मोक्ष
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मोक्ष
Photo by Hiếu Hoàng from Pexels
एक राजा ने, जिसके कोई औलाद नहीं थी, एक सात मंज़िला महल बनवाया और अपनी सारी दौलत को अलग-अलग मंज़िलों पर फैला दिया।
पहली मंज़िल पर कौड़ियाँ।
दूसरी मंज़िल पर पैसे।
तीसरी मंज़िल पर रुपये।
चौथी मंज़िल पर मोहरें।
पाँचवीं मंज़िल पर मोती।
छठी मंज़िल पर अच्छे-अच्छे हीरे-जवाहरात और सातवीं मंज़िल पर ख़ुद बैठ गया।
शहर वालों को ख़बर दे दी कि जिसको जो मिले ले जाये। लेकिन जो एक बार आये, वह फिर दूसरी बार न आये।
लोग दौड़कर आने लगे। बहुत-से लोग तो पैसों की गठरियाँ बाँधकर ले गये।
जो उनसे जरा ज़्यादा समझदार थे, वे रुपयों की गठरियाँ बाँधकर घर ले गये।
जो और आगे बढ़े, वे चाँदी ले गये।
कुछ लोगों ने कहा कि नहीं, और आगे जाना चाहिए। वे मोहरें लेकर वापस आ गये।
जो और आगे गये वे मोती लेकर आ गये।
जो और ज़्यादा समझदार थे, वे उनसे भी आगे गये और हीरे-जवाहरात लेकर आ गये।
एक व्यक्ति कहने लगा - नहीं। मैं सबसे ऊपर पहुँच कर देखूँगा। वहाँ क्या है? वह जब ऊपर पहुँचा तो देखा कि वहाँ राजा ख़ुद बैठा हुआ है।
राजा बैठा यह इंतज़ार कर रहा था कि क्या उसकी प्रजा में कोई ऐसा व्यक्ति है, जो नीचे की सब वस्तुओं को छोड़कर ऊपर उसके पास पहुँचेगा।
राजा ने उसका स्वागत किया और अपने सिर से ताज उतारकर उसके सिर पर रख दिया और उसको राजा बना दिया। दुर्भाग्यवश हर जीव के भाग्य में यह ज्ञान नहीं होता कि जो हम इस जन्म में करते हैं, उसी का फल हमें अगले जन्म में भुगतना पड़ता है।
दुःख की बात है कि बहुत-से लोग अपने जीवन को व्यर्थ के कार्यों में गँवा देते हैं। जो बेटे-बेटियों में ही उलझे रहते हैं। वे अपनी उम्र पैसे इकट्ठे करने में गुज़ार देते हैं।
जो लोग थोड़े समझदार हैं, वे रुपये कमा लेते हैं।
जो लोग नित्य नियम, पूजा-पाठ, व्रत आदि रखते हैं, वे चाँदी ले लेते हैं।
जिन्होंने नौ दरवाज़े छोड़कर अंदर का पट खोला, वे अन्तर्दृष्टि से ऊपर चढ़े। यानी मृत्युलोक को छोड़कर सहस्रदल-कँवल में पहुँचे। उन्होंने मोहरें ले ली।
जो ब्रह्म में पहुँचे, उन्होंने मोती ले लिए।
जो पारब्रह्म में पहुँचे, उन्होंने हीरे-जवाहरात ले लिए।
जिसने कहा कि नहीं! मुझे तो धुर अंत तक पहुँचना है। वह सबसे ऊपर गया तो उसने आगे शहंशाह अकाल पुरुष प्रभु श्रीहरि जी को बैठे देखा। श्रीहरि जी अकाल पुरुष ने उसको अपने साथ मिला लिया।
विचार करें। आपके अंदर करोड़ों खंड-ब्रह्मांड हैं। करोड़ों ख़ुशियाँ हैं, सुख और शांति है। ख़ुद परमात्मा श्रीहरि जी आपके अंदर हैं। मनुष्य-चोले का मक़सद उस परमात्मा श्रीहरि जी तक पहुँचना है। हमें चाहिए कि जो कुछ बन सकें इसी जन्म में उसका प्रयास कर लें और मोक्ष को प्राप्त करें।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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