भगवान् तेरा शुक्रिया
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भगवान् तेरा शुक्रिया
Image by Szabolcs Molnar from Pixabay
आज इस पोस्ट को पढ़कर आपकी सारी ज़िन्दगी की टेंशन खत्म हो जायेगी।
एक व्यक्ति काफी दिनों से चिंतित चल रहा था, जिसके कारण वह काफी चिड़चिड़ा तथा तनाव में रहने लगा था। वह इस बात से परेशान था कि घर के सारे खर्चे उसे ही उठाने पड़ते हैं, पूरे परिवार की जिम्मेदारी उसी के ऊपर है, किसी न किसी रिश्तेदार का उसके यहाँ आना-जाना लगा ही रहता है।
इन्हीं बातों को सोच-सोच कर वह काफी परेशान रहता था तथा बच्चों को अक्सर डांट देता था और अपनी पत्नी से भी ज्यादातर उसका किसी न किसी बात पर झगड़ा चलता रहता था।
एक दिन उसका बेटा उसके पास आया और बोला - ‘पिताजी! मेरा स्कूल का होमवर्क करा दीजिये।’
वह व्यक्ति पहले से ही तनाव में था, तो उसने बेटे को डांट कर भगा दिया लेकिन जब थोड़ी देर बाद उसका गुस्सा शांत हुआ तो वह बेटे के पास गया। उसने देखा कि बेटा सोया हुआ है और उसके हाथ में होमवर्क की कॉपी है। उसने कॉपी लेकर देखी और जैसे ही उसने कॉपी नीचे रखनी चाही, उसकी नजर होमवर्क के टाइटल पर पड़ी।
होमवर्क का टाइटल था - वे चीजें जो हमें शुरू में अच्छी नहीं लगती लेकिन बाद में वे अच्छी ही होती हैं।
इस टाइटल पर बच्चे को एक पैराग्राफ लिखना था जो उसने लिख लिया था। उत्सुकतावश उसने बच्चे का लिखा पढ़ना शुरू किया। बच्चे ने लिखा था -
मैं अपने फाइनल एग्जाम को बहुत धन्यवाद देता हूँ, क्योंकि शुरू में तो ये बिलकुल अच्छे नहीं लगते लेकिन इनके बाद स्कूल की छुट्टियाँ पड़ जाती हैं।
मैं ख़राब स्वाद वाली कड़वी दवाइयों को बहुत धन्यवाद देता हूँ, क्योंकि शुरू में तो ये कड़वी लगती हैं लेकिन ये मुझे बीमारी से ठीक करती हैं।
मैं सुबह-सुबह जगाने वाली उस अलार्म घड़ी को बहुत धन्यवाद देता हूँ, जो मुझे हर सुबह बताती है कि मैं जीवित हूँ।
मैं ईश्वर को भी बहुत धन्यवाद देता हूँ, जिसने मुझे इतने अच्छे पिता दिए क्योंकि उनकी डांट मुझे शुरू में तो बहुत बुरी लगती है, लेकिन वे मेरे लिए खिलौने लाते हैं, मुझे घुमाने ले जाते हैं और मुझे अच्छी-अच्छी चीजें खिलाते हैं और मुझे इस बात की ख़ुशी है कि मेरे पास पिता हैं क्योंकि मेरे दोस्त सोहन के तो पिता ही नहीं हैं।
बच्चे का होमवर्क पढ़ने के बाद वह व्यक्ति जैसे अचानक नींद से जाग गया हो। उसकी सोच बदल-सी गयी। बच्चे की लिखी बातें उसके दिमाग में बार-बार घूम रही थी, खासकर वह अंत वाली लाइन। उसकी नींद उड़ गयी थी। फिर वह व्यक्ति थोड़ा शांत होकर बैठा और उसने अपनी परेशानियों के बारे में सोचना शुरू किया।
मुझे घर के सारे खर्चे उठाने पड़ते हैं, इसका मतलब है कि मेरे पास घर है और ईश्वर की कृपा से मैं उन लोगों से बेहतर स्थिति में हूँ, जिनके पास घर नहीं है।
मुझे पूरे परिवार की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है, इसका मतलब है कि मेरा परिवार है, बीवी-बच्चे हैं और ईश्वर की कृपा से मैं उन लोगों से ज्यादा खुशनसीब हूँ, जिनके पास परिवार नहीं हैं और वह दुनिया में बिल्कुल अकेले हैं।
मेरे यहाँ कोई न कोई मित्र या रिश्तेदार आता-जाता रहता है, इसका मतलब है कि मेरी एक सामाजिक हैसियत है और मेरे पास मेरे सुख-दुःख में साथ देने वाले लोग हैं।
हे मेरे भगवान! तेरा बहुत-बहुत शुक्रिया....। मुझे माफ़ करना, मैं तेरी कृपा को पहचान नहीं पाया।
इसके बाद उसकी सोच एकदम बदल गयी। उसकी सारी परेशानी, सारी चिंता एकदम जैसे ख़त्म हो गयी। वह एकदम बदल सा गया। वह भागकर अपने बेटे के पास गया और सोते हुए बेटे को गोद में उठाकर उसके माथे को चूमने लगा और अपने बेटे को तथा ईश्वर को धन्यवाद देने लगा।
हमारे सामने जो भी परेशानियाँ हैं, हम जब तक उनको नकारात्मक नज़रिये से देखते रहेंगे, तब तक हम परेशानियों से घिरे रहेंगे। लेकिन जैसे ही हम उन्हीं चीजों को, उन्हीं परिस्तिथियों को सकारात्मक नज़रिये से देखेंगे, हमारी सोच एकदम बदल जाएगी, हमारी सारी चिंताएं, सारी परेशानियाँ, सारे तनाव एकदम ख़त्म हो जायेंगे और हमें मुश्किलों से निकलने के नए-नए रास्ते दिखाई देने लगेंगे।
अगर कहानी अच्छी लगे तो जीवन में धारण करें और हर परिस्थिति में भगवान का धन्यवाद करें।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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