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Showing posts from June, 2024

प्रतिष्ठित पराक्रम

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 प्रतिष्ठित पराक्रम Image by Ralph from Pixabay पराक्रम ऐसा होना चाहिए, जो प्रतिष्ठित हो। रामायण में युद्ध से पहले का किस्सा है। श्री राम ने ये तय कर दिया था कि अंगद को रावण के दरबार में दूत बनाकर भेजा जाएगा। लंका के दरबार में जाने से पहले अंगद हनुमान जी के पास पहुंचे। अंगद हनुमान जी के भक्त भी थे और उन्हें गुरु भी मानते थे। अंगद ने हनुमान जी से कहा, “आप तो पहले लंका जा चुके हैं और अब मैं जा रहा हूँ। आप बताइए, मुझे वहाँ जाकर क्या और कैसे करना चाहिए?” हनुमान जी ने समझाते हुए कहा, “जो भी काम करो, उसकी चर्चा हमेशा होनी चाहिए। पराक्रम ऐसा होना चाहिए, जो प्रतिष्ठित हो।” अंगद ने हनुमान जी की बातें ध्यान से सुनी और फिर सोचते रहे कि इन बातों का सही अर्थ क्या होगा। कुछ समय बाद अंगद रावण के सामने खड़े थे। रावण लगातार अंगद का अपमान कर रहा था। रावण ने धर्म की दुहाई देते हुआ कहा, “मैं धर्म जानता हूँ, इसलिए तुमसे कह रहा हूँ, तुम्हारा पिता बाली मेरा मित्र था। तुम अपने कुल की प्रतिष्ठा नष्ट कर रहे हो। जिस राम के साथ तुम हो, उसके पास है क्या? वह डरपोक विभीषण, तुम और सुग्रीव जैसे बंद...

सुखी रहने का तरीका

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 सुखी रहने का तरीका Image by Bruno from Pixabay एक संत अपने आश्रम में बैठे थे। तभी उनका एक शिष्य जो स्वभाव से थोड़ा क्रोधी था उनके समक्ष आया और बोला - गुरुजी! आप अपना व्यवहार इतना मधुर कैसे बनाये रहते हैं? न आप किसी पर क्रोध करते हैं और न ही किसी को कुछ भला-बुरा कहते हैं। कृपया अपने इस अच्छे व्यवहार का रहस्य बताइए? संत बोले - मुझे अपने रहस्य के बारे में तो नहीं पता, लेकिन मैं तुम्हारा एक रहस्य जानता हूँ। ‘मेरा रहस्य! वह क्या है गुरुजी?’, शिष्य ने आश्चर्य से पूछा। ‘तुम अगले एक हफ्ते में मरने वाले हो’, संत दुःखी होते हुए बोले। कोई और कहता तो शिष्य ये बात मजाक में टाल सकता था, लेकिन स्वयं संत के मुख से निकली बात को कोई कैसे काट सकता था। शिष्य उदास हो गया और गुरु का आशीर्वाद लेकर वहाँ से चला गया। उस समय से शिष्य का स्वभाव अचानक बदल सा गया। वह हर किसी से प्रेम से मिलता और कभी किसी पर क्रोध नहीं करता। अपना ज्यादातर समय ध्यान और पूजा में लगाता। वह उनके पास भी जाता, जिनसे उसने कभी गलत व्यवहार किया था और उनसे माफ़ी मांगता। देखते-देखते संत की भविष्यवाणी को एक हफ्ता पूरा होने क...

भाव के भूखे हैं भगवान

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 भाव के भूखे हैं भगवान Image by Goran Horvat from Pixabay उस समय कथावाचक व्यास डोगरे जी का जमाना था बनारस में। वहाँ का समाज उनका बहुत सम्मान करता था। वह चलते थे, तो एक काफिला साथ-साथ चलता था। एक दिन वे दुर्गा मंदिर से दर्शन करके निकले, तो एक कोने में बैठे ब्राह्मण पर दृष्टि पड़ी, जो दुर्गा स्तुति पढ़ रहा था। वे उस ब्राह्मण के पास पहुंचे, जो पहनावे से ही निर्धन लग रहा था। डोगरे जी ने उसको इक्कीस रुपये दिये और बताया कि वह अशुद्ध पाठ कर रहा है। ब्राह्मण ने उनका धन्यवाद किया और सावधानी से पाठ करने की कोशिश में लग गया। रात में डोगरे जी को जबर बुखार ने धर दबोचा। बनारस के टॉप के डॉक्टर वहाँ पहुंच गए। भोर में सवा चार बजे उठ कर डोगरे जी बैठ गये और तुरंत दुर्गा माता मंदिर जाने की इच्छा प्रकट की। एक छोटी-मोटी भीड़ साथ लिये डोगरे जी मंदिर पहुंचे। वही ब्राह्मण अपने ठीहे पर बैठा पाठ कर रहा था। डोगरे जी को उसने प्रणाम किया और बताया कि वह अब उनके बताये मुताबिक पाठ कर रहा है। वृद्ध कथावाचक ने सिर इनकार में हिलाया, “पंडित जी, आपको विधि बताना हमारी भूल थी। घर जाते ही तेज बुखार ने धर दबो...

राम नाम की महिमा

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 राम नाम की महिमा Image by Hans from Pixabay एक संत महात्मा श्यामदास जी रात्रि के समय में ‘श्री राम’ नाम का अजपा जाप करते हुए अपनी मस्ती में चले जा रहे थे। जाप करते हुए वे एक गहन जंगल से गुज़़र रहे थे। विरक्त होने के कारण वे बार-बार देशाटन करते रहते थे। वे किसी एक स्थान में अधिक समय नहीं रहते थे। वे ईश्वर के नाम प्रेमी थे। इसलिये दिन-रात उनके मुख से रामनाम जप चलता रहता था। स्वयं रामनाम का अजपा जाप करते तथा औरों को भी उसी मार्ग पर चलाते। श्यामदास जी गहन जंगल में मार्ग भूल गये थे, पर अपनी मस्ती में चले जा रहे थे कि जहाँ राम ले चलें, वहीं मैं चलूँगा। दूर अँधेरे के बीच में बहुत सी दीपमालाएँ प्रकाशित थी। महात्मा जी उसी दिशा की ओर चलने लगे। निकट पहुँचते ही देखा कि वटवृक्ष के पास अनेक प्रकार के वाद्ययंत्र बज रहे हैं, नाच-गाना और शराब की महफ़िल जमी है। कई स्त्री-पुरुष साथ में नाचते-कूदते, हँसते तथा औरों को हँसा रहे हैं। उन्हें महसूस हुआ कि वे मनुष्य नहीं प्रेतात्मा हैं। श्यामदास जी को देखकर एक प्रेत ने उनका हाथ पकड़कर कहा - ओ मनुष्य! हमारे राजा तुझे बुलाते हैं, चल। वे मस्तभाव...

मन का भूत

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मन का भूत Image by HeungSoon from Pixabay एक तांत्रिक ने एक बार एक भूत पकड़ लिया और उसे बेचने शहर गया। संयोगवश उसकी मुलाकात एक सेठ से हुई। सेठ ने उससे पूछा - भाई! यह क्या है? उसने जवाब दिया कि यह एक भूत है। इसमें अपार बल है। कितना भी कठिन कार्य क्यों न हो, यह एक पल में निपटा देता है। यह कई वर्षों का काम मिनटों में कर सकता है। सेठ भूत की प्रशंसा सुन कर ललचा गया और उसकी कीमत पूछी। उस आदमी ने कहा - कीमत बस पाँच सौ रुपए है। कीमत सुन कर सेठ ने हैरानी से पूछा - बस पाँच सौ रुपए!!! उस आदमी ने कहा - सेठ जी! जहाँ इसके असंख्य गुण हैं वहाँ एक दोष भी है। अगर इसे काम न मिले, तो मालिक को खाने दौड़ता है। सेठ ने विचार किया कि मेरे तो सैकड़ों व्यवसाय हैं, विलायत तक कारोबार है। यह भूत मर जायेगा, पर काम खत्म न होगा। यह सोच कर उसने भूत खरीद लिया, मगर भूत तो भूत ही था। उसने अपना मुंह फैलाया और बोला - काम....काम....काम....काम....। सेठ भी तैयार ही था। उसने भूत को तुरन्त दस काम बता दिये, पर भूत उसकी सोच से कहीं अधिक तेज था। इधर मुँह से काम निकलता, उधर पूरा हो जाता। अब सेठ घबरा गया। संयोग से ...

सेवादार का श्राप

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 सेवादार का श्राप एक दिन गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज के दरबार में एक मदारी अपने रीछ के साथ प्रस्तुत हुआ। मदारी के द्वारा सिखाए गए करतब रीछ ने संगत के सामने प्रस्तुत करने शुरू किए। कुछ खेल इतने हास्य से भरपूर थे कि संगत की हंसी रोके से नहीं रुक रही थी। करतब देख कर गुरु जी मुस्कुरा रहे थे। एक सिख के ठहाकों से सारा दरबार गुंजायमान था। वह सिख था, गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज पर चँवर झुलाने की सेवा करने वाला भाई कीरतिया। ‘भाई कीरतिया! आप इन करतबों को देख बड़े आनंदित हो’, गुरु साहब जी ने कहा। ‘महाराज! इस रीछ के करतब हैं ही इतने हास्यपूर्ण कि सारी संगत ठहाके लगा रही है। मुस्कुरा तो आप भी रहे हैं, दातार’, भाई कीरतिया ने कहा। ‘हम तो कुदरत के करतब देख कर मुस्कुरा रहे हैं, भाई कीरतिया!’ ‘कुदरत के करतब? कैसे, महाराज?’ ‘भाई कीरतिया! क्या आप जानते हो इस रीछ के रूप में ये जीवात्मा कौन है?’ ‘नहीं दाता! ये बात मुझ जैसे साधारण जीव के बस में कहाँ?’ ‘भाई कीरतिया! रीछ के रूप में संगत का मनोरंजन करने वाला और कोई नहीं, आप का पिता भाई शोभाराम है।’ भाई कीरतिया जी को जैसे एक आघात-सा लगा। सिर से ले...