दिव्य दर्पण
👼👼💧💧👼💧💧👼👼 दिव्य दर्पण Image by Roland Steinmann from Pixabay एक गुरुकुल के आचार्य अपने शिष्य की सेवा से बहुत प्रभावित हुए। विद्या पूरी होने के बाद जब शिष्य विदा होने लगा तो गुरु ने उसे आशीर्वाद के रूप में एक “दर्पण” दिया। वह साधारण दर्पण नहीं था। उस दिव्य दर्पण में किसी भी व्यक्ति के मन के भाव को दर्शाने की क्षमता थी। शिष्य, गुरु जी के इस आशीर्वाद से बहुत प्रसन्न था। उसने सोचा कि चलने से पहले क्यों न दर्पण की क्षमता की जांच कर ली जाए। परीक्षा लेने की जल्दबाजी में उसने दर्पण का मुंह सबसे पहले गुरुजी के सामने कर दिया। शिष्य को तो सदमा लग गया। दर्पण यह दर्शा रहा था कि गुरुजी के हृदय में मोह, अहंकार, क्रोध आदि दुर्गुण स्पष्ट नजर आ रहे हैं। मेरे आदर्श, मेरे गुरु जी इतने अवगुणों से भरे हैं, यह सोचकर वह बहुत दुःखी हुआ। दुःखी मन से वह दर्पण लेकर गुरुकुल से रवाना तो हो गया लेकिन रास्ते भर मन में एक ही बात चलती रही कि मैं तो गुरुजी को समस्त दुर्गुणों से रहित एक आदर्श पुरुष समझता था लेकिन दर्पण ने तो कुछ और ही बता दिया। उसके हाथ में दूसरों को परखने का यंत्र आ गया था, इसलिए उसे जो मिलत...