कर्मों का फल

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कर्मों का फल

Photo by saifullah hafeel from Pexels

कर्मों का फल हर किसी को भोगना ही पड़ता है - रामकथा से।

वाल्मीकि रामायण में वर्णित है कि एक बार भगवान श्री राम के दरबार में न्याय पाने के लिए एक कुत्ता पहुँच गया था। जब लक्ष्मण जी ने कुत्ते से पूछा कि क्या बात है तो कुत्ते ने कहा कि मुझे भगवान श्री राम से न्याय चाहिए। भगवान श्री राम उपस्थित हुए और कुत्ते से पूछा कि बताओ कैसे आना हुआ?

कुत्ते ने कहा कि प्रभु मैं खेत के मेड़ के बगल में लेटा था। तभी एक ब्राह्मण ने, जो उस रास्ते से जा रहे थे, मुझ पर अनावश्यक डंडे से प्रहार कर के चोटिल किया है। मुझे न्याय चाहिए कि बिना किसी अपराध के भी ब्राह्मण ने मुझे क्यों पीटा? इसलिए आप उस ब्राह्मण को दंड दीजिये।

इस पर भगवान श्री राम ने उन ब्राह्मण को भी बुला लिया और सवाल किया कि आपने इस कुत्ते को किस कारण से पीटा है?

ब्राह्मण ने कहा कि प्रभु मैं नदी से स्नान करके आ रहा था तो सोचा कि ये कुत्ता कहीं मेरे कपड़े छू कर मुझे अपवित्र न कर दे, इसलिए इसे दूर भगाने के लिए मैंने एक डंडे का प्रहार किया।

भगवान ने कुत्ते से पूछा कि तुम बताओ इनको क्या दंड दिया जाये?

तब कुत्ते ने कहा कि प्रभु! मैं आपकी शरण में आया हूँ। न्याय तो आपको ही करना है।

इस पर भगवान ने फिर से कहा कि नहीं, तुम बताओ, इन्हें क्या दंड दिया जाये और वही दंड इन पर लागू होगा।

तब कुत्ते ने कहा कि इन ब्राह्मण को कालिंजर के एक मठ में मठाधीश बना दिया जाये।

ये सुन कर वहाँ राज दरबार में उपस्थित सभी लोग अवाक् रह गए क्योंकि कालिंजर का वह मठ असीम वैभव, ऐश्वर्य और अकूत धन से समृद्ध था। उसका मठाधीश बनना गर्व की बात होती थी। तब भगवान राम ने पूछा कि तुम दंड दे रहे हो या मज़ाक कर रहे हो?

तब कुत्ते ने भगवान श्री राम से कहा कि नहीं प्रभु मै दंड दे रहा हूँ क्योंकि पिछली योनि में मैं वहाँ का मठाधीश ही था पर उस मठ में उपस्थित ऐश्वर्य, समृद्धि, अकूत धन ने मेरी बुद्धि भ्रष्ट कर दी। मुझे जो सत्य के प्रति कार्य करना था उसे न करके मैं ग़लत कर्मों में लिप्त रहने लगा और उसे ही जीवन का असली आनंद समझ बैठा जिससे मेरे तप का तेज खत्म होने लगा और एक दिन मेरी मृत्यु भी हो गयी। उसके बाद मुझे ये कुत्ते की योनि प्राप्त हुई। मेरे कर्म इतने ख़राब हो गए थे कि दुबारा मनुष्य जन्म भी नहीं मिला। इसलिए प्रभु मैं जानता हूँ कि ये ब्राह्मण भी कालिंजर के मठ के मठाधीश होते ही ऐश्वर्य, भोग में लग जायेंगे और इनका भी निश्चित रूप से तप का तेज ख़त्म हो जायेगा और ये भी मेरी तरह कुत्ता बन कर द्वार-द्वार घूमेंगे भोजन के लिए। तब हर आने-जाने वाला इन्हें डंडे से प्रहार करेगा और मेरा बदला पूरा हो जाएगा।

कुत्ते की रहस्य भरी बातों को सुन कर सभी लोग आश्चर्य से भर गए। यदि हम भी कर्मदंड से बचना चाहते हैं तो किसी निरीह प्राणी को सताना छोड़ दें क्योंकि यह आने वाले जन्म में अपने ही पतन का कारण है।

वास्तव में कर्मों का फल हर किसी को भोगना ही पड़ता है।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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