कर्माबाई का खिचड़ी भोग
👼👼💧💧👼💧💧👼👼 कर्माबाई का खिचड़ी भोग Image by 신희 이 from Pixabay भगवान श्री कृष्ण की परम उपासक कर्माबाई जी जगन्नाथ पुरी में रहती थी और भगवान को बचपन से ही पुत्र रूप में भजती थी। ठाकुर जी के बाल रूप से वह रोज ऐसे बातें करती जैसे ठाकुर जी उनके पुत्र हों और उनके घर में ही वास करते हों। एक दिन कर्माबाई की इच्छा हुई कि ठाकुर जी को फल-मेवे की जगह अपने हाथ से कुछ बनाकर खिलाऊँ। उन्होंने जगन्नाथ प्रभु को अपनी इच्छा बतलायी। भगवान तो भक्तों के लिए सर्वदा प्रस्तुत हैं। प्रभु जी बोले - “माँ! जो भी बनाया हो वही खिला दो। बहुत भूख लगी है।” कर्माबाई ने खिचड़ी बनाई थी। ठाकुर जी को खिचड़ी खाने को दे दी। प्रभु बहुत चाव से खिचड़ी खाने लगे और कर्माबाई ये सोचकर भगवान को पंखा झलने लगी कि कहीं गर्म खिचड़ी से मेरे ठाकुर जी का मुँह न जल जाये। संसार को अपने मुख में समाने वाले भगवान को कर्माबाई एक माता की तरह पंखा कर रही हैं और भगवान भक्त की भावना में भाव-विभोर हो रहे हैं। भक्त वत्सल भगवान ने कहा - “माँ! मुझे तो खिचड़ी बहुत अच्छी लगी। मेरे लिए आप रोज खिचड़ी ही पकाया करें। मैं तो यही आकर खाऊँगा।” अब तो कर्माबाई जी ...