ऋषि और एक चूहा

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ऋषि और एक चूहा

Image by Melanie from Pixabay

एक वन में एक ऋषि रहते थे। उनके डेरे पर बहुत दिनों से एक चूहा भी रहता आ रहा था। यह चूहा ऋषि से बहुत प्यार करता था। जब वे तपस्या में मग्न होते तो वह बहुत आनंद से उनके पास बैठा भजन सुनता रहता। यहाँ तक कि वह स्वयं भी ईश्वर की उपासना करने लगा था, लेकिन कुत्ते-बिल्ली और चील-कौवे आदि से वह सदा डरा-डरा और सहमा हुआ सा रहता।

एक बार ऋषि के मन में उस चूहे के प्रति बहुत दया आ गयी। वे सोचने लगे कि यह बेचारा चूहा हर समय डरा-सा रहता है, क्यों न इसे शेर बना दिया जाए, ताकि इस बेचारे का डर समाप्त हो जाए और यह बेधड़क होकर हर स्थान पर घूम सके। ऋषि बहुत बड़ी दैवीय शक्ति के स्वामी थे। उन्होंने अपनी शक्ति के बल पर उस चूहे को शेर बना दिया और सोचने लगे कि अब यह चूहा किसी भी जानवर से नहीं डरेगा और निर्भय होकर पूरे जंगल में घूम सकेगा।

धीरे-धीरे चूहे से बिल्ली और बिल्ली से कुत्ता बनाने के बजाय उसे सीधे शेर ही बना दिया, लेकिन चूहे से शेर बनते ही चूहे की सारी सोच बदल गई। वह सारे वन में बेधड़क घूमता। उससे अब सारे जानवर डरने लगे और प्रणाम करने लगे। उसकी जय-जयकार होने लगी, किन्तु ऋषि यह बात जानते थे कि यह मात्र एक चूहा है। यह बनावटी शेर है, शेरनी का पैदा किया हुआ वास्तविकता में शेर नहीं है।

अतः ऋषि उससे चूहा समझकर ही व्यवहार करते। यह बात चूहे को पसंद नहीं आई कि कोई भी उसे चूहा समझ कर व्यवहार करे। वह सोचने लगा कि ऐसे तो दूसरे जानवरों पर भी बुरा असर पड़ेगा। अब बाकी जानवर उसका जितना मान करते हैं, उससे अधिक घृणा और अनादर करना आरम्भ कर देंगे।

अतः चूहे ने सोचा कि क्यों न मैं इस ऋषि को ही मार डालूं, फिर न रहेगा बाँस, न बजेगी बांसुरी। यही सोचकर वह ऋषि को मारने के लिए चल पड़ा। ऋषि ने जैसे ही क्रोध से भरे शेर को अपनी ओर आते देखा तो वे उसके मन की बात समझ गये। उनको शेर पर बहुत क्रोध आ गया।

अतः उसका घमंड तोड़ने के लिए ऋषि ने अपनी दैवीय शक्ति से उसे एक बार फिर चूहा बना दिया। अंत में चूहा अपने व्यवहार के लिए बहुत शर्मिंदा हुआ, लेकिन अब क्या हो सकता था।

शिक्षा -

दोस्तों! हमें कभी भी अपने हितैषी का अहित नहीं करना चाहिए, चाहे हम कितने ही बलशाली क्यों न हो जायें। हमें उन लोगों को हमेशा याद रखना चाहिए जिन्होंने हमारे बुरे वक्त में हमारा साथ दिया है। इसके अलावा हमें अपने बीते वक्त को भी नहीं भूलना चाहिए। चूहा यदि अपनी असलियत याद रखता तो उसे फिर से चूहा नहीं बनना पड़ता। बीता हुआ समय हमें घमंड से बाहर निकालता है..!!

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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