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Showing posts from November, 2020

साधना के सोपान

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 साधना के सोपान Image by S. Hermann & F. Richter from Pixabay एक राजा था। वह अपने राज्य का संचालन बहुत कुशलता से कर रहा था। वह न्यायप्रिय था और धर्म पर अगाध श्रद्धा रखता था। प्रजा भी उनके राज्य में रह कर स्वयं को धन्य मानती थी। उसके राज्य में कोई भी संत-महात्मा आते तो राजा उनके स्वागत के लिए स्वयं राज्य की सीमा पर उन्हें लेने जाता और आदर सहित अपने राजमहल में उनके रहने का प्रबन्ध करता। एक बार एक पहुँचे हुए संत का अनके राज्य में आगमन हुआ। संत का प्रवचन इतना प्रभावकारी था कि जब संत वहाँ से अपने आश्रम की ओर जाने लगे तो राजा भी अपना सारा राजपाट छोड़कर उनके साथ जाने के लिए तैयार हो गए। संत ने समझाया कि अभी तुम्हें अपने राज्य के लिए राजमहल में ही रहना चाहिए, लेकिन राजा नहीं माना। संत ने कहा कि ठीक है, तुम अपने राज्य की व्यवस्था करके कुछ दिनों के बाद आश्रम में आ जाना। यद्यपि प्रजा नहीं चाहती थी कि राजा किसी अन्य के हाथ में राज्य का संचालन सौप कर जाए, पर राजा की तीव्र इच्छा के आगे वह भी विवश हो गई। एक दिन राजा ने आश्रम की ओर कदम बढ़ाए तो उसके पीछे-पीछे उसकी सेना, घर-परि...

चतुर सुनार

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 चतुर सुनार Image by Manfred Richter from Pixabay एक राजा था। राजा बहुत ही बुद्धिमान था। राजा ने अपने मंत्रियों से पूछा कि ‘क्या कोई मुझसे मेरी कोई वस्तु चोरी कर सकता है ? ’ सभी मंत्रियों ने कहा - “नहीं राजन्! आपसे कोई वस्तु चोरी नहीं की जा सकती।” तभी एक मंत्री ने कहा - “राजन्! कुछ सुनार होते हैं जो व्यक्तियों के सामने से ही सोना चुरा लेते हैं और उन्हें पता भी नहीं चलता।” तो राजा ने कहा - “यह नामुमकिन है। मेरे सामने कोई भी सुनार सोना नही चुरा सकता।” उसने राज्य के सभी सुनारों को अपने दरबार मे बुलाने का आदेश दिया। आदेश के अनुसार सभी सुनार राजदरबार में आए। सभी सुनार चिंतित थे कि राजा ने किस कारण एक साथ हमें बुलाया है। राजा ने उनसे कहा कि ‘मैंने सुना है, आप लोगों के सामने से ही सोना चुरा लेते हैं और उन्हें पता भी नहीं चलता। क्या आप मेरी देख-रेख में भी सोने की चोरी कर सकते हैं ? ’ कुछ सुनारों ने कहा - “जी हां! हम एक चौथाई सोना निकाल सकते हैं।” कुछ ने कहा कि हम आधा सोना चुरा सकते है।’ तभी राम नाम के एक सुनार ने कहा कि ‘मैं पूरा सोना आपके सामने रहते हुए भी चुरा सकता हूँ...

क्या करें, क्या न करें?

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 क्या करें, क्या न करें ? Image by Susanne Jutzeler, suju-foto from Pixabay एक व्यक्ति ने अपनी कंपनी में नए C.E.O. को नियुक्त किया। प्रत्येक अधिकारी का काम करने का अपना अलग ढंग होता है। नव-नियुक्त अधिकारी ने आते ही सबसे पहले कर्मचारियों की Meeting बुलाई। सभी उनसे मिलने व उनका स्वभाव जानने के लिए बहुत उत्सुक थे। सबका परिचय लेने के बाद अधिकारी ने कहा कि मैं तुमसे कुछ प्रश्न पूछना चाहता हूँ। आप मुझे यह बताओ कि वे कौन से तरीके हैं जिनसे कंपनी को डुबोया जा सकता है। अरे! यह क्या पूछ रहे हैं ये साहब। ये कंपनी को बढ़ाने आए हैं या डुबोने। सब मौन हो कर बैठ गए। अधिकारी ने कहा कि मैं तुमसे कुछ पूछ रहा हूँ। डरने की आवश्यकता नहीं है। तुम्हारी सर्विस को कोई नुकसान नहीं होगा। बस तुम निडर होकर मुझे वे सभी उपाय बता दो। लोगों का डर कुछ कम हुआ और उनमें से एक ने उठ कर कहा कि साहब! जो कर्मचारी देर से ऑफिस आते हैं, आने के बाद भी अपना अधिकतर समय चाय पीने और गप्पे लगाने में बिता देते हैं वे कंपनी को डुबोने में बहुत सहायक सिद्ध हो सकते हैं क्योंकि उन्हें तो कंपनी द्वारा पूरा वेतन मिलता है...

जटायु का बलिदान

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 जटायु का बलिदान Image by Pezibear from Pixabay सीता हरण के पश्चात विह्वल राम, लक्ष्मण के साथ वन में भटक रहे थे। कभी किसी पशु से पूछते, तो कभी किसी पक्षी से ... कभी पेड़ की पत्तियों से पूछने लगते, “क्या तुमने मेरी सीता को देखा है ? “ वस्तुतः विक्षिप्त की भाँति पशु-पक्षियों से सीता का पता पूछने वाला वह व्यक्ति “मर्यादा पुरुषोत्तम राम“ नहीं था, वह भारत का एक सामान्य पति था जिसके लिए पत्नी “अर्धांगिनी“ थी और जो अपनी पत्नी से टूट कर प्रेम करता था। राम केवल सीता के लिए नहीं रो रहे थे, बल्कि सीता के रूप में स्वयं से अलग हो चुके अपने ही आधे हिस्से के लिए रो रहे थे। यूँ ही वन में रोते-भटकते राम को भूमि पर घायल पड़े गिद्धराज जटायु मिले। जटायु ने राम को देखते ही कहा, “आओ राम! मेरे प्राण तुम्हारी ही राह निहार रहे थे।“ राम-लक्ष्मण दौड़ कर जटायु के पास पहुँचे। राम ने भूमि पर बैठ कर घायल जटायु का शीश अपनी गोद में रख लिया और अपने अंगवस्त्र से उनके शरीर का रक्त पोंछने लगे। जटायु ने मुस्कुरा कर कहा, “रहने दो राम! यह रक्त ही मेरा आभूषण है। पुत्री सीता की रक्षा के लिए लड़ने पर प्राप्...

मृत्यु से भय या मृत्यु का भय?

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मृत्यु से भय या मृत्यु का भय ? Image by CANDICE CANDICE from Pixabay कारण और निवारण क्या आपने कभी इस प्रश्न का उत्तर खोजने का प्रयास किया है कि हमें मृत्यु का भय लगता है या मृत्यु से भय लगता है ? एक सामान्य व्यक्ति से पूछो तो वह भी यही कहेगा कि मरने से डर लगता है। वह कभी नहीं कहेगा कि मरने का डर लगता है क्योंकि वह भी अपने मन में कहीं न कहीं यह बात बिठा चुका है कि जिसका जन्म हुआ है उसका एक न एक दिन मरण अवश्य होगा। दिन के बाद रात अवश्य आएगी, सुख के बाद दुःख अवश्य आएगा, जन्म के बाद मृत्यु अवश्य होगी। जन्म होते ही वह मृत्यु की ओर एक-एक कदम बढ़ाने लगता है। मृत्यु तो उसकी मंज़िल है। मंज़िल पर पहुँच कर एक असीम सुख की प्राप्ति होती है जहाँ सारे दुःख, कष्ट-क्लेश समाप्त हो जाते हैं। भय होता है मज़िल तक पहुँचने वाले रास्ते में आने वाले दुःखों के कारण। हमें पहाड़ की चढ़ाई करनी है। हम जानते हैं कि वहाँ शिखर पर एक भव्य जिनालय बना हुआ है जिसकी वन्दना करके असीम आनन्द की अनुभूति होती है। पर रास्ते में आने वाली कठिनाइयों के बारे में सोचते हैं तो कदम पीछे हटने लगते हैं। इसी प्रकार म...