ढपोर - शंख
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ढपोर - शंख
Image by Larisa Koshkina from Pixabay
एक आदमी घूमते-घूमते एक साधु के पास पहुँचा और वहीं साधु के आश्रम में रह कर उसकी सेवा करने लगा। उसे वहां रहने से असीम शांति का आभास होता था। साधु भी उसकी सेवा भावना से बहुत प्रसन्न था।
कुछ समय बाद उसने अपने घर वापिस जाने के लिए अनुमति मांगी। साधु ने उसे कुछ मांगने के लिए कहा। पर वह तो निष्कामभाव से सेवा कर रहा था। जब उसने कुछ भी मांगने से इंकार कर दिया तो साधु ने उसकी सेवा से खुश हो कर उसे एक दिव्य शंख दिया और कहा कि यह एक चमत्कारी शंख है। जब भी तुम्हें किसी वस्तु की आवश्यकता हो तो यह तुम्हें तुरन्त लाकर दे देगा।
जब वह अपने घर पहुँचा तो सब लोग उससे मिलने के लिए आने लगे और उससे यात्रा के हालचाल पूछने लगे। बातों ही बातों में उन्हें पता चला कि एक साधु ने उसे एक चमत्कारी शंख दिया है।
एक व्यक्ति को लालच आ गया कि किसी तरह वह शंख हासिल करना चाहिए। वह एक वैसा ही शंख ले कर आया और उस आदमी से बोला कि मेरे पास भी एक ऐसा ही शंख है पर इसकी विशेषता यह है कि यह कोई एक वस्तु मांगने पर उससे दुगुनी देता है।
उस आदमी ने कहा कि इसकी परीक्षा करके दिखाओ। वह ठग बोला कि ठीक है। उसने शंख से कहा कि एक गिलास दूध ले कर आओ तो उस शंख में से आवाज़ आई कि एक क्यों, दो ले लो।
ठग ने कहा कि देखा, मैंने कहा था न कि जितना मांगो यह उससे दुगुना देता है। ठग ने कहा कि इस शंख से तुम दो वस्तुएं प्राप्त करके एक वस्तु का प्रयोग खुद कर सकते हो और दूसरी किसी को देकर पुण्य लाभ ले सकते हो। क्या तुम अपने शंख से इसे बदलना चाहते हो?
वह सरल स्वभाव का व्यक्ति उसकी बातों में आ गया। उसने अपना शंख उसे दे दिया और उसका शंख ले कर घर आ गया।
अब जब भी वह शंख से कुछ मांगता तो उसमें से केवल आवाज़ आती कि एक क्यों, दो ले लो, दो क्यों, चार ले लो, पर वह देता कुछ नहीं था।
वह फिर साधु के आश्रम में गया और उनसे इसका कारण पूछा कि कहीं इसकी शक्ति तो खत्म नहीं हो गई। साधु ने शंख को देखा और कहा कि यह शंख तो मैंने तुम्हें नहीं दिया था। यह तुम्हें कहां से मिला?
उसने सारी बात बता दी। तब साधु ने बताया कि यह तो आजकल के लोगों के समान ही ‘ढपोर शंख’ है जो केवल बोल कर ही सबको खुश करने की कोशिश करते हैं और कुछ करने के नाम पर पीछे हट जाते हैं। पर जल्दी ही उनकी असलियत सबके सामने आ जाती है।
यह जानकर उस आदमी का कपटी दुनिया से मन विरक्त हो गया और वह वहीं आश्रम में रह कर लोगों की सेवा में लग गया।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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