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Showing posts from September, 2023

सकारात्मक दृष्टिकोण

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 सकारात्मक दृष्टिकोण Image by 652234 from Pixabay एक घर के पास काफी दिन से एक बड़ी इमारत का काम चल रहा था। वहाँ रोज मज़दूरों के छोटे-छोटे बच्चे एक-दूसरे की शर्ट पकड़कर रेल-रेल का खेल खेलते थे। रोज कोई बच्चा इंजिन बनता और बाकी बच्चे डिब्बे बनते थे। इंजिन और डिब्बे वाले बच्चे रोज बदल जाते, पर….. केवल चड्डी पहना एक छोटा बच्चा हाथ में रखा कपड़ा घुमाते हुए रोज गार्ड बनता था। उन बच्चों को खेलते हुए रोज़ देखने वाले एक व्यक्ति ने कौतुहल से गार्ड बनने वाले बच्चे को पास बुलाकर पूछा - “बच्चे! तुम रोज़ गार्ड बनते हो। तुम्हें कभी इंजिन या डिब्बा बनने की इच्छा नहीं होती?” इस पर वह बच्चा बोला - “बाबूजी! मेरे पास पहनने के लिए कोई शर्ट नहीं है, तो मेरे पीछे वाले बच्चे मुझे कैसे पकड़ेंगे, और मेरे पीछे कौन खड़ा रहेगा? इसलिए मैं रोज गार्ड बनकर ही खेल में हिस्सा लेता हूँ।” ये बोलते समय मुझे उसकी आँखों में पानी दिखाई दिया। आज वह बच्चा मुझे जीवन का एक बहुत बड़ा पाठ पढ़ा गया। अपना जीवन कभी भी परिपूर्ण नहीं होता। उसमें कोई न कोई कमी जरूर रहेगी। वह बच्चा माँ-बाप से गुस्सा होकर रोते हुए बैठ सकता था, प...

सुबह का सूरज

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 सुबह का सूरज Image by Eva Boehm from Pixabay और सुबह का सूरज निकल गया। एक सुबह। अभी सूरज भी निकला नहीं था और एक मांझी नदी के किनारे पहुंच गया था। अचानक उसका पैर किसी चीज से टकरा गया। झुक कर उसने देखा कि ज़मीन पर पत्थरों से भरा हुआ एक झोला पड़ा था। उसने अपना जाल किनारे पर रख दिया। वह सुबह सूरज के उगने की प्रतीक्षा करने लगा। सूरज उग आए तो वह अपना जाल फेंके और मछलियां पकड़े। वह, जो झोला उसे पड़ा हुआ मिल गया था, जिसमें पत्थर थे, समय बिताने के लिए उसमें से एक-एक पत्थर निकाल कर शांत नदी में फेंकने लगा। सुबह के सन्नाटे में उन पत्थरों के गिरने की छपाक् की आवाज़ सुनता, फिर दूसरा पत्थर फेंकता। धीरे-धीरे सुबह का सूरज निकला। रोशनी हुई। तब तक उसने झोले के सारे पत्थर फेंक दिए थे। सिर्फ एक पत्थर उसके हाथ में रह गया था। सूरज की रोशनी में देखने से ही ऐसा लगा, मानो उसके हृदय की धड़कन बंद हो गई, सांस रुक गई। उसने जिन्हें पत्थर समझ कर फेंक दिया था, वे हीरे-जवाहरात थे, लेकिन अब तो अंतिम टुकड़ा हाथ में बचा था और वह पूरे झोले के हीरे-जवाहरात फेंक चुका था। वह रोने लगा, चिल्लाने लगा। इतनी संपदा ...

अंत समय के बोल

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 अंत समय के बोल Image by Andreas Hensel from Pixabay एक सज्जन ने तोता पाल रखा था और वे उस से बहुत स्नेह करते थे। एक दिन एक बिल्ली उस तोते पर झपटी और तोते को उठा कर ले गई। वह सज्जन रोने लगे तो लोगों ने कहा - प्रभु! आप क्यों रोते हो? हम आपको दूसरा तोता ला देते हैं। वह सज्जन बोले - मैं तोते के दूर जाने पर नहीं रो रहा हूँ। पूछा गया - फिर क्यों रो रहे हो? कहने लगे - दरअसल बात ये है कि मैंने उस तोते को रामायण की चौपाइयां सिखा रखी थी। वह सारा दिन चौपाइयां बोलता रहता था। आज जब बिल्ली उस पर झपटी तो वह चौपाइयां भूल गया और टाएं-टाएं करने लगा। अब मुझे ये फिक्र खाए जा रही है कि रामायण तो मैं भी पढ़ता हूँ, लेकिन जब यमराज मुझ पर झपटेगा, न मालूम मेरी जिह्वा से रामायण की चौपाइयां निकलेंगी या तोते की तरह टाएं-टाएं निकलेगी। इसीलिए महापुरुष कहते हैं कि विचार-विचार कर तत्वज्ञान और रूपध्यान इतना पक्का कर लो कि हर समय, हर जगह भगवान के सिवाय और कुछ दिखाई न दे। हर समय जिह्वा पर राधे-राधे या राम-राम ही चलता रहे। ऐसा न हो कि अन्तिम समय सामने देख कर हम भी तोते की तरह भगवान के नाम की जगह हाय-हा...

मकड़ी की कहानी

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मकड़ी की कहानी Image by Ralph from Pixabay शहर के एक बड़े संग्रहालय (म्यूजियम) के बेसमेंट में कई पेंटिंग्स रखी हुई थी। ये वे पेंटिंग्स थी, जिन्हें प्रदर्शनी कक्ष में स्थान नहीं मिला था। लंबे समय से बेसमेंट में पड़ी पेंटिंग्स पर मकड़ियों ने जाला बना रखा था। बेसमेंट के कोने में पड़ी एक पेंटिंग पर एक मकड़ी ने बहुत मेहनत से बड़ा-सा जाला बुना हुआ था। वह उसका घर था और उसके लिए दुनिया की सबसे प्यारी चीज़ थी। वह उसका विशेष रूप से ख्याल रखा करती थी। एक दिन संग्रहालय की साफ़-सफाई और रख-रखाव का कार्य प्रारंभ हुआ। इस प्रक्रिया में बेसमेंट में रखी कुछ चुनिंदा पेंटिंग्स को म्यूजियम के प्रदर्शनी कक्ष में रखा जाने लगा। यह देख कर संग्रहालय के बेसमेंट में रहने वाली कई मकड़ियाँ अपना जाला छोड़ अन्यत्र चली गई। लेकिन कोने की पेंटिंग की मकड़ी ने अपना जाला नहीं छोड़ा। उसने सोचा कि सभी पेंटिंग्स को तो प्रदर्शनी कक्ष में नहीं ले जाया जायेगा। हो सकता है इस पेंटिंग को भी न ले जाया जाये। कुछ समय बीतने के बाद बेसमेंट से और अधिक पेंटिंग्स उठाई जाने लगी लेकिन तब भी मकड़ी ने सोचा कि ये मेरे रहने की सबसे अच्छी ...

ध्यान के पंख

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 ध्यान के पंख Image by Steve Bidmead from Pixabay बहुत समय पहले की बात है। एक राजा को उपहार में किसी ने बाज के दो बच्चे भेंट किये। वे बहुत ही अच्छी नस्ल के थे और राजा ने कभी इससे पहले इतने शानदार बाज नहीं देखे थे। राजा ने उनकी देखभाल के लिए एक अनुभवी आदमी को नियुक्त कर दिया। कुछ समय पश्चात राजा ने देखा कि दोनों बाज काफी बड़े हो चुके थे और अब पहले से भी शानदार लग रहे थे। राजा ने बाजों की देखभाल कर रहे आदमी से कहा - “मैं इनकी उड़ान देखना चाहता हूँ। तुम इन्हें उड़ने का इशारा करो।” आदमी ने ऐसा ही किया। इशारा मिलते ही दोनों बाज उड़ान भरने लगे, पर जहाँ एक बाज आसमान की ऊंचाइयों को छू रहा था, वहीं दूसरा कुछ ऊपर जाकर वापस उसी डाल पर आकर बैठ गया, जिससे वह उड़ा था। ये देख कर राजा को कुछ अजीब लगा। “क्या बात है? जहाँ एक बाज इतनी अच्छी उड़ान भर रहा है वहीं ये दूसरा बाज उड़ना ही नहीं चाह रहा....?” - राजा ने सेवक से सवाल किया। सेवक बोला - “जी हुजूर! इस बाज के साथ शुरू से यही समस्या है। वह इस डाल को छोड़ता ही नहीं।” राजा को दोनों ही बाज प्रिय थे और वह दूसरे बाज को भी उसी तरह उड़ता देखना चाह...

सच्चा इंसान

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 सच्चा इंसान Image by xuuxuu from Pixabay रामानुजाचार्य प्राचीन काल में हुए एक प्रसिद्ध विद्वान थे। उनका जन्म मद्रास नगर के समीप पेरुबुदूर गाँव में हुआ था। बाल्यकाल में इन्हें शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा गया। रामानुज के गुरु ने बहुत मनोयोग से शिष्य को शिक्षा दी। शिक्षा समाप्त होने पर वे बोले - ‘पुत्र! मैं तुम्हें एक मंत्र की दीक्षा दे रहा हूँ। इस मंत्र के सुनने से भी स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।’ रामानुज ने श्रद्धाभाव से मंत्र की दीक्षा ग्रहण की। वह मंत्र था - ‘ऊँ नमो नारायणाय।’ आश्रम छोड़ने से पहले गुरु ने एक बार फिर चेतावनी दी - ‘रामानुज! ध्यान रहे, यह मंत्र किसी अयोग्य व्यक्ति के कानों में न पड़े।’ रामानुज ने मन ही मन सोचा - ‘इस मंत्र की शक्ति कितनी अपार है। यदि इसे केवल सुनने भर से ही स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है, तो क्यों न मैं सभी को यह मंत्र सिखा दूं?’ रामानुज के हृदय में मनुष्यमात्र के कल्याण की भावना छिपी थी। इसके लिए उन्होंने अपने गुरु की आज्ञा भी भंग कर दी। उन्होंने संपूर्ण प्रदेश में उक्त मंत्र का जाप आरंभ करवा दिया। सभी व्यक्ति वह मंत्र जपने लगे। ग...

सम्मान किसका?

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 सम्मान किसका? Image by Alexa from Pixabay एक बार की बात है, किसी गाँव में एक पंडित रहता था। वैसे तो पंडित जी को वेदों और शास्त्रों का बहुत ज्ञान था, लेकिन वे बहुत ग़रीब थे। न ही रहने के लिए अच्छा घर था और न ही अच्छे भोजन के लिए पैसे। एक छोटी सी झोपड़ी थी। उसी में वे रहते थे और भिक्षा माँगकर जो मिल जाता, उसी से अपना जीवन यापन करते थे। एक बार वे पास के किसी गाँव में भिक्षा मांगने गये। उस समय उनके कपड़े बहुत गंदे थे और काफ़ी जगह से फट भी गये थे। जब उन्होने एक घर का दरवाजा खटखटाया तो सामने से एक व्यक्ति बाहर आया। उसने जब पंडित को फटे चिथड़े कपड़ों में देखा तो उसका मन घृणा से भर गया और उसने पंडित को धक्के मारकर घर से निकाल दिया। बोला - पता नहीं कहाँ से गंदा पागल चला आया है? पंडित दुःखी मन से वापस चला आया। जब अपने घर वापस लौट रहा था तो किसी अमीर आदमी की नज़र पंडित के फटे कपड़ों पर पड़ी तो उसने दया दिखाई और पंडित को पहनने के लिए नये कपड़े दे दिए। अगले दिन पंडित फिर से उसी गाँव में उसी व्यक्ति के पास भिक्षा मांगने गया। व्यक्ति ने नये कपड़ों में पंडित को देखा और हाथ जोड़कर पंडित को अं...

घर को औरत ही गढ़ती है

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 घर को औरत ही गढ़ती है Image by 1195798 from Pixabay एक गांव में एक जमींदार था। उसके कई नौकरों में जग्गू भी था। गांव से लगी बस्ती में बाकी मज़दूरों के साथ जग्गू भी अपने पाँच लड़कों के साथ रहता था। जग्गू की पत्नी बहुत पहले गुजर गई थी। एक झोंपड़े में वह बच्चों को पाल रहा था। बच्चे बड़े होते गये और जमींदार के घर नौकरी में लगते गये। सब मज़दूरों को शाम को मजूरी मिलती। जग्गू और उसके लड़के चना और गुड़ लेते थे। चना भून कर गुड़ के साथ खा लेते थे। बस्ती वालों ने जग्गू को बड़े लड़के की शादी कर देने की सलाह दी। उसकी शादी हो गई और कुछ दिन बाद गौना भी हो गया। उस दिन जग्गू की झोंपड़ी के सामने बहुत भीड़ मची। बहुत लोग इकट्ठा हुए नई बहू देखने। फिर धीरे-धीरे भीड़ छंटी। आदमी काम पर चले गये, औरतें अपने अपने घर। जाते जाते एक बुढ़िया बहू से कहती गई - पास ही मेरा घर है। किसी चीज की ज़रूरत हो तो संकोच मत करना। आ जाना लेने। सबके जाने के बाद बहू ने घूंघट उठा कर अपनी ससुराल को देखा तो उसका कलेजा मुँह को आ गया। जर्जर सी झोंपड़ी। खूंटी पर टंगी कुछ पोटलियां और झोंपड़ी के बाहर बने छः चूल्हे (जग्गू और उसके सभी बच्...