुःख का शाश्वत नियम    घुप्प अंधेरी रात में एक व्यक्ति नदी में कूद कर आत्महत्या करने का विचार कर रहा था. वर्षा के दिन थे और नदी पूरे उफान पर थी. आकाश में बादल घिरे थे और रह-रहकर बिजली चमक रही थी। वह उस देश का बहुत धनी व्यक्ति था लेकिन अचानक हुए घाटे से उसकी सारी संपत्ति चली गई. उसके भाग्य का सूरज डूब गया था. चारों ओर निराशा ही निराशा....... भविष्य में कुछ नज़र नहीं आ रहा था।  उसे कुछ सूझता न था कि क्या करे? उसने स्वयं को समाप्त करने का विचार कर लिया था. नदी में कूदने के लिए जैसे ही चट्टान के छोर पर खड़ा होकर वह अंतिम बार ईश्वर का स्मरण करने लगा, तभी दो बुजुर्ग परंतु मजबूत बांहों ने उसे रोक लिया। बिजली की चमक में उसने देखा कि एक वृद्ध साधु उसे पकड़े हुए है। उस वृद्ध ने उससे निराशा का कारण पूछा. किनारे लाकर उसकी सारी कथा सुनी, फिर हंसकर बोला - तो तुम यह स्वीकार करते हो कि पहले तुम सुखी थे!  सेठ बोला - हाँ! मेरे भाग्य का सूर्य पूरे प्रकाश से चमक रहा था. सब ओर मान-सम्मान-संपदा थी. अब जीवन में सिवाय अंधकार और निराशा के कुछ भी शेष नहीं है.  वृद्ध फिर हंसा और ब...

सच्ची घटना

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 सच्ची घटना यह लेख ज़रूर पढ़िए... आंखें नम हो जाएंगी... हृदय को स्पर्श करने वाली सच्ची घटना... “स्मिता... लॉकर्स की चाबी कहां है?“ भावेश ने सख्त लहजे में पूछा। स्मिता बोली, “आज अचानक आपको लॉकर्स की चाबी की क्या ज़रूरत पड़ गई?“ “वह तुम्हारा विषय नहीं है... चाबी दो...“ “आज सुबह-सुबह इस तरह गुस्से में बोलने की वजह?“ “वजह तुम अच्छी तरह जानती हो स्मिता... मैं घर की छोटी बातों में दखल नहीं देता, लेकिन जिस बात के लिए मना कर दूं, उसका उल्लंघन मैं बर्दाश्त नहीं करता, ये तुम जानती हो... फिर भी तुमने...“ “लेकिन उसमें ऐसा क्या आसमान टूट पड़ा कि आप अपनी पत्नी से इस तरह व्यवहार करें?“ स्मिता ने कहा। “स्मिता, अगर किसी इंसान का अतीत न जानो, तो कोई भी फैसला नहीं लेना चाहिए। तुम क्या जानती हो मेरी मां के बारे में? मेरी मां के स्वर्गवासी होने के बाद मैं उनकी पीतल की थाली, कटोरी और चम्मच में खाना खाता था। वह तुम्हें पसंद नहीं था। तुम बार-बार कहती थी कि उन्हें कबाड़ में दे दूं। तुम्हारे नज़रिए में वह सिर्फ़ एक पुरानी थाली-कटोरी थी। मैंने तुम्हें साफ़ शब्दों में कहा था कि तुम इन बर्तनों को लेकर कोई फैसला मत लेन...

पाप का फल

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 पाप का फल   मनुष्य को ऐसी शंका नहीं करनी चाहिये कि मेरा पाप तो कम था पर दण्ड अधिक भोगना पडा अथवा मैंने पाप तो किया नहीं पर दण्ड मुझे मिल गया! कारण कि यह सर्वज्ञ, सर्वसुहृद्, सर्वसमर्थ भगवान् का विधान है कि पाप से अधिक दण्ड कोई नहीं भोगता और जो दण्ड मिलता है, वह किसी न किसी पाप का ही फल होता है। किसी गाँव में एक सज्जन रहते थे। उनके घर के सामने एक सुनार का घर था। सुनार के पास सोना आता रहता था और वह जेवर गढ़कर देता रहता था। ऐसे वह खूब पैसे कमाता था। एक दिन उसके पास अधिक सोना जमा हो गया। रात्रि में पहरा लगाने वाले सिपाही को इस बात का पता लग गया। उस पहरेदार ने रात्रि में उस सुनार को मार दिया और जिस बक्से में सोना था, उसे उठाकर चल दिया। इसी बीच सामने रहने वाले सज्जन लघुशंका के लिये उठकर बाहर आये। उन्होंने पहरेदार को पकड़ लिया कि तू इस बक्से को कैसे ले जा रहा है? तो पहरेदार ने कहा - तू चुप रह। हल्ला मत कर। इसमें से कुछ तू ले ले और कुछ मैं ले लूँ। सज्जन बोले - मैं कैसे ले लूँ? मैं चोर थोड़े ही हूँ!  पहरेदार ने कहा - देख! तू समझ जा, मेरी बात मान ले, नहीं तो दुःख पायेगा।  पर वे ...