मातृ-पितृ पूजन दिवस का इतिहास
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मातृ-पितृ पूजन दिवस का इतिहास
एक बार भगवान शंकर के यहाँ उनके दोनों पुत्रों में होड़ लगी कि संसार में हम दोनों में से कौन बड़ा माना जाता है?
इसका निर्णय लेने के लिए दोनों गए शिव-पार्वती के पास। शिव-पार्वती ने कहा - जो संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करके पहले पहुँचेगा, उसी का बड़प्पन माना जाएगा।
कार्तिकेय तुरन्त अपने वाहन मयूर पर निकल गये, पृथ्वी की परिक्रमा करने। गणपति जी चुपके-से एकांत में चले गये। थोड़ी देर शांत होकर उन्होंने उपाय खोजा तो झट से उन्हें उपाय मिल गया। जो ध्यान करते हैं, शांत बैठते हैं, उन्हें अंतर्यामी परमात्मा सत्प्रेरणा देते हैं। अतः किसी कठिनाई के समय घबराना नहीं चाहिए बल्कि भगवान का ध्यान करके थोड़ी देर शांत बैठो तो आपको जल्द ही उस समस्या का समाधान मिल जायेगा।
फिर गणपति जी आये शिव-पार्वती के पास। माता-पिता का हाथ पकड़ कर दोनों को ऊँचे आसन पर बिठाया। पत्र-पुष्प से उनके श्री चरणों की पूजा की और प्रदक्षिणा करने लगे। एक चक्कर पूरा हुआ तो प्रणाम किया, दूसरा चक्कर लगाकर प्रणाम किया। इस प्रकार उन्होंने माता-पिता की सात प्रदक्षिणा कर ली।
शिव-पार्वती ने पूछा - वत्स! ये प्रदक्षिणाएँ क्यों की?
गणपति जी ने कहा कि
सर्वतीर्थमयी माता। सर्वदेवमयो पिता।
सारी पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने से जो पुण्य होता है, वही पुण्य माता की प्रदक्षिणा करने से हो जाता है, यह शास्त्रवचन है। पिता का पूजन करने से सब देवताओं का पूजन हो जाता है। पिता देवस्वरूप हैं। अतः आपकी परिक्रमा करके मैंने संपूर्ण पृथ्वी की सात परिक्रमाएँ कर ली हैं।
तब से गणपति जी संसार में प्रथम पूज्य हो गये।
शिव-पुराण में आता है -
पित्रोश्च पूजनं कृत्वा प्रक्रान्तिं च करोति यः।
तस्य वै पृथिवीजन्यफलं भवति निश्चितम्।।
“जो पुत्र माता-पिता की पूजा करके उनकी प्रदक्षिणा करता है, उसे पृथ्वी-परिक्रमाजनित फल सुलभ हो जाता है।”
“प्रेम दिवस जरूर मनायें लेकिन प्रेम दिवस में संयम और सच्चा विकास होना चाहिए।” - पूज्य बापूजी
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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