भक्त वत्सल भगवान
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भक्त वत्सल भगवान
Image by Vikramjit Kakati from Pixabay
ताज खां नामक एक मुस्लिम राजस्थान के करौली नगर की कचहरी में चपरासी के रूप में नियुक्त थे।
एक बार वे कचहरी के काम से मदनमोहन मंदिर के पुजारी गोस्वामी जी के पास आए और मंदिर के बाहर खड़े होकर पुजारी जी को आवाज़ लगाने लगे। अचानक उनकी नज़र मंदिर में स्थित भगवान श्री राधा मदनमोहन श्री कृष्ण जी पर चली गई।
भगवान श्री कृष्ण के रूप सौंदर्य की एक झलक पाते ही उनका दिल उनका दीवाना बन बैठा। वे उनके मुख मंडल की ओर टकटकी लगाकर निहारते ही रह गए। जब पुजारी जी मंदिर से बाहर आए तो उनका ध्यान भंग हुआ और कचहरी का संदेश उन्हें देकर वे चले गए।
ताज खां वहाँ से चले तो गए, लेकिन उनका दिल फिर से भगवान श्री कृष्ण की उसी साँवली सलोनी छवि को देखने के लिए रह-रहकर मचलने लगा। न उन्हें दिन को चैन था और न रात को। उनके दिमाग में मदनमोहन जी की छवि बार-बार नाचने लगी।
अब ताज खां इस ताक में रहने लगे कि किसी न किसी तरह हर रोज इस सुंदर छवि के दर्शन किए जाएं।
मुस्लिम होने के कारण वे मंदिर में प्रवेश तो नहीं कर सकते थे, अतः वे मंदिर के बाहर मंडराते रहते और जब कोई निकट न होता तो मदनमोहन जी को निहारने लगते। लेकिन प्रेम लाख छिपाने पर भी भला छिपता कहाँ है? पुजारी जी को आखिर पता चल ही गया कि यह मुस्लिम छिप-छिपकर हमारे मदनमोहन जी का दर्शन करता है।
उन्होंने ताज खां को मंदिर आने से मना कर दिया। मना करने के बावजूद ताज खां का दिल न माना और वे भगवान के रूप की एक झाँकी देखने के लिए मंदिर पहुंच गए। किंतु मंदिर के एक कार्यकर्ता ने उन्हें वहाँ से धक्का मार कर भगा दिया।
ताज खां अगले दिन मंदिर नहीं गए, तो उनका दिल मदनमोहन जी को देखने के लिए तड़पने लगा। वे उन्हें याद कर-करके फूट-फूटकर रोने लगे। अपने दिल का हाल बताएं भी तो किसे बताएं? अन्न-जल त्यागकर मदनमोहन जी से ही दर्शन की प्रार्थना करने लगे। भक्त की करुण पुकार सुनकर भगवान का हृदय पसीज उठा।
इधर मदनमोहन मंदिर में रात की आरती के बाद भगवान के सामने प्रसाद का थाल रखकर दरवाजा बाहर से बंद कर दिया गया। भगवान मदनमोहन जी ने मंदिर के कार्यकर्ता का रूप धारण किया और प्रसाद का थाल लेकर अपने भक्त ताज खां के घर जा पहुंचे।
भगवान ने जब ताज खां के घर का दरवाजा खटखटाया, उस समय भी वे भगवान के दर्शन के लिए तड़प रहे थे। भगवान ने ताज खां के हाथ में थाल देकर कहा, “पुजारी जी ने आपके लिए प्रसाद भेजा है। आप प्रसाद ग्रहण कर लें और सुबह थाल लेकर मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए पधारें।“
ताज खां को तो विश्वास ही नहीं हो पाया कि जिन पुजारी जी ने उन्हें मंदिर में बाहर से ही भगवान को निहारने से मना कर दिया था, उन्होंने उनके लिए इतनी आधी रात में प्रसाद का थाल भेजा है।
किंतु जब मंदिर के कार्यकर्ता का रूप धारण किये हुए भगवान ने आग्रह किया तो उनकी बात मानकर ताज खां ने भावुक मन से प्रसाद ग्रहण कर लिया। इसके बाद भगवान वहाँ से चले गए।
अब भगवान ने मंदिर के पुजारी जी को सपने में दर्शन देकर कहा, “प्रसाद का थाल मैं ताज खां को दे आया हूँ। सुबह जब वे प्रसाद का थाल लेकर मंदिर में आएं तो उन्हें मेरे दर्शन से वंचित न करना।“
पुजारी जी ने सुबह उठकर देखा तो मंदिर में प्रसाद का थाल नहीं था। वे चकित हो उठे और दौड़े हुए वहाँ के महाराज के पास गये और उनको सारी घटना कह सुनाई।
महाराज भी एक मुस्लिम पर भगवान की कृपा को देखकर भाव विभोर हो उठे। दोनों मंदिर में ताज खां की प्रतीक्षा करने लगे। जब ताज खां पूजा के समय हाथ में प्रसाद का थाल लिए मंदिर में घुसे तो सभी उपस्थित भक्त जन आश्चर्यचकित रह गए। महाराज दौड़कर आगे बढ़े और भगवान मदनमोहन जी के सच्चे भक्त ताज खां को गले से लगा लिया।
जब सभी श्रद्धालुओं को इस घटना का पता चला तो वे भक्त ताज खां की जय-जयकार करने लगे।
आज भी करौली के मदनमोहन मंदिर में जब शाम की आरती होती है, तो इस दोहे को गाकर भक्त ताज खां को याद किया जाता है।
ताज भक्त मुसलिम पै प्रभु तुम दया करी।
भोजन लै घर पहुंचे दीनदयाल हरी।।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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