प्रतिष्ठित पराक्रम
👼👼💧💧👼💧💧👼👼 प्रतिष्ठित पराक्रम Image by Ralph from Pixabay पराक्रम ऐसा होना चाहिए, जो प्रतिष्ठित हो। रामायण में युद्ध से पहले का किस्सा है। श्री राम ने ये तय कर दिया था कि अंगद को रावण के दरबार में दूत बनाकर भेजा जाएगा। लंका के दरबार में जाने से पहले अंगद हनुमान जी के पास पहुंचे। अंगद हनुमान जी के भक्त भी थे और उन्हें गुरु भी मानते थे। अंगद ने हनुमान जी से कहा, “आप तो पहले लंका जा चुके हैं और अब मैं जा रहा हूँ। आप बताइए, मुझे वहाँ जाकर क्या और कैसे करना चाहिए?” हनुमान जी ने समझाते हुए कहा, “जो भी काम करो, उसकी चर्चा हमेशा होनी चाहिए। पराक्रम ऐसा होना चाहिए, जो प्रतिष्ठित हो।” अंगद ने हनुमान जी की बातें ध्यान से सुनी और फिर सोचते रहे कि इन बातों का सही अर्थ क्या होगा। कुछ समय बाद अंगद रावण के सामने खड़े थे। रावण लगातार अंगद का अपमान कर रहा था। रावण ने धर्म की दुहाई देते हुआ कहा, “मैं धर्म जानता हूँ, इसलिए तुमसे कह रहा हूँ, तुम्हारा पिता बाली मेरा मित्र था। तुम अपने कुल की प्रतिष्ठा नष्ट कर रहे हो। जिस राम के साथ तुम हो, उसके पास है क्या? वह डरपोक विभीषण, तुम और सुग्रीव जैसे बंद...