सच्चा इंसान
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सच्चा इंसान
रामानुजाचार्य प्राचीन काल में हुए एक प्रसिद्ध विद्वान थे। उनका जन्म मद्रास नगर के समीप पेरुबुदूर गाँव में हुआ था।
बाल्यकाल में इन्हें शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा गया। रामानुज के गुरु ने बहुत मनोयोग से शिष्य को शिक्षा दी।
शिक्षा समाप्त होने पर वे बोले - ‘पुत्र! मैं तुम्हें एक मंत्र की दीक्षा दे रहा हूँ। इस मंत्र के सुनने से भी स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।’
रामानुज ने श्रद्धाभाव से मंत्र की दीक्षा ग्रहण की। वह मंत्र था -
‘ऊँ नमो नारायणाय।’
आश्रम छोड़ने से पहले गुरु ने एक बार फिर चेतावनी दी - ‘रामानुज! ध्यान रहे, यह मंत्र किसी अयोग्य व्यक्ति के कानों में न पड़े।’
रामानुज ने मन ही मन सोचा - ‘इस मंत्र की शक्ति कितनी अपार है। यदि इसे केवल सुनने भर से ही स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है, तो क्यों न मैं सभी को यह मंत्र सिखा दूं?’
रामानुज के हृदय में मनुष्यमात्र के कल्याण की भावना छिपी थी। इसके लिए उन्होंने अपने गुरु की आज्ञा भी भंग कर दी।
उन्होंने संपूर्ण प्रदेश में उक्त मंत्र का जाप आरंभ करवा दिया। सभी व्यक्ति वह मंत्र जपने लगे।
गुरु जी को पता लगा तो उन्हें बहुत क्रोध आया।
रामानुज ने उन्हें शांत करते हुए उत्तर दिया - ‘गुरु जी! इस मंत्र के जाप से बाकी सब लोग स्वर्ग को चले जाएँगे, केवल मैं ही नहीं जा पाऊँगा, क्योंकि मैंने आपकी आज्ञा का पालन नहीं किया है। सिर्फ मैं ही नरक में जाऊँगा। यदि मेरे नरक जाने से सभी को स्वर्ग मिलता है, तो इसमें नुकसान ही क्या है?’
गुरु ने शिष्य का उत्तर सुनकर उसे गले से लगा लिया और बोले - ‘वत्स! तुमने तो मेरी आँखें खोल दी। तुम नरक कैसे जा सकते हो? सभी का भला सोचने वाला सदा ही सुख पाता है। तुम सच्चे अर्थों में आचार्य हो।’
रामानुजाचार्य अपने गुरु के चरणों में झुक गए।
सभी लोगों को उनकी भाँति सच्चे और सही मायने में इंसान बनना चाहिए।
सच्चा इंसान वह नहीं होता, जो केवल अपने बारे में सोचे। सच्चा इंसान वही है, जो दूसरों का भला करता है।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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