फ़कीर और मौत

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फ़कीर और मौत

Image by dae jeung kim from Pixabay

बहुत पुराने समय की बात है। एक फ़कीर था, जो एक गाँव में रहता था। एक दिन शाम के वक़्त वह अपने दरवाज़े पर बैठा था, तभी उसने देखा कि एक छाया वहाँ से गुज़र रही है।

फ़कीर ने उसे रोककर पूछा - कौन हो तुम?

छाया ने उत्तर दिया - मैं मौत हूँ और गाँव जा रही हूँ क्योंकि गाँव में एक महामारी आने वाली है।

छाया के इस उत्तर से फ़कीर उदास हो गया और पूछा - कितने लोगों को मरना होगा इस महामारी में।

मौत ने कहा - बस हज़ार लोग। इतना कहकर मौत गाँव में प्रवेश कर गयी।

महीने भर के भीतर उस गाँव में महामारी फैली और लगभग तीस हज़ार लोग मारे गए। फ़कीर बहुत क्षुब्ध हुआ और क्रोधित भी कि पहले तो केवल इंसान धोखा देते थे, अब मौत भी धोखा देने लगी।

फ़कीर मौत के वापस लौटने की राह देखने लगा ताकि वह उससे पूछ सके कि उसने उसे धोखा क्यों दिया।

कुछ समय बाद मौत वापस जा रही थी तो फ़कीर ने उसे रोक लिया और कहा - अब तो तुम भी धोखा देने लगी हो। तुमने तो बस हज़ार के मरने की बात की थी लेकिन तुमने तीस हज़ार लोगों को मार दिया।

इस पर मौत ने जो जवाब दिया वह गौरतलब है।

मौत ने कहा - मैंने तो बस हज़ार ही मारे हैं, बाकी के लोग (उनतीस हज़ार) तो भय से मर गए। उनसे मेरा कोई संबंध नहीं है।

यह कहानी मनुष्य के मन का शाश्वत रूप प्रस्तुत करती है। मनोवैज्ञानिक रूप से मानव मन पर मौत से कहीं अधिक गहरा प्रभाव भय डालता है। भय कभी बाहर से नहीं आता, बल्कि यह भीतर ही विकसित होता है।

इसलिए कहते हैं - मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।

हमारा मन जब हार जाता है तो हमारे भीतर भय का साम्राज्य कायम हो जाता है। भयभीत व्यक्ति न तो कभी बाहरी परिस्थितियों पर विजय प्राप्त कर सकता है, न ही अपनी मनःस्थिति पर।

हम जैसे सोचते हैं, हमारा शरीर और पूरा शारीरिक-तंत्र उसी प्रकार अपनी प्रतिक्रिया देता है। इंसान के मन और मस्तिष्क की क्षमता उसकी शारीरिक क्षमता से कई गुना अधिक होती है। उस गाँव में उनतीस हज़ार लोग महामारी से नहीं बल्कि भय से मर गए क्योंकि उनका मनोबल गिर गया था। इसलिये मनोबल हमेशा ऊँचा रखें, परिस्थितियाँ चाहे जो भी हों।

परिवर्तन संसार का नियम है। यह सुख और दुःख दोनों पर समानरूप से लागू होता है। संतुलित और निर्भीक मन (अच्छे अर्थों में) सफल और सार्थक जीवन जीने की सबसे बड़ी कुंजी है। अतः सदैव संतुलित रहने का प्रयास करें। एक कहावत है - मनुष्य को केवल एक ही व्यक्ति हरा सकता है और वह है मनुष्य स्वयं। एक सजग मनुष्य के लिए हताशा और निराशा कभी कोई विकल्प नहीं हो सकता। सकारात्मक रुख अपनाते हुए प्रयत्नशील और संघर्षशील रहना सदैव शक्ति और विजय का परिचायक रहा है।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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