सच्चा श्राद्ध
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सच्चा श्राद्ध
Image by Peter Kraayvanger from Pixabay
एक बार रामानंद जी ने कबीर जी से कहा कि हे कबीर! आज श्राद्ध का दिन है और पितरों के लिये खीर बनानी है। आप जाइये और पितरों की खीर के लिये दूध ले आइये।
कबीर जी उस समय 9 वर्ष के ही थे।
कबीर जी दूध का बरतन लेकर चल पड़े।
चलते-चलते उन्होंने देखा कि आगे रास्ते में एक मरी हुई गाय पड़ी थी।
कबीर जी ने आसपास से घास को उखाड़ कर गाय के पास डाल दिया और वहीं पर बैठ गये।
दूध का बरतन भी पास ही रख लिया।
जब काफी देर हो गयी तो रामानंद ने सोचा कि पितरों को छिकाने का टाइम हो गया है और कबीर अभी तक नहीं आया तो रामानंद जी खुद चल पड़े दूध लेने।
वे चले जा रहे थे तो आगे देखा कि कबीर जी एक मरी हुई गाय के पास बरतन रखे बैठे हैं।
रामानंद जी बोले - अरे कबीर! तू दूध लेने नहीं गया?
कबीर जी बोले - स्वामी जी! ये गाय पहले घास खायेगी, तभी तो दूध देगी।
रामानंद बोले - अरे! ये गाय तो मरी हुई है। ये घास कैसे खायेगी?
कबीर जी बोले - स्वामी जी! ये गाय तो आज मरी है। जब आज की मरी गाय घास नहीं खा सकती, तो आपके 100 साल पहले मरे हुए पितर खीर कैसे खायेंगे?
यह सुनते ही रामानन्द जी मौन हो गये।
उन्हें अपनी भूल का अहसास हुआ।
माटी का एक नाग बना के,
पूजे लोग लुगाया।
जिंदा नाग जब घर में निकले,
ले लाठी धमकाया।।
जिंदा बाप कोई न पूजे,
मरे बाद पुजवाया।
मुठ्ठी भर चावल लेके,
कौवे को बाप बनाया।।
यह दुनिया कितनी बावरी है,
जो पत्थर पूजे जाय।
घर की चकिया कोई न पूजे,
जिसका पीसा खाय।।
- संत कबीर
भावार्थ - जो जीवित हैं, उनकी सेवा करो। वही सच्चा श्राद्ध है।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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