चतुर सुनार
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चतुर सुनार
Image by Manfred Richter from Pixabay
एक राजा था। राजा बहुत ही बुद्धिमान था। राजा ने अपने मंत्रियों से पूछा कि ‘क्या कोई मुझसे मेरी कोई वस्तु चोरी कर सकता है?’ सभी मंत्रियों ने कहा - “नहीं राजन्! आपसे कोई वस्तु चोरी नहीं की जा सकती।” तभी एक मंत्री ने कहा - “राजन्! कुछ सुनार होते हैं जो व्यक्तियों के सामने से ही सोना चुरा लेते हैं और उन्हें पता भी नहीं चलता।” तो राजा ने कहा - “यह नामुमकिन है। मेरे सामने कोई भी सुनार सोना नही चुरा सकता।” उसने राज्य के सभी सुनारों को अपने दरबार मे बुलाने का आदेश दिया। आदेश के अनुसार सभी सुनार राजदरबार में आए।
सभी सुनार चिंतित थे कि राजा ने किस कारण एक साथ हमें बुलाया है। राजा ने उनसे कहा कि ‘मैंने सुना है, आप लोगों के सामने से ही सोना चुरा लेते हैं और उन्हें पता भी नहीं चलता। क्या आप मेरी देख-रेख में भी सोने की चोरी कर सकते हैं?’ कुछ सुनारों ने कहा - “जी हां! हम एक चौथाई सोना निकाल सकते हैं।” कुछ ने कहा कि हम आधा सोना चुरा सकते है।’ तभी राम नाम के एक सुनार ने कहा कि ‘मैं पूरा सोना आपके सामने रहते हुए भी चुरा सकता हूँ।’ सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए कि राम, तुम यह नहीं कर सकते पर उसने फिर से कहा - “नहीं! मैं यह कर सकता हूँ।”
राजा ने आदेश दिया कि अगर ऐसा तुम कर पाओगे तो तुम्हारा विवाह मैं अपनी बेटी से करवाऊँगा और अपने राज्य का आधा हिस्सा तुम्हें दे दूँगा। यह भी कहा कि यह पूरा काम मेरी और पहरेदारों की निगरानी में होगा। साथ ही तुम्हें अलग से वस्त्र दिए जाएंगे। तुम यहां काम करते वक्त उन्हें ही पहनोगे और जाते वक्त अपने वस्त्र ही पहन कर जाओगे। राम ने कहा - “ठीक है। जैसी आप की आज्ञा।” राम ने दूसरे दिन से अपना काम आरंभ किया।
राजा की देख-रेख में एक शिव जी की सोने की मूर्ति उसे बनाने के लिए दी गई। धीरे-धीरे मूर्ति का काम चलता रहा। वह दिन भर राजा के यहां शिव जी की सोने की मूर्ति बनाता और एक ध्यान देने वाली बात यह थी कि वह रात में शिव जी की पीतल की मूर्ति अपने घर में बनाता। यह क्रम चलता रहा। लगभग एक हफ्ते बाद मूर्ति बनकर तैयार हुई और राम ने राजा से कहा - “अब मुझे मूर्ति चमकाने के लिए ताजा दही चाहिए।” शाम का वक्त था। इस समय ताज़ा दही मिलना मुश्किल था।
पहरेदारों को आदेश दिया गया कि ताजा दही ढूंढ कर लाया जाए। पहरेदार बहुत परेशान हुए, पर उन्हें ताज़ा दही नहीं मिला। तभी अचानक एक युवती ताजा दही मटके में बेच रही थी। उसे पहरेदार दरबार में लेकर आए और राजा ने उस पूरे मटके को खरीद कर राम को दे दिया तथा युवती को पैसे देकर जाने को कहा। राम ने सोने की मूर्ति उस मटके में डाली और निकाल कर उसे चमका दिया। फिर राजा ने अपने स्वर्ण विशेषज्ञ को बुलाया और मूर्ति की जांच करने को कहा और पूछा कि इस मूर्ति में कितना सोना है। स्वर्ण विशेषज्ञ आश्चर्यचकित हो गए कि राजन्! इसमें तो एक अंश भी सोने का नहीं है। यह जानकर राजा भी बहुत हैरान हुआ कि पूरा काम मेरी देख-रेख में हुआ है, फिर भी ऐसा कैसे हो सकता है?
राजा ने राम से पूछा कि तुमने ऐसा कैसे किया? उसने राजा से कहा कि आप सच जानकर मुझे सजा तो नही देंगे। राजा ने वायदा किया कि नहीं, ऐसा नहीं होगा। राम ने बताया कि दही बेचने वाली मेरी बहन थी। मैंने उस मटके में से पीतल की मूर्ति निकाली थी और सोने की मूर्ति डाल दी थी। राजा उसकी चतुराई से अचम्भित रह गए। उन्होंने वायदे के अनुसार अपनी बेटी का ब्याह उस से कर दिया और आधे राज्य को उसे सौंप दिया।
इस प्रकार इन्सान अपनी चतुराई से कोई भी असम्भव कार्य कर सकता है।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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धन्यवाद।
वीरबल अकबर के किस्सौं की तरह विवैक और बुद्धि बल का सकारात्मक सोच के साथ किया गया प्रेरणा प्रद प्रसंग अच्छा लगा।
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