मन का भूत
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मन का भूत
Image by HeungSoon from Pixabay
एक तांत्रिक ने एक बार एक भूत पकड़ लिया और उसे बेचने शहर गया। संयोगवश उसकी मुलाकात एक सेठ से हुई।
सेठ ने उससे पूछा - भाई! यह क्या है?
उसने जवाब दिया कि यह एक भूत है। इसमें अपार बल है। कितना भी कठिन कार्य क्यों न हो, यह एक पल में निपटा देता है। यह कई वर्षों का काम मिनटों में कर सकता है।
सेठ भूत की प्रशंसा सुन कर ललचा गया और उसकी कीमत पूछी।
उस आदमी ने कहा - कीमत बस पाँच सौ रुपए है।
कीमत सुन कर सेठ ने हैरानी से पूछा - बस पाँच सौ रुपए!!!
उस आदमी ने कहा - सेठ जी! जहाँ इसके असंख्य गुण हैं वहाँ एक दोष भी है। अगर इसे काम न मिले, तो मालिक को खाने दौड़ता है।
सेठ ने विचार किया कि मेरे तो सैकड़ों व्यवसाय हैं, विलायत तक कारोबार है। यह भूत मर जायेगा, पर काम खत्म न होगा।
यह सोच कर उसने भूत खरीद लिया, मगर भूत तो भूत ही था। उसने अपना मुंह फैलाया और बोला - काम....काम....काम....काम....।
सेठ भी तैयार ही था। उसने भूत को तुरन्त दस काम बता दिये, पर भूत उसकी सोच से कहीं अधिक तेज था। इधर मुँह से काम निकलता, उधर पूरा हो जाता। अब सेठ घबरा गया।
संयोग से एक सन्त वहाँ आये। सेठ ने विनयपूर्वक उन्हें भूत की पूरी कहानी बतायी। सन्त ने हँस कर कहा - अब तुम ज़रा भी चिन्ता मत करो। एक काम करो, उस भूत से कहो कि एक लम्बा बाँस ला कर आपके आँगन में गाड़ दे। बस! जब काम हो तो काम करवा लो और कोई काम न हो, तो उसे कहो कि वह बाँस पर चढ़ा और उतरा करे। तब आपके काम भी हो जायेंगे और आपको कोई परेशानी भी न रहेगी।
सेठ ने ऐसा ही किया और सुख से रहने लगा।
वास्तव में हमारा मन ही वह भूत है। यह सदा कुछ न कुछ करता रहता है और एक पल भी खाली बिठाना चाहो, तो खाने को दौड़ता है।
हमारे श्वास ही बाँस है। श्वास पर परमात्मा के सिमरन का अभ्यास ही बाँस पर चढ़ना-उतरना है।
आप भी ऐसा ही करें। जब आवश्यकता हो मन से काम ले लो और जब काम न रहे तो हर श्वास में परमात्मा को याद करने लगो, फिर आप भी सर्व प्रकार के सुख और शांति के झूले में झूलने लगोगे।
आप सभी का दिन शुभ रहे।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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