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Showing posts from October, 2022

धर्म का प्रभाव क्यों नहीं पड़ता

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 धर्म का प्रभाव क्यों नहीं पड़ता Image by Susanne Jutzeler, Schweiz, from Pixabay एक दिवस एक शिष्य अपने गुरुजी के पास आकर बोला, “गुरुजी, प्रायः अनेक व्यक्ति प्रश्न करते हैं कि धर्म का प्रभाव क्यों नहीं होता ? मुझे भी यह प्रश्न पिछले कुछ समय से अत्यधिक व्याकुल कर रहा है।” गुरुजी बोले, “वत्स! जाओ, एक घड़ा मदिरा का ले आओ।” जैसे ही शिष्य ने मदिरा का नाम सुना, वह अवाक् रह गया और सोचने लगा कि गुरुजी और मदिरा, वह अपने स्थान पर खडे होकर सोचता ही रह गया। गुरुजी ने पुनः कहा, “वत्स, किस विचार में डूब गए हो ? मेरी आज्ञा का पालन करो और जाकर एक घड़ा मदिरा का लेकर आओ।” यह सुनते ही शिष्य तुरन्त गया और शीघ्र ही एक मदिरा से भरा घड़ा ले आया और उसे गुरुजी के समक्ष रखकर बोला, “गुरुजी, आपकी आज्ञा का पालन कर लिया।” तब गुरुजी बोले, “अब इस घड़े की पूर्ण मदिरा का सेवन करो।” वहां उपस्थित सभी शिष्य बहुत अचम्भित होकर गुरुजी को देख रहे थे। गुरुजी आगे बोले, “किन्तु सेवन करते हुए एक बात का ध्यान रखना, मदिरा को मुख में डालने के पश्चात् शीघ्र उसे कुल्ला कर थूक देना और किसी भी स्थिति में उसे कण्ठ ...

धारण करना ही धर्म है

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 धारण करना ही धर्म है Image by Manfred Richter from Pixabay एक राजा ने घोषणा की, कि जो धर्म श्रेष्ठ होगा, मैं उसे स्वीकार करूँगा और आगे बढ़ाने में मदद दूँगा। अब तो उसके पास अपने धर्म की श्रेष्ठता का गुण गाते एक से एक विद्वान् आने लगे, जो दूसरे धर्मों का दोष गिनाते और अपने धर्म की श्रेष्ठता बखानते। इससे यह तय न हो पाया कि आखिर वह धर्म कौन सा है, जिसे राजा अपनाये व प्रश्रय दे कर आगे बढ़ाये। अनिर्णय की इस स्थिति से राजा बेहद दुःखी हुआ और अधर्म में ही जीता रहा; लेकिन उसने अपनी खोज ख़त्म नहीं की। वह अन्वेषण में जुटा रहा। इसी तरह प्रतीक्षा में वर्षों बीत गये और राजा बूढ़ा होने लगा। अधर्म का जीवन उसे पीड़ा, मनस्ताप देता रहा। आखिर एक प्रसिद्ध फ़क़ीर से उसने समस्या का हल पूछा और कहा - मैं सर्वश्रेष्ठ धर्म की खोज में हूँ, पर मुझे वह नहीं मिल रहा। आप ही कुछ मार्गदर्शन करें और सुझायें। फ़क़ीर ने माथे पर बल डाल कर अचंभे से पूछा - सर्वश्रेष्ठ धर्म ? क्या संसार में बहुत से धर्म होते हैं, जो श्रेष्ठ या अश्रेष्ठ की बात उठे ? धर्म तो एक ही है, अहंकार बेशक़ अनेक हो सकते हैं, पर धर्...

मेहनत की रोटी

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मेहनत की रोटी Image by Stefan Schweihofer from Pixabay प्राचीन काल में देवदत्त नाम का एक चोर रहता था। वह छोटी-मोटी चोरियां कर अपना भरण-पोषण करता था। एक बार जब वह एक सेठ के घर चोरी करने गया तो सिपाहियों ने उसे घेर लिया। उसके कई साथी पकड़ लिए गए। वह जान बचाकर भाग निकला। सिपाही उसके पीछे पड़े हुए थे। अपनी जान बचाने के लिए वह एक आश्रम में जा छुपा। जब सिपाही चले गए तो वह आश्रम के स्वामी के पास गया और उनसे अपनी शरण में लेने की विनती की। यद्यपि स्वामी जी उसकी असलियत से परिचित हो चुके थे, किंतु उन्होंने उसे यह सोचकर आश्रम में रहने की अनुमति दे दी कि शायद सुसंगति से वह सुधर जाए। देवदत्त तपस्वियों के वेष में आश्रम में रहने लगा। वह दुराचारी व्यक्ति था। सुसंगति के बावजूद उसके स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं आया। आश्रम के स्वामी जी के पास एक सोने की कुल्हाड़ी थी, जिसे आत्मरक्षा के लिए वे सदैव अपने पास रखते थे। वह सोने की कुल्हाड़ी देवदत्त की नज़रों में चढ़ चुकी थी। देवदत्त किसी प्रकार कुल्हाड़ी को चुराना चाहता था। आख़िरकार एक दिन उसे मौका मिल गया। जब स्वामी जी सो रहे थे तो देवदत्...

स्वयं को पहचानें

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 स्वयं को पहचानें Image by Engin Akyurt from Pixabay एक बार स्वामी विवेकानंद के आश्रम में एक व्यक्ति आया जो देखने में बहुत दुःखी लग रहा था। वह व्यक्ति आते ही स्वामी जी के चरणों में गिर पड़ा और बोला - “महाराज! मैं अपने जीवन से बहुत दुःखी हूं, मैं अपने दैनिक जीवन में बहुत मेहनत करता हूँ, काफी लगन से भी काम करता हूँ लेकिन कभी भी सफल नहीं हो पाया। भगवान ने मुझे ऐसा नसीब क्यों दिया है कि मैं पढ़ा-लिखा और मेहनती होते हुए भी कभी कामयाब नहीं हो पाया हूँ।” स्वामी जी उस व्यक्ति की परेशानी को पल भर में ही समझ गए। उन दिनों स्वामी जी के पास एक छोटा-सा पालतू कुत्ता था, उन्होंने उस व्यक्ति से कहा ‘‘तुम कुछ दूर जरा मेरे कुत्ते को सैर करा लाओ फिर मैं तुम्हारे सवाल का जवाब दूँगा।’’ आदमी ने बड़े आश्चर्य से स्वामी जी की ओर देखा और फिर कुत्ते को लेकर कुछ दूर निकल पड़ा। काफी देर तक अच्छी-खासी सैर कराकर जब वह व्यक्ति वापस स्वामी जी के पास पहुँचा तो स्वामी जी ने देखा कि उस व्यक्ति का चेहरा अभी भी चमक रहा था, जबकि कुत्ता हांफ रहा था और बहुत थका हुआ लग रहा था। स्वामी जी ने व्यक्ति से कहा कि...

समझदार बहू

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 समझदार बहू Image by Martin Hetto from Pixabay शाम को गरमी थोड़ी थमी तो मैं पड़ोस में जाकर निशा के पास बैठ गई। उसकी सासु माँ कई दिनों से बीमार है। सोचा कि ख़बर भी ले आऊँ और मिल भी आऊँ। मेरे बैठे-बैठे उसकी तीनों देवरानियाँ भी आ गई। “अम्मा जी, कैसी हैं ? ” शिष्टाचारवश पूछ कर इत्मीनान से चाय-पानी पीने लगी। फिर एक-एक करके अम्माजी की बातें होने लगी। सिर्फ़ शिकायतें, जब मैं आई तो अम्माजी ने ऐसा कहा, वैसा कहा, ये किया, वो किया। आधा घंटे बाद सब यह कहकर चली गई कि उन्होंने शाम का खाना बनाना है। बच्चे इन्तज़ार कर रहे हैं। कोई भी अम्माजी के कमरे तक भी न गया। उनके जाने के बाद मैं निशा से पूछ बैठी, “निशा! अम्माजी आज एक साल से बीमार हैं और तेरे ही पास हैं। तेरे मन में नहीं आता कि कोई और भी रखे या इनका काम करे, माँ तो सबकी है।” उसका उत्तर सुनकर मैं तो जड़-सी हो गई। वह बोली, “बहनजी, मेरी सास सात बच्चों की माँ है। अपने बच्चों को पालने में, उनको अच्छी जिंदगी देने में कभी भी अपने सुख की परवाह नहीं की। सबकी अच्छी तरह से परवरिश की। ये जो आप देख रही हैं न! मेरा घर, पति, बेटा, शानो-शौकत, ...