मैं न होता तो क्या होता?
👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मैं न होता तो क्या होता? सुंदरकांड में एक प्रसंग अवश्य पढ़ें! “अशोक वाटिका” में जिस समय रावण क्रोध में भरकर, तलवार लेकर सीता माँ को मारने के लिए दौड़ पड़ा, तब हनुमान जी को लगा कि इसकी तलवार छीन कर इसका सिर काट लेना चाहिये। किन्तु अगले ही क्षण उन्होंने देखा कि “मंदोदरी” ने रावण का हाथ पकड़ लिया। यह देखकर वे गद्गद् हो गये। वे सोचने लगे - यदि मैं आगे बढ़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मै न होता तो सीता जी को कौन बचाता ? बहुधा हमको भी ऐसा ही भ्रम हो जाता है। मैं न होता तो क्या होता ? परन्तु ये क्या हुआ ? सीता जी को बचाने का कार्य प्रभु ने रावण की पत्नी को ही सौंप दिया! तब हनुमान जी समझ गये कि प्रभु जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं। आगे चलकर जब “त्रिजटा” ने कहा कि “लंका में बंदर आया हुआ है और वह लंका जलायेगा” तो हनुमान जी बहुत चिंता में पड़ गये कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नहीं है और त्रिजटा कह रही है कि उन्होंने स्वप्न में देखा है, एक वानर ने लंका जलाई है। अब उन्हें क्या करना चाहिए ? जो प्रभु इच्छा! जब रावण के सैनिक तलवार लेकर हनुमान जी को म...