अंत समय के बोल

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अंत समय के बोल

Image by Andreas Hensel from Pixabay

एक सज्जन ने तोता पाल रखा था और वे उस से बहुत स्नेह करते थे। एक दिन एक बिल्ली उस तोते पर झपटी और तोते को उठा कर ले गई।

वह सज्जन रोने लगे तो लोगों ने कहा - प्रभु! आप क्यों रोते हो? हम आपको दूसरा तोता ला देते हैं।

वह सज्जन बोले - मैं तोते के दूर जाने पर नहीं रो रहा हूँ।

पूछा गया - फिर क्यों रो रहे हो?

कहने लगे - दरअसल बात ये है कि मैंने उस तोते को रामायण की चौपाइयां सिखा रखी थी। वह सारा दिन चौपाइयां बोलता रहता था। आज जब बिल्ली उस पर झपटी तो वह चौपाइयां भूल गया और टाएं-टाएं करने लगा। अब मुझे ये फिक्र खाए जा रही है कि रामायण तो मैं भी पढ़ता हूँ, लेकिन जब यमराज मुझ पर झपटेगा, न मालूम मेरी जिह्वा से रामायण की चौपाइयां निकलेंगी या तोते की तरह टाएं-टाएं निकलेगी।

इसीलिए महापुरुष कहते हैं कि विचार-विचार कर तत्वज्ञान और रूपध्यान इतना पक्का कर लो कि हर समय, हर जगह भगवान के सिवाय और कुछ दिखाई न दे। हर समय जिह्वा पर राधे-राधे या राम-राम ही चलता रहे। ऐसा न हो कि अन्तिम समय सामने देख कर हम भी तोते की तरह भगवान के नाम की जगह हाय-हाय करने लगें।

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 सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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