समस्या और समाधान

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समस्या और समाधान

Image by Mariya from Pixabay

एक किसान अपने परिवार के साथ खेत में एक झोपड़ी बना कर रहता था। उसके पास चूहा, बंदर, कबूतर, मुर्गा और बकरा-बकरी भी रहते थे। सब के दिन मजे में कट रहे थे। सब को भरपूर अनाज भी खाने के लिए मिल जाता था।

एक बार किसान ने अपने गोदाम में अनाज के बोरे भर कर रखे हुए थे। तभी एक चूहा उसमें घुस गया और उसने एक बोरे को काट दिया। अगले दिन किसान की पत्नी ने देखा, तो अपने पति से कहा कि ऐसे तो यह सारे बोरे कुतर डालेगा। आज इसे पकड़ने के लिए बाज़ार से पिंजरा लेकर आना।

जैसे ही अगले दिन चूहे ने यह देखा कि मुझे पकड़ने के लिए पिंजरा आ गया है, तो वह अपने मित्रों के पास पहुँचा और उनसे मदद मांगी।

सबसे पहले वह कबूतर के पास गया। कबूतर ने कहा कि देखो! मैं तो आकाश में उड़ने वाला परिंदा हूँ। मुझे तो इस चूहेदानी में फंसना नहीं। यह तुम्हारी समस्या है, मेरी नहीं। तुम ही जानो।

फिर चूहा मुर्गे के पास गया और मित्रता का हवाला देते हुए अपनी समस्या बताई। मुर्गे ने कहा कि मैं तो किसान के बहुत काम आता हूँ। उनके नाश्ते की शुरुआत मेरी मुर्गी के अंडे खाकर ही होती है। मुझे इस पिंजरे से कोई नुकसान नहीं है। यह तुम्हारी समस्या है, मेरी नहीं। तुम ही जानो।

मन को मसोसता हुआ चूहा बकरे के पास गया। बकरे ने कहा कि देखो! मैं तो इस पचड़े में पड़ता नहीं। मेरी बकरी का दूध किसान के बच्चे पीते हैं। मैं इस बारे में तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता। यह तुम्हारी समस्या है, मेरी नहीं। तुम ही जानो।

बंदर ने तो उसकी बात सुनी ही नहीं। वह पेड़ों पर कूदता हुआ वहाँ से चला गया।

तभी चूहे ने देखा कि एक साँप वहाँ रुक कर उनकी बातें सुन रहा था। साँप तन से विषैला था, मन से नहीं। उसने बिना कुछ कहे चुपके-से जाकर किसान की पत्नी को काट लिया। घर में हाय-तौबा मच गई। सब पिंजरा लगाना भूल कर उसके इलाज में लग गए। वैद्य बुलाया गया। उसने कुछ भस्म इत्यादि की पुड़िया उसे खाने को दी और एक मरहम को कबूतर के खून में मिला कर लगाने को कहा।

किसान ने बिना एक पल गँवाए कबूतर को पकड़ कर उसकी गर्दन मरोड़ दी और उसके खून में मरहम मिला कर पत्नी के घाव पर लगा दी। बाकी खून एक बोतल में इकट्ठा कर लिया।

2-4 दिन में किसान की पत्नी कुछ ठीक होने लगी और उसने नाश्ते में अंडे की जगह मुर्गा पकाने को कहा। किसान ने तुरन्त मुर्गे को हलाल कर दिया और उसे पका कर पत्नी को खिलाया।

6-7 दिन में वह बिल्कुल ठीक हो गई। घर में जश्न मनाने की तैयारी की गई और बकरा भी अपनी जान देकर मेहमानों के लिए पकवान बनाने में हलाल हो गया।

चूहा अभी भी खुला घूम रहा था। उसने वह खेत छोड़ कर दूसरे खेत में अपना डेरा जमा लिया। जब घरवालों ने देखा कि अब तो चूहा दिखाई ही नहीं दे रहा, तो उन्होंने उस मनहूस पिंजरे को व्यर्थ समझ कर तोड़ कर फेंक दिया।

यदि चूहे के मित्र उसकी समस्या को अपनी समझ कर विचार-विमर्श करते तो शायद चूहे के साथ-साथ उनकी जान भी बच जाती।

अतः जब कोई आपको अपना समझ कर अपनी समस्या आपके पास लाता है, तो स्वयं को उसके स्थान पर रख कर उसकी समस्या सुलझाने में मदद करनी चाहिए। इससे मित्रता भी गहरी होती है और हम स्वयं भी संकट से बच सकते हैं कि कल को हमें ऐसी समस्या का सामना करना पड़ा, तो हमारे पास उस समस्या को सुलझाने का अनुभव होगा, जो हमारे काम आएगा।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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