बूँद
👼👼💧💧👼💧💧👼👼 बूँद Image by anncapictures from Pixabay एक बूँद, जो सागर का अंश थी, एक बार हवा के संग बादलों तक पहुँच गई। इतनी ऊँचाई पाकर उसे बहुत अच्छा लगा। अब उसे सागर के आँचल में कितने ही दोष नज़र आने लगे। लेकिन अचानक एक दिन बादल ने उसे ज़मीन पर एक गंदे नाले में पटक दिया। एकाएक उसके सारे सपने, सारे अरमां चकनाचूर हो गए। ये एक बार नहीं अनेकों बार हुआ। वह बारिश बन नीचे आती, फिर सूर्य की किरणें उसे बादल तक पहुँचा देतीं। अब उसे अपने सागर की बहुत याद आने लगी। उससे मिलने को वह बेचैन हो गई; बहुत तड़पी, बहुत तड़पी। फिर एक दिन सौभाग्यवश एक नदी के आँचल में जा गिरी। उस नदी ने अपनी बहती रहनुमाई में उसे सागर तक पहुँचा दिया। सागर को सामने देख बूँद बोली - हे मेरे पनाहगार सागर! मैं शर्मसार हूँ। अपने किये की सज़ा भोग चुकी हूँ। आपसे बिछुड़ कर मैं एक पल भी शांत न रह पाई। दिन-रैन दर्द भरे आँसू बहाए हैं। अब इतनी प्रार्थना है कि आप मुझे अपने पवित्र आँचल में समेट लो। सागर बोला - बूँद! तुझे पता है तेरे बिन मैं कितना तड़पा हूँ। तुझे तो दुःख सहकर अहसास हुआ। लेकिन मैं ... मैं तो उसी वक़्त से तड़प रहा हू...