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Showing posts from December, 2020

बूँद

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 बूँद Image by anncapictures from Pixabay एक बूँद, जो सागर का अंश थी, एक बार हवा के संग बादलों तक पहुँच गई। इतनी ऊँचाई पाकर उसे बहुत अच्छा लगा। अब उसे सागर के आँचल में कितने ही दोष नज़र आने लगे। लेकिन अचानक एक दिन बादल ने उसे ज़मीन पर एक गंदे नाले में पटक दिया। एकाएक उसके सारे सपने, सारे अरमां चकनाचूर हो गए। ये एक बार नहीं अनेकों बार हुआ। वह बारिश बन नीचे आती, फिर सूर्य की किरणें उसे बादल तक पहुँचा देतीं। अब उसे अपने सागर की बहुत याद आने लगी। उससे मिलने को वह बेचैन हो गई; बहुत तड़पी, बहुत तड़पी। फिर एक दिन सौभाग्यवश एक नदी के आँचल में जा गिरी। उस नदी ने अपनी बहती रहनुमाई में उसे सागर तक पहुँचा दिया। सागर को सामने देख बूँद बोली - हे मेरे पनाहगार सागर! मैं शर्मसार हूँ। अपने किये की सज़ा भोग चुकी हूँ। आपसे बिछुड़ कर मैं एक पल भी शांत न रह पाई। दिन-रैन दर्द भरे आँसू बहाए हैं। अब इतनी प्रार्थना है कि आप मुझे अपने पवित्र आँचल में समेट लो। सागर बोला - बूँद! तुझे पता है तेरे बिन मैं कितना तड़पा हूँ। तुझे तो दुःख सहकर अहसास हुआ। लेकिन मैं ... मैं तो उसी वक़्त से तड़प रहा हू...

मार्गदर्शक

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मार्गदर्शक Image by dae jeung kim from Pixabay जीवन में कई ऐसे पल आते हैं जब हमें अपने चारों ओर अंधकार ही अंधकार दिखाई पड़ता है। ऐसे समय में हमारा मार्गदर्शक ही हमें उस अंधेरे से निकाल कर उजाले की तरफ ले जाता है। जीवन में मुसीबतों के अंधेरे में हम तभी जाते हैं जब हम अपने से बड़ों या अपने मार्गदर्शक के कहे अनुसार नहीं चलते। यदि हम उन्हीं की छत्रछाया में रहें और वैसा ही करें जैसा वे कहते हैं तो जीवन हमेशा खुशहाल बना रहेगा। आइए, ऐसे ही एक सुन्दर प्रसंग पर ध्यान दें जिससे हमें अपने से बड़ों का सम्मान और मार्गदर्शक की अहमियत का पता चल सके। महाभारत का युद्ध चल रहा था। एक दिन दुर्योधन के व्यंग्य से आहत होकर “भीष्म पितामह” घोषणा कर देते हैं कि “मैं कल पांडवों का वध कर दूंगा।” उनकी घोषणा का पता चलते ही पांडवों के शिविर में बेचैनी बढ़ गई। भीष्म की क्षमताओं के बारे में सभी को पता था इसलिए सभी किसी अनिष्ट की आशंका से परेशान हो गए। तब श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि अभी मेरे साथ चलो। श्री कृष्ण द्रौपदी को लेकर सीधे भीष्म पितामह के शिविर में पहुँच गए। शिविर के बाहर खड़े होकर उन...

ईश्वर पर विश्वास

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 ईश्वर पर विश्वास Image by RÜŞTÜ BOZKUŞ from Pixabay 8 साल के एक बच्चे ने 1 रुपए का सिक्का मुट्ठी में लेकर एक दुकान पर जाकर कहा - क्या आपके दुकान में ईश्वर मिलेंगे ? दुकानदार ने यह बात सुनकर सिक्का नीचे फेंक दिया और बच्चे को निकाल दिया। बच्चा पास की दुकान में जाकर 1 रूपये का सिक्का लेकर चुपचाप खड़ा रहा। ए लड़के! 1 रूपये में तुम क्या चाहते हो ? मुझे ईश्वर चाहिए। आपकी दुकान में हैं क्या ? दूसरे दुकानदार ने भी भगा दिया। लेकिन उस अबोध बालक ने हार नहीं मानी। एक दुकान से दूसरी दुकान, दूसरी से तीसरी, ऐसा करते-करते कुल चालीस दुकानों के चक्कर काटने के बाद एक बूढ़े दुकानदार के पास पहुंचा। उस बूढ़े दुकानदार ने पूछा - तुम ईश्वर को क्यों खरीदना चाहते हो ? क्या करोगे ईश्वर लेकर ? पहली बार एक दुकानदार के मुंह से यह प्रश्न सुनकर बच्चे के चेहरे पर आशा की किरणें लहराई৷ लगता है इसी दुकान पर ही ईश्वर मिलेंगे! बच्चे ने बड़े उत्साह से उत्तर दिया - इस दुनिया में मां के अलावा मेरा और कोई नहीं है। मेरी मां दिन भर काम करके मेरे लिए खाना लाती थी। मेरी मां अब अस्पताल में है। अगर मेरी मां...

भक्त वत्सल भगवान

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 भक्त वत्सल भगवान Image by Vikramjit Kakati from Pixabay ताज खां नामक एक मुस्लिम राजस्थान के करौली नगर की कचहरी में चपरासी के रूप में नियुक्त थे। एक बार वे कचहरी के काम से मदनमोहन मंदिर के पुजारी गोस्वामी जी के पास आए और मंदिर के बाहर खड़े होकर पुजारी जी को आवाज़ लगाने लगे। अचानक उनकी नज़र मंदिर में स्थित भगवान श्री राधा मदनमोहन श्री कृष्ण जी पर चली गई। भगवान श्री कृष्ण के रूप सौंदर्य की एक झलक पाते ही उनका दिल उनका दीवाना बन बैठा। वे उनके मुख मंडल की ओर टकटकी लगाकर निहारते ही रह गए। जब पुजारी जी मंदिर से बाहर आए तो उनका ध्यान भंग हुआ और कचहरी का संदेश उन्हें देकर वे चले गए। ताज खां वहाँ से चले तो गए, लेकिन उनका दिल फिर से भगवान श्री कृष्ण की उसी साँवली सलोनी छवि को देखने के लिए रह-रहकर मचलने लगा। न उन्हें दिन को चैन था और न रात को। उनके दिमाग में मदनमोहन जी की छवि बार-बार नाचने लगी। अब ताज खां इस ताक में रहने लगे कि किसी न किसी तरह हर रोज इस सुंदर छवि के दर्शन किए जाएं। मुस्लिम होने के कारण वे मंदिर में प्रवेश तो नहीं कर सकते थे, अतः वे मंदिर के बाहर मंडराते रहते ...

पहनावा

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 पहनावा Image by S. Hermann & F. Richter from Pixabay एक बार एक व्यक्ति रेलवे प्लेटफॉर्म पर उतरा और तरोताज़ा होने के लिये किसी सैलून में गया। उसके वस्त्रों और हाव भाव से वह साधारण सा ग़रीब व्यक्ति लग रहा था। वहां के कर्मचारियों ने भी उसका कामचलाऊ सा शेव बनाकर उसे निपटा दिया। जब उस ग़रीब के द्वारा पैसे देने की बारी आयी तो उसने शाही रकम द्वारा भुगतान किया। सब अचंभित हो गए। कुछ समय बाद जब वह अगली बार गया तो अबकी बार उसका बड़े शाही तरीके से मिज़ाज पुर्सी की गई। यह सोचकर कि जब यह बंदा मामूली काम के बढ़िया पैसे दे गया था तो आज और ज़्यादा देगा, पर इस बार उसने जो मामूली सा मेहनताना बनता था, वही दिया। उससे पूछने पर जवाब मिला, “आज के काम के पैसे पिछली बार दिये थे और उस बार के आज।“ कर्मचारी बहुत शर्मिंदा हुए अपने पहली बार के पक्षपाती व्यवहार पर। संदेश - किसी के बाह्य वस्त्र और उसके हाव-भाव को देखकर आप उसे हल्का न समझें, सबके साथ कर्त्तव्यनिष्ठ होकर समान व्यवहार करें। -- सरिता जैन सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका हिसार 🙏🙏🙏 विनम्र निवेदन यदि आपको यह लेख प्रेरणादायक और प्र...

क्रोध का कारण

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 क्रोध का कारण Image by Steve Bidmead from Pixabay हम प्रायः लोगों को क्रोध से ग्रस्त हो कर आपस में लड़ते हुए, अपशब्द बोलते हुए देखते हैं। ऐसी बातों का कोई अंत होता दिखाई न दे तो बीच बचाव करने वाला पूछने लगता है कि भाई, यह तो बताओ कि तुम किस बात पर लड़ रहे हो ताकि झगड़े का निपटारा कराया जा सके। उन्हें अपनी कैसेट को रिवाइण्ड करने को कहा जाता है। जब वे उसके अंतिम छोर पर पहुँचते हैं तो उन्हें खुद ही पता नहीं चलता कि वे किस बात पर झगड़ रहे थे। ऐसे ही एक दंपति परस्पर बात कर रहे थे कि क्यों न हम एक भैंस खरीद लें ? बच्चों को दूध, दही आदि पर्याप्त मात्रा में मिल जाएगा और दूध शुद्ध होगा तो उस पर मलाई भी मोटी आएगी। उससे हम घी भी बना सकेंगे। पत्नी ने कहा कि सारी मलाई का घी नहीं बनाएंगे। कुछ खाने के लिए भी रख लेंगे। पति ने कहा कि चलो, मैं उसमें से थोड़ी सी मलाई रख लूंगा अपने लिए। पत्नी ने कहा कि मैं भी तो मलाई खाऊँगी। पति ने कहा कि नहीं, ऐसे तो मलाई कम पड़ जाएगी। फिर हम घी कैसे बनाएंगे ? पत्नी ने कहा कि नहीं, मलाई मैं खाऊँगी। बस, फिर क्या था। पहले आवाज़ तेज हुई, फिर अपशब्द श...

ढपोर - शंख

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 ढपोर - शंख Image by Larisa Koshkina from Pixabay एक आदमी घूमते-घूमते एक साधु के पास पहुँचा और वहीं साधु के आश्रम में रह कर उसकी सेवा करने लगा। उसे वहां रहने से असीम शांति का आभास होता था। साधु भी उसकी सेवा भावना से बहुत प्रसन्न था। कुछ समय  बाद उसने अपने घर वापिस जाने के लिए अनुमति मांगी। साधु ने उसे कुछ मांगने के लिए कहा। पर वह तो निष्कामभाव से सेवा कर रहा  था। जब उसने कुछ भी मांगने से इंकार कर दिया तो साधु ने उसकी सेवा से खुश हो कर उसे एक दिव्य शंख दिया और कहा कि यह एक चमत्कारी शंख है। जब भी तुम्हें किसी वस्तु की आवश्यकता हो तो यह तुम्हें तुरन्त लाकर दे देगा। जब वह अपने घर पहुँचा तो सब लोग उससे मिलने के लिए आने लगे और उससे यात्रा के हालचाल पूछने लगे। बातों ही बातों में उन्हें पता चला कि एक साधु ने उसे एक चमत्कारी शंख दिया है। एक व्यक्ति को लालच आ गया कि किसी तरह वह शंख हासिल करना चाहिए। वह एक वैसा ही शंख ले कर आया और उस आदमी से बोला कि मेरे पास भी एक ऐसा ही शंख है पर इसकी विशेषता यह है कि यह कोई एक वस्तु मांगने पर उससे दुगुनी देता है। उस आदमी ने कहा कि ...