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Showing posts from October, 2021

असाधारण प्रतिभा

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 असाधारण प्रतिभा Photo by Jeff Wang from Pexels यह स्वामी विवेकानंद के बचपन की घटना है। उस वक्त वह नरेंद्र के नाम से जाने जाते थे। बचपन से ही उनमें असाधारण प्रतिभा दिखाई देती थी। उनके शब्द उनके व्यक्तित्व के समान ही प्रभावशाली थे। जब वह बात करते तो हर कोई ध्यानमग्न हो अपने काम को भूल कर उन्हें सुनता था। एक दिन स्कूल में नरेंद्र एक क्लास के ब्रेक के दौरान अपने दोस्तों से बात कर रहे थे। इस बीच शिक्षक क्लास में आ पहुंचे और उन्होंने अपना विषय पढ़ाना शुरू कर दिया। लेकिन छात्र, नरेंद्र की बातचीत सुनने में ही लीन रहे। उन्हें कक्षा में शिक्षक के आने और उनके द्वारा पढ़ाए जाने का पता ही नहीं चला। कुछ समय तक शिक्षक महोदय तल्लीनता से पढ़ाते रहे। लेकिन उन्हें आभास हुआ कि कक्षा में विद्यार्थियों के बीच कुछ कानाफूसी चल रही है। शिक्षक ने नाराजगी दिखाते हुए पूछा, ‘क्या चल रहा है’ ? कोई जवाब न मिलने पर हरेक छात्र से पूछा। ‘बताओ अब तक मैंने क्या पढ़ाया था’ ? कोई भी विद्यार्थी उत्तर न दे सका। लेकिन नरेंद्र को सब कुछ पता था। वह अपने दोस्तों से बात करते हुए भी शिक्षक के व्याख्यान को सुन...

लकड़ी का एक कटोरा

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 लकड़ी का एक कटोरा एक वृद्ध व्यक्ति अपने बहु-बेटे के यहाँ शहर रहने गया। उम्र के इस पड़ाव पर वह अत्यंत बूढ़ा व अशक्त हो चुका था। उसके हाथ कांपते थे और दिखाई भी कम देता था। वे एक छोटे से घर में रहते थे। पूरा परिवार और उसका चार वर्षीया पोता एक साथ ही खाना खाते थे। लेकिन वृद्ध होने के कारण उस व्यक्ति को खाने में बहुत दिक्कत होती थी। कभी मटर के दाने उसकी चम्मच से निकल कर फर्श पर बिखर जाते तो कभी हाथ से दूध छलक कर मेज़ पर गिर जाता। बहु-बेटे कुछ दिनों तक तो ये सब सहन करते रहे पर अब उन्हें अपने पिता के इस काम से चिढ़ होने लगी। लड़के ने कहा - हमें इनका कुछ करना पड़ेगा। बहु ने भी हाँ में हाँ मिलाई और बोली - आखिर कब तक हम इनकी वजह से अपने खाने का मज़ा किरकिरा करेंगे और हम इस तरह हमारी चीज़ों का नुकसान होते हुए भी नहीं देख सकते। अगले दिन जब खाने का वक़्त हुआ तो बेटे ने एक पुरानी मेज को कमरे के एक कोने में लगा दिया और अपने बूढ़े बाप से बोला कि पिता जी! आप यहां पर बैठ कर खाना खाया करो। बूढ़ा पिता वहीं अकेले में बैठ कर अपना भोजन करने लगा। यहाँ तक कि उनके खाने-पीने के बर्तनों की जगह ...

गुरु का महत्व

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 गुरु का महत्व एक पंडित रोज़ रानी के पास कथा करता था। कथा के अंत में सबको कहता कि ‘राम कहे तो बंधन टूटे’। तभी पिंजरे में बंद तोता बोलता - ‘यूं मत कहो रे पंडित झूठे’। पंडित को क्रोध आता कि ये सब क्या सोचेंगे। रानी क्या सोचेगी। पंडित अपने गुरु के पास गया। गुरु को सब हाल बताया। गुरु तोते के पास गया और पूछा - तुम ऐसा क्यों कहते हो ? तोते ने कहा - ‘मैं पहले खुले आकाश में उड़ता था। एक बार मैं एक आश्रम में जहां सब साधू-संत राम-राम बोल रहे थे, वहां बैठा तो मैंने भी राम-राम बोलना शुरू कर दिया। एक दिन मैं उसी आश्रम में राम-राम बोल रहा था। तभी एक संत ने मुझे पकड़ कर पिंजरे में बंद कर लिया। फिर मुझे एक-दो श्लोक सिखाये। आश्रम में एक सेठ ने संत को कुछ पैसे देकर मुझे खरीद लिया। अब सेठ ने मुझे चांदी के पिंजरे में रखा। मेरा बंधन बढ़ता गया। निकलने की कोई संभावना न रही। एक दिन उस सेठ ने राजा से अपना काम निकलवाने के लिए मुझे राजा को भेंट कर दिया। राजा ने खुशी-खुशी मुझे ले लिया, क्योंकि मैं राम-राम बोलता था। रानी धार्मिक प्रवृत्ति की थी तो राजा ने रानी को दे दिया। अब मैं कैसे कहूँ कि ‘राम...

मोक्ष

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मोक्ष Photo by Hiếu Hoàng from Pexels एक राजा ने, जिसके कोई औलाद नहीं थी, एक सात मंज़िला महल बनवाया और अपनी सारी दौलत को अलग-अलग मंज़िलों पर फैला दिया। पहली मंज़िल पर कौड़ियाँ। दूसरी मंज़िल पर पैसे। तीसरी मंज़िल पर रुपये। चौथी मंज़िल पर मोहरें। पाँचवीं मंज़िल पर मोती। छठी मंज़िल पर अच्छे-अच्छे हीरे-जवाहरात और सातवीं मंज़िल पर ख़ुद बैठ गया। शहर वालों को ख़बर दे दी कि जिसको जो मिले ले जाये। लेकिन जो एक बार आये, वह फिर दूसरी बार न आये। लोग दौड़कर आने लगे। बहुत-से लोग तो पैसों की गठरियाँ बाँधकर ले गये। जो उनसे जरा ज़्यादा समझदार थे, वे रुपयों की गठरियाँ बाँधकर घर ले गये। जो और आगे बढ़े, वे चाँदी ले गये। कुछ लोगों ने कहा कि नहीं, और आगे जाना चाहिए। वे मोहरें लेकर वापस आ गये। जो और आगे गये वे मोती लेकर आ गये। जो और ज़्यादा समझदार थे, वे उनसे भी आगे गये और हीरे-जवाहरात लेकर आ गये। एक व्यक्ति कहने लगा - नहीं। मैं सबसे ऊपर पहुँच कर देखूँगा। वहाँ क्या है ? वह जब ऊपर पहुँचा तो देखा कि वहाँ राजा ख़ुद बैठा हुआ है। राजा बैठा यह इंतज़ार कर रहा था कि क्या उसकी प्रजा में कोई ऐसा ...

घमंडी का सिर नीचा

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 घमंडी का सिर नीचा Photo by Og Mpango from Pexels प्राचीन काल की बात है। किसी गांव में चंद्रभूषण नाम का एक विद्वान पंडित रहता था। उसकी वाणी में गजब का आकर्षण था। वह भागवत कथा सुनाने में निपुण था। उसकी वाणी से कथासार सुनकर लोग मुग्ध हो जाते थे। इसीलिए उसके यहां पर रोज कथा सुनने वालों की भीड़ लगी रहती थी। दूर-दूर से लोग चंद्रभूषण से भागवत कथा सुनने आते थे। उसी गांव में एक दूसरे पंडित जी भी रहते थे। नाम था नंबियार। पढ़े-लिखे तो बहुत थे पर थे बहुत घमंडी। स्वयं को बहुत विद्वान समझा करते थे। सोचते कि कहां कल का छोकरा चंद्रभूषण, जो अटक-अटक कर कथा पढ़ता है और कहां मैं शास्त्रों का मर्म जानने वाला पंडित। किंतु जब भी नंबियार, चंद्रभूषण के घर के सामने से गुज़रते, उसके श्रोताओं की भीड़ देखकर उनका मन ईर्ष्या से भर उठता। मन ही मन सोचते - यह चंद्रभूषण क्या जादू करता है कि इसके यहां दिनों दिन श्रोताओं की भीड़ बढ़ती जा रही है। ऐसे तो मेरी नाक नीची हो जाएगी। मुझे कुछ करना चाहिए। एक दिन की बात है। नंबियार थके हारे घर लौटे। भूख भी ज़ोरों की लगी थी। लेकिन घर आकर देखा तो उसकी पत्नी दिख...

सच्ची फरियाद

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 सच्ची फरियाद Photo by Jess Bailey Designs from Pexels एक बार एक राजा था। वह जब भी मंदिर जाता तो 2 फ़क़ीर उस मंदिर के दाएं और बाएं बैठे मिला करते थे। दाईं तरफ़ वाला कहता - “हे भगवान! तूने राजा को बहुत कुछ दिया है। मुझे भी दे दे!” बाईं तरफ़ वाला कहता - “ऐ राजा! भगवान ने तुझे बहुत कुछ दिया है। मुझे भी कुछ दे दे!” दाईं तरफ़ वाला फ़क़ीर बाईं तरफ़ वाले से कहता - “अरे! भगवान से माँग! बेशक वही सबसे बेहतर सुनने वाला है!” बाईं तरफ़ वाला जवाब देता - “चुप कर बेवक़ूफ़! राजा चाहे तो हमें भी बहुत कुछ दे सकता है। भगवान को किसने देखा है ? ” एक बार राजा ने अपने वज़ीर को बुलाया और कहा कि मंदिर में दाईं तरफ जो फ़क़ीर बैठता है, वह हमेशा भगवान से मांगता है तो बेशक भगवान् उसकी ज़रूर सुनेगा। लेकिन जो बाईं तरफ बैठता है, वह हमेशा मुझसे फ़रियाद करता रहता है। तो तुम ऐसा करो कि एक बहुत बड़े-से बर्तन में खीर भर के उसमें अशर्फियाँ डाल दो और वह उसको दे आओ! वज़ीर ने ऐसा ही किया। अब वह फ़क़ीर मज़े से खीर खाते-खाते दूसरे फ़क़ीर को चिढ़ाता हुआ बोला - “हुंह! बहुत आया ‘भगवान् देगा’ कहने वाला। यह देख ...

नमक

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 नमक “बहू! आज किसी भी सब्जी या दाल में नमक मत डालना।” “क्यों माँजी ? ” “सभी के लिए हफ्ते में एक दिन भोजन में नमक छोड़ने का नियम बना रही हूँ।” घर की नई नवेली छोटी बहू को अपने कमरे में बुलाकर सास ने समझाया और सास की बात सुन छोटी बहू ने सर हिलाकर सहमति जताई। “ठीक है माँजी!” छोटी बहू सास के कमरे से बाहर जाने को मुड़ी ही थी कि सास ने फिर से छोटी बहू को टोका। “सुन बहू!” “जी माँजी ? ” “यह बात तुम किसी को मत बताना। भोजन के वक्त मैं खुद सभी को बता दूंगी।” “जी माँजी!” घर की छोटी बहू मुस्कुराते हुए अपनी सास के कमरे से बाहर चली गई। छोटी बहू के जाते ही उस घर की बड़ी बहू ने सास के कमरे में प्रवेश किया। “माँजी! लाइए आपके सिर में तेल लगा दूं।” यह कहते हुए उसने अपने साथ लाई ठंडे तेल की शीशी का ढक्कन खोल हथेली भर तेल उड़ेल लिया और सास ने भी मुस्कुरा कर उसका स्वागत किया। “माँजी! आपने आज छोटी को अपने कमरे में बुलाया, कोई खास बात थी क्या ? ” अपनी सास के माथे पर तेल की चंपी करती बड़ी बहू ने जानना चाहा। “डांटने के लिए बुलाया था मैंने उसे!” “क्यों ? ” “हर रोज भोजन में नमक ज्यादा डाल देती है।...