मेघनाद का वध

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मेघनाद का वध

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जानिये रामायण का एक अनजान सत्य।

केवल लक्ष्मण ही मेघनाद का वध कर सकते थे।

क्या कारण था? पढ़िये पूरी कथा।

हनुमान जी की रामभक्ति की गाथा संसार भर में गाई जाती है। लक्ष्मण जी की भक्ति भी अद्भुत थी। लक्ष्मण जी की कथा के बिना श्री राम कथा पूर्ण नहीं है।

अगस्त्य मुनि अयोध्या आए और लंका युद्ध का प्रसंग छिड़ गया।

भगवान श्री राम ने बताया कि उन्होंने कैसे रावण और कुंभकर्ण जैसे प्रचंड वीरों का वध किया और लक्ष्मण ने भी इंद्रजीत और अतिकाय जैसे शक्तिशाली असुरों को मारा।

अगस्त्य मुनि बोले - श्री राम, बेशक रावण और कुंभकर्ण प्रचंड वीर थे। लेकिन सबसे बड़ा वीर तो मेघनाद ही था। उसने अंतरिक्ष में स्थित होकर इंद्र से युद्ध किया था और बांधकर लंका ले आया था।

ब्रह्मा ने इंद्रजीत से दान के रूप में इंद्र को मांगा तब इंद्र मुक्त हुए थे। लक्ष्मण ने उसका वध किया। इसलिए वे सबसे बड़े योद्धा हुए।

श्री राम को आश्चर्य हुआ लेकिन भाई की वीरता की प्रशंसा से वह खुश थे। फिर भी उनके मन में जिज्ञासा पैदा हुई कि आखिर अगस्त्य मुनि ऐसा क्यों कह रहे हैं कि इंद्रजीत का वध रावण से ज्यादा मुश्किल था।

अगस्त्य मुनि ने कहा - प्रभु! इंद्रजीत को वरदान था कि उसका वध वही कर सकता था जो

  1. चौदह वर्षों तक न सोया हो।

  2. जिसने चौदह साल तक किसी स्त्री का मुख न देखा हो।

  3. चौदह साल तक भोजन न किया हो।

श्री राम बोले - परंतु मैं वनवास काल में चौदह वर्षों तक नियमित रूप से लक्ष्मण के हिस्से का फल-फूल देता रहा।

मैं सीता के साथ एक कुटी में रहता था। बगल की कुटी में लक्ष्मण थे। फिर सीता का मुख भी न देखा हो और चौदह वर्षों तक सोए न हों, ऐसा कैसे संभव है।

अगस्त्य मुनि सारी बात समझकर मुस्कुराए। प्रभु से कुछ छुपा है भला! दरअसल सभी लोग सिर्फ श्री राम का गुणगान करते थे। लेकिन प्रभु चाहते थे कि लक्ष्मण के तप और वीरता की चर्चा भी अयोध्या के घर-घर में हो।

अगस्त्य मुनि ने कहा - क्यों न लक्ष्मण जी से पूछा जाए?

लक्ष्मण जी आए। प्रभु ने कहा कि आपसे जो पूछा जाए उसे सच-सच कहिएगा।

प्रभु ने पूछा - हम तीनों चौदह वर्षों तक साथ रहे फिर तुमने सीता का मुख कैसे नहीं देखा? फल दिए गए, फिर भी अनाहारी कैसे रहे? और 14 साल तक सोए भी नहीं, यह कैसे हुआ?

लक्ष्मण जी ने बताया - भैया! जब हम भाभी को तलाशते ऋष्यमूक पर्वत गए तो सुग्रीव ने हमें उनके आभूषण दिखाकर पहचानने को कहा। आपको स्मरण होगा कि मैं तो सिवाय उनके पैरों के नूपुर के कोई आभूषण नहीं पहचान पाया था क्योंकि मैंने कभी भी उनके चरणों के ऊपर मुख की ओर देखा ही नहीं।

चौदह वर्ष नहीं सोने के बारे में भी सुनिए - आप औऱ माता एक कुटिया में सोते थे। मैं रात भर बाहर धनुष पर बाण चढ़ाए पहरेदारी में खड़ा रहता था। निद्रा ने मेरी आंखों पर कब्जा करने की कोशिश की तो मैंने निद्रा को अपने बाणों से बेध दिया था। निद्रा ने हारकर स्वीकार किया कि वह चौदह साल तक मुझे स्पर्श नहीं करेगी लेकिन जब श्री राम का अयोध्या में राज्याभिषेक हो रहा होगा और मैं उनके पीछे सेवक की तरह छत्र लिए खड़ा रहूँगा, तब वह मुझे घेरेगी।

आपको याद होगा राज्याभिषेक के समय मेरे हाथ से छत्र गिर गया था।

अब मैं 14 साल तक अनाहारी कैसे रहा, वह भी सुनो। मैं जो फल-फूल लाता था आप उसके तीन भाग करते थे। एक भाग देकर आप मुझसे कहते थे - लक्ष्मण फल रख लो।

आपने कभी फल खाने को नहीं कहा - फिर बिना आपकी आज्ञा के मैं उसे खाता कैसे?

मैंने उन्हें संभाल कर रख दिया। सभी फल उसी कुटिया में अभी भी रखे होंगे।

प्रभु के आदेश पर लक्ष्मण जी चित्रकूट की कुटिया में से उन सारे फलों की टोकरी लेकर आए और दरबार में रख दिया। फलों की गिनती हुई। सात दिन के हिस्से के फल नहीं थे।

प्रभु ने कहा - इसका अर्थ है कि तुमने सात दिन तो आहार लिया था?

लक्ष्मण जी ने सात फल कम होने के बारे बताया। उन सात दिनों में फल आए ही नहीं।

  1. जिस दिन हमें पिताश्री के स्वर्गवासी होने की सूचना मिली। हम निराहारी रहे।

  2. जिस दिन रावण ने माता का हरण किया उस दिन फल लाने कौन जाता?

  3. जिस दिन समुद्र की साधना कर आप उससे राह मांग रहे थे।

  4. जिस दिन आप इंद्रजीत के नागपाश में बंध कर दिन भर अचेत रहे।

  5. जिस दिन इंद्रजीत ने मायावी सीता को काटा था और हम शोक में रहे।

  6. जिस दिन मेघनाद ने मुझे शक्ति मारी।

  7. और जिस दिन आपने रावण-वध किया।

इन दिनों में हमें भोजन की सुध कहां थी? विश्वामित्र मुनि से मैंने एक अतिरिक्त विद्या का ज्ञान लिया था - बिना आहार किए जीने की विद्या। उसके प्रयोग से मैं चौदह साल तक अपनी भूख को नियंत्रित कर सका जिससे इंद्रजीत मारा गया।

भगवान श्री राम ने लक्ष्मण जी की तपस्या के बारे में सुनकर उन्हें हृदय से लगा लिया।

ऐसी थी लक्ष्मण की तपस्या और उनकी वीरता का रहस्य!

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

🙏🙏🙏


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