बन्धन की जंजीर
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बन्धन की जंजीर
Image by NoName_13 from Pixabay
एक संत कुएँ पर स्वयं को जंजीर से लटका कर ध्यान करता था और कहता था कि जिस दिन यह जंजीर टूटेगी, मुझे ईश्वर मिल जायेंगे। उनसे पूरा गांव प्रभावित था। सभी उनकी भक्ति, उनके तप की तारीफ करते थे।
एक व्यक्ति के मन में इच्छा हुई कि मैं भी ईश्वर दर्शन करूँ। वह भी कुएँ पर रस्सी से पैर को बाँधकर कुएँ में लटक गया और कृष्ण जी का ध्यान करने लगा। थोड़े समय बाद जब रस्सी टूटी, तो उसे कृष्ण जी ने अपनी गोद में उठा लिया और दर्शन भी दिए।
तब व्यक्ति ने पूछा - आप इतनी जल्दी मुझे दर्शन देने क्यों चले आये? जबकि वे संत-महात्मा तो वर्षों से आपको बुला रहे हैं?
कृष्ण बोले - वह कुएँ पर लटकते जरूर हैं, किन्तु पैर को लोहे की जंजीर से बाँधकर। उन्हें मुझसे ज्यादा जंजीर पर विश्वास है। तुमने खुद से ज्यादा मुझ पर विश्वास किया, इसलिए मैं आ गया।
मित्रों! यह आवश्यक नहीं कि दर्शन में वर्षों लगें। आपकी शरणागति आपको ईश्वर के दर्शन अवश्य कराएगी और शीघ्र ही कराएगी। प्रश्न केवल इतना है आप उन पर कितना विश्वास करते हैं।
“अहंकार” से जिस व्यक्ति का मन मैला है, करोड़ों की भीड़ में भी वह सदा अकेला है।
मैं मोक्ष चाहता हूँ, मैं मोक्ष को कैसे पाऊँ? विचित्र बात है अगर “मैं” बाकी हो तो मोक्ष कैसा?
“मैं” से मुक्त होना ही मोक्ष है।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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