Posts

Showing posts from July, 2024

सुमिरन का स्वाद

Image
👼👼💧💧👼💧💧👼👼 सुमिरन का स्वाद Image by Monika from Pixabay मेरी बच्ची बहुत छोटी थी, अब तक दाँत भी नहीं निकले थे। बच्चों के हाथ में कुछ खिलौना आदि जो आया, वह मुँह में डालते हैं वैसे ही उसे भी हम जो चीज देते थे वह मुँह में डाल देती थी। हम भी मजा लेते थे। कभी-कभी कुछ देकर छीन लेते थे। कभी चुपचाप रहती और कभी रो देती थी। एक बार मेरी बुआ ने उसके हाथ में एक आम दे दिया। अब दाँत तो थे नहीं और हम भी अपनी बातों में मस्त थे। कुछ समय बाद हमारा ध्यान उस आम पर गया। जैसे ही हमने वह आम उसके हाथों से लिया, वह जोरों से रोने लगी। अब हमने उसे कुछ खिलौने देने चाहे, तो उसका इशारा आम की ओर ही था। जब हमने उस आम पर गौर किया तो आम पर थोड़ा सा छिद्र हो गया था, जिसमें से वह रस पी रही थी। तब हम समझ गये कि वह उसी आम के लिये ही क्यों रो रही थी। उसे उस आम का रस इतना मीठा लगा कि कोई भी खिलौना उसे पसंद नहीं आ रहा था। अब थोड़ा गौर करने वाली बात यह है कि हम भी बिना दाँतों वाले बच्चे की तरह ही हैं। “भगवत्नाम” रुपी आम हमें भी मिल चुका है, पर हम खिलौनों (रिश्तेदार, समाज, व्यापार आदि) को ही पकड़े बैठे हैं। जब हम नाम का र...

कभी भी हिम्मत न हारें

Image
👼👼💧💧👼💧💧👼👼 कभी भी हिम्मत न हारें Image by Petra from Pixabay एक बार की बात है कि किसी तालाब में दो मेंढक रहते थे, जिनमें से एक बहुत मोटा था और दूसरा पतला। सुबह सवेरे जब वे दोनों खाने की तलाश में निकले थे, तो अचानक वे दोनों एक दूध के बड़े बर्तन में गिर गये, जिसके किनारे बहुत चिकने थे और इसी वजह से वे उसमें से बाहर नहीं निकल पा रहे थे। दोनों काफ़ी देर तक दूध में तैरते रहे। उन्हें लगा कि कोई इंसान आएगा और उनको वहाँ से निकाल देगा, लेकिन घंटों तक वहाँ कोई नहीं आया। अब तो उनकी जान निकली जा रही थी। मोटा मेंढक जो अब पैर चलाते-चलाते थक गया था, बोला कि मुझ से अब तैरा नहीं जा रहा और कोई बचाने भी नहीं आ रहा है। अब तो डूबने के अलावा और कोई चारा ही नहीं बचा है। पतले वाले ने उसे थोड़ा ढाँढस बंधाते हुए कहा कि मित्र! कुछ देर और मेहनत से तैरते रहो। ज़रूर कुछ देर बाद कोई न कोई हल निकलेगा। इसी तरह फिर से कुछ घंटे बीत गये। मोटे मेंढक ने अब बिल्कुल उम्मीद छोड़ दी और बोला, मित्र मैं अब पूरी तरह थक चुका हूँ और अब नहीं तैर सकता। मैं तो डूबने जा रहा हूँ। दूसरे मेंढक ने उसे बहुत रोका लेकिन वह जिंदगी से हार...

फ़कीर और मौत

Image
👼👼💧💧👼💧💧👼👼 फ़कीर और मौत Image by dae jeung kim from Pixabay बहुत पुराने समय की बात है। एक फ़कीर था, जो एक गाँव में रहता था। एक दिन शाम के वक़्त वह अपने दरवाज़े पर बैठा था, तभी उसने देखा कि एक छाया वहाँ से गुज़र रही है। फ़कीर ने उसे रोककर पूछा - कौन हो तुम? छाया ने उत्तर दिया - मैं मौत हूँ और गाँव जा रही हूँ क्योंकि गाँव में एक महामारी आने वाली है। छाया के इस उत्तर से फ़कीर उदास हो गया और पूछा - कितने लोगों को मरना होगा इस महामारी में। मौत ने कहा - बस हज़ार लोग। इतना कहकर मौत गाँव में प्रवेश कर गयी। महीने भर के भीतर उस गाँव में महामारी फैली और लगभग तीस हज़ार लोग मारे गए। फ़कीर बहुत क्षुब्ध हुआ और क्रोधित भी कि पहले तो केवल इंसान धोखा देते थे, अब मौत भी धोखा देने लगी। फ़कीर मौत के वापस लौटने की राह देखने लगा ताकि वह उससे पूछ सके कि उसने उसे धोखा क्यों दिया। कुछ समय बाद मौत वापस जा रही थी तो फ़कीर ने उसे रोक लिया और कहा - अब तो तुम भी धोखा देने लगी हो। तुमने तो बस हज़ार के मरने की बात की थी लेकिन तुमने तीस हज़ार लोगों को मार दिया। इस पर मौत ने जो जवाब दिया वह गौरतलब है। मौत ने कहा - मैंने त...

बन्धन की जंजीर

Image
👼👼💧💧👼💧💧👼👼 बन्धन की जंजीर Image by NoName_13 from Pixabay एक संत कुएँ पर स्वयं को जंजीर से लटका कर ध्यान करता था और कहता था कि जिस दिन यह जंजीर टूटेगी, मुझे ईश्वर मिल जायेंगे। उनसे पूरा गांव प्रभावित था। सभी उनकी भक्ति, उनके तप की तारीफ करते थे। एक व्यक्ति के मन में इच्छा हुई कि मैं भी ईश्वर दर्शन करूँ। वह भी कुएँ पर रस्सी से पैर को बाँधकर कुएँ में लटक गया और कृष्ण जी का ध्यान करने लगा। थोड़े समय बाद जब रस्सी टूटी, तो उसे कृष्ण जी ने अपनी गोद में उठा लिया और दर्शन भी दिए। तब व्यक्ति ने पूछा - आप इतनी जल्दी मुझे दर्शन देने क्यों चले आये? जबकि वे संत-महात्मा तो वर्षों से आपको बुला रहे हैं? कृष्ण बोले - वह कुएँ पर लटकते जरूर हैं, किन्तु पैर को लोहे की जंजीर से बाँधकर। उन्हें मुझसे ज्यादा जंजीर पर विश्वास है। तुमने खुद से ज्यादा मुझ पर विश्वास किया, इसलिए मैं आ गया। मित्रों! यह आवश्यक नहीं कि दर्शन में वर्षों लगें। आपकी शरणागति आपको ईश्वर के दर्शन अवश्य कराएगी और शीघ्र ही कराएगी। प्रश्न केवल इतना है आप उन पर कितना विश्वास करते हैं। “अहंकार” से जिस व्यक्ति का मन मैला है, करोड़ों क...

समस्या और समाधान

Image
👼👼💧💧👼💧💧👼👼 समस्या और समाधान Image by Mariya from Pixabay एक किसान अपने परिवार के साथ खेत में एक झोपड़ी बना कर रहता था। उसके पास चूहा, बंदर, कबूतर, मुर्गा और बकरा-बकरी भी रहते थे। सब के दिन मजे में कट रहे थे। सब को भरपूर अनाज भी खाने के लिए मिल जाता था। एक बार किसान ने अपने गोदाम में अनाज के बोरे भर कर रखे हुए थे। तभी एक चूहा उसमें घुस गया और उसने एक बोरे को काट दिया। अगले दिन किसान की पत्नी ने देखा, तो अपने पति से कहा कि ऐसे तो यह सारे बोरे कुतर डालेगा। आज इसे पकड़ने के लिए बाज़ार से पिंजरा लेकर आना। जैसे ही अगले दिन चूहे ने यह देखा कि मुझे पकड़ने के लिए पिंजरा आ गया है, तो वह अपने मित्रों के पास पहुँचा और उनसे मदद मांगी। सबसे पहले वह कबूतर के पास गया। कबूतर ने कहा कि देखो! मैं तो आकाश में उड़ने वाला परिंदा हूँ। मुझे तो इस चूहेदानी में फंसना नहीं। यह तुम्हारी समस्या है, मेरी नहीं। तुम ही जानो। फिर चूहा मुर्गे के पास गया और मित्रता का हवाला देते हुए अपनी समस्या बताई। मुर्गे ने कहा कि मैं तो किसान के बहुत काम आता हूँ। उनके नाश्ते की शुरुआत मेरी मुर्गी के अंडे खाकर ही होती है। मुझे ...

ईश्वरीय अवतार

Image
👼👼💧💧👼💧💧👼👼 ईश्वरीय अवतार Image by 钧 张 from Pixabay एक बार अकबर ने बीरबल से पूछा - तुम्हारे भगवान और हमारे खुदा में बहुत फर्क है। हमारा खुदा तो अपना पैगम्बर भेजता है, जबकि तुम्हारा भगवान बार-बार आता है। यह ईश्वर का बार-बार अवतार लेना, ये क्या बात हुई? बीरबल जो कि एक ज्ञानी हिन्दू था, बोला - जहाँपनाह! इस बात का कभी व्यवहारिक तौर पर अनुभव करवा दूँगा। आप जरा थोड़े दिनों की मोहलत दीजिए। चार-पाँच दिन बीत गये। बीरबल ने एक आयोजन किया। अकबर को यमुना जी में नौका विहार कराने ले गये। कुछ नावों की व्यवस्था पहले से ही करवा दी थी। उस समय यमुना जी छिछली न थी। उनमें अथाह जल था। बीरबल ने एक युक्ति की कि जिस नाव में अकबर बैठा था, उसी नाव में एक दासी को अकबर के नवजात शिशु के साथ बैठा दिया गया। सचमुच में वह नवजात शिशु नहीं था। मोम का बालक पुतला बनाकर उसे राजसी वस्त्र पहनाये गये थे ताकि वह अकबर का बेटा लगे। दासी को सब कुछ सिखा दिया गया था। नाव जब बीच मझधार में पहुँची और हिलने लगी, तब अरे....रे....रे....ओ....ओ.... कहकर दासी ने स्त्री-चरित्र करके बच्चे को पानी में गिरा दिया और रोने बिलखने लगी। अपने ...

मिथ्या गर्व का परिणाम

Image
👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मिथ्या गर्व का परिणाम Image by Pexels from Pixabay समुद्र तट के किसी नगर में एक धनवान वैश्य के पुत्रों ने एक कौआ पाल रखा था। वे उस कौए को अपने भोजन से बचा अन्न दे देते थे। उनकी जूठन खाने वाला वह कौआ स्वादिष्ट और पौष्टिक भोजन खाकर खूब मोटा हो गया था। इससे उसका अहंकार बहुत बढ़ गया। वह अपने से श्रेष्ठ पक्षियों को भी तुच्छ समझने लगा और उनका अपमान करने लगा। एक दिन समुद्र तट पर कुछ हंस कहीं से उड़ते हुए आकर उतरे। वैश्य के पुत्र उन हंसों की प्रशंसा कर रहे थे। यह बात कौए से सही नहीं गई। वह उन हंसों के पास गया और उसे उनमें जो सर्वश्रेष्ठ हंस प्रतीत हुआ, उससे बोला - “मैं तुम्हारे साथ प्रतियोगिता करके उड़ना चाहता हूँ।” हंस ने उसे समझाया - “भैया! हम तो दूर-दूर उड़ने वाले हैं। हमारा निवास मानसरोवर, यहाँ से बहुत दूर है। हमारे साथ प्रतियोगिता करने से तुम्हें क्या लाभ होगा? तुम हंसों के साथ कैसे उड़ सकते हो?” कौए ने गर्व में आकर कहा - “मैं उड़ने की सौ गतियां जानता हूँ और प्रत्येक से सौ योजन तक उड़ सकता हूँ। उड़ीन, अवड़ीन, प्रड़ीन, ड़ीन आदि अनेकों गतियों के नाम गिनाकर वह बकवादी कौआ बोला - “ब...