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Showing posts from February, 2025

एक अदृश्य स्टिकर

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 एक अदृश्य स्टिकर Image by Bruno from Pixabay मेरे आगे वाली कार कछुए की तरह चल रही थी और मेरे बार-बार हॉर्न देने पर भी रास्ता नहीं दे रही थी। मैं अपना आपा खो कर चिल्लाने ही वाला था कि मैंने कार के पीछे लगा एक छोटा सा स्टिकर देखा, जिस पर लिखा था - “शारीरिक विकलांग; कृपया धैर्य रखें।” और यह पढ़ते ही जैसे सब-कुछ बदल गया। मैं तुरंत ही शांत हो गया और अपनी कार को धीमा कर लिया। यहाँ तक कि मैं उस कार और उसके ड्राईवर का विशेष ख्याल रखते हुए चलने लगा कि कहीं उसे कोई तक़लीफ न हो। मैं ऑफिस कुछ मिनट देर से ज़रूर पहुँचा, मगर मन में एक संतोष था। इस घटना ने दिमाग को हिला दिया। क्या मुझे हर बार शांत करने और धैर्य रखने के लिए किसी स्टिकर की ही ज़रुरत पड़ेगी? हमें लोगों के साथ धैर्यपूर्वक व्यवहार करने के लिए हर बार किसी स्टिकर की ज़रुरत क्यों पड़ती है? क्या हम लोगों से धैर्यपूर्वक अच्छा व्यवहार सिर्फ तब ही करेंगे, जब वे अपने माथे पर कुछ ऐसे स्टिकर्स चिपकाए घूम रहे होंगे कि - “मेरी नौकरी छूट गई है”, “मैं कैंसर से संघर्ष कर रहा हूँ”, “मेरी शादी टूट गई है”, “मैं भावनात्मक रूप से टूट गया हूँ”, ...

संत तुकाराम

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 संत तुकाराम Image by Rajesh Balouria from Pixabay एक बार की बात है, संत तुकाराम अपने आश्रम में बैठे हुए थे। तभी उनका एक शिष्य, जो स्वभाव से थोड़ा क्रोधी था, उनके समक्ष आया और बोला - ‘गुरु जी, आप कैसे अपना व्यवहार इतना मधुर बनाये रहते हैं? न आप किसी पर क्रोध करते हैं और न ही किसी को कुछ भला-बुरा कहते हैं। कृपया अपने इस अच्छे व्यवहार का रहस्य बताइए।’ संत बोले, ‘मुझे अपने रहस्य के बारे में तो नहीं पता, पर मैं तुम्हारा रहस्य जानता हूँ।’ ‘मेरा रहस्य! वह क्या है, गुरु जी?’, शिष्य ने आश्चर्य से पूछा। ‘तुम अगले एक हफ्ते में मरने वाले हो’, संत तुकाराम दुःखी होते हुए बोले। कोई और कहता तो शिष्य यह बात मजाक में टाल सकता था, पर स्वयं संत तुकाराम के मुख से निकली बात को कोई कैसे काट सकता था? शिष्य उदास हो गया और गुरु का आशीर्वाद लेकर वहाँ से चला गया। उस समय से शिष्य का स्वभाव बिलकुल बदल-सा गया। वह हर किसी से प्रेम से मिलता और कभी किसी पर क्रोध नहीं करता, अपना ज्यादातर समय ध्यान और पूजा में लगाता। वह उनके पास भी जाता, जिससे उसने कभी गलत व्यवहार किया था और उनसे माफ़ी मांगता। देखते-द...

भगवान् तेरा शुक्रिया

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 भगवान् तेरा शुक्रिया Image by Szabolcs Molnar from Pixabay आज इस पोस्ट को पढ़कर आपकी सारी ज़िन्दगी की टेंशन खत्म हो जायेगी। एक व्यक्ति काफी दिनों से चिंतित चल रहा था, जिसके कारण वह काफी चिड़चिड़ा तथा तनाव में रहने लगा था। वह इस बात से परेशान था कि घर के सारे खर्चे उसे ही उठाने पड़ते हैं, पूरे परिवार की जिम्मेदारी उसी के ऊपर है, किसी न किसी रिश्तेदार का उसके यहाँ आना-जाना लगा ही रहता है। इन्हीं बातों को सोच-सोच कर वह काफी परेशान रहता था तथा बच्चों को अक्सर डांट देता था और अपनी पत्नी से भी ज्यादातर उसका किसी न किसी बात पर झगड़ा चलता रहता था। एक दिन उसका बेटा उसके पास आया और बोला - ‘पिताजी! मेरा स्कूल का होमवर्क करा दीजिये।’ वह व्यक्ति पहले से ही तनाव में था, तो उसने बेटे को डांट कर भगा दिया लेकिन जब थोड़ी देर बाद उसका गुस्सा शांत हुआ तो वह बेटे के पास गया। उसने देखा कि बेटा सोया हुआ है और उसके हाथ में होमवर्क की कॉपी है। उसने कॉपी लेकर देखी और जैसे ही उसने कॉपी नीचे रखनी चाही, उसकी नजर होमवर्क के टाइटल पर पड़ी। होमवर्क का टाइटल था - वे चीजें जो हमें शुरू में अच्छी नहीं लगती...

वृद्धसेवा का कर्म

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 वृद्धसेवा का कर्म Image by Andreas Lischka from Pixabay माथे का पसीना अपने दुपट्टे से पोंछती हुई नियति किचन से निकल कर आई और लिविंग रूम में रखे सोफे पर धम्म से बैठ गई। थकान से पूरा शरीर दर्द कर रहा था उसका। सितंबर का महीना था और पितृपक्ष चल रहे थे। आज उसके ससुर जी का श्राद्ध था। बस! थोड़ी देर पहले ही पण्डित जी और कुछ रिश्तेदार भोजन ग्रहण कर के घर से गए थे। सबने उसके हाथ के बनाए भोजन की खूब तारीफ़ की थी, खासकर उसकी बनाई हुई खीर सबको खूब पसंद आई थी। सभी मेहमान तृप्त होकर गए थे। इस बात की संतुष्टि साफ झलक रही थी नियति के चेहरे पर। कहते हैं कि यदि पितृ श्राद्ध में भोजन करने वाले लोग तृप्त होकर जाएं, तो समझ लीजिए आपके पितृ भी तृप्त हो गए। “चलो! ज़रा खीर ही चख ली जाए। मैं भी तो देखूं, कैसी बनी है खीर, जो सब इतनी तारीफ कर रहे थे?” बुदबुदाते हुए नियति एक कटोरी में थोड़ी-सी खीर लिए वापस लिविंग रूम में आ गई। ड्राई-फ्रूट्स से भरी हुई खीर वाकई बहुत स्वादिष्ट बनी थी। वैसे नियति को मीठा ज्यादा पसंद नहीं था। पति और बच्चे भी मीठे से ज्यादा चटपटे व्यंजन पसंद करते थे, तो खीर घर में कभी...

जरूरतमंद की सेवा

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 जरूरतमंद की सेवा Image by Claudia Peters from Pixabay जरूरतमंद की सेवा सबसे बड़ी सेवा है। एक वैद्य गुरु गोविंद सिंह जी के दर्शन हेतु आनन्दपुर गया। वहाँ गुरुजी से मिलने पर उन्होंने कहा कि जाओ और जरूरतमंदों की सेवा करो। वापस आकर वह रोगियों की सेवा में जुट गया। शीघ्र ही वह पूरे शहर में प्रसिद्ध हो गया। एक बार गुरु गोविंद सिंह स्वयं उसके घर पर आए। वह बहुत प्रसन्न हुआ, लेकिन गुरुजी ने कहा कि वे कुछ देर ही ठहरेंगे। तभी एक व्यक्ति भागता हुआ आया और बोला, “वैद्य जी, मेरी पत्नी की तबियत बहुत खराब है। जल्दी चलिए अन्यथा बहुत देर हो जायेगी।” वैद्य जी असमंजस में पड़ गए। एक ओर गुरु थे, जो पहली बार उनके घर आये थे। दूसरी ओर एक जरूरतमंद रोगी था। अंततः वैद्य जी ने कर्म को प्रधानता दी और इलाज के लिए चले गए। लगभग दो घंटे के इलाज और देखभाल के बाद रोगी की हालत में सुधार हुआ। तब वे वहाँ से चले। उदास मन से उन्होंने सोचा कि गुरुजी के पास समय नहीं था, अब तक तो वे चले गए होंगे। फिर भी वैद्य जी भागते हुए वापस घर पहुंचे। घर पहुंचकर उन्हें घोर आश्चर्य हुआ। गुरुजी बैठे उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। वै...

ढोल

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 ढोल Image by Ilona Ilyés from Pixabay एक बार राजस्थान के एक छोटे से गांव नयासर में एक गरीब औरत अपने परिवार के साथ रहती थी। उस गरीब औरत का एक बेटा था। वह बड़े घरों में काम करके अपना गुजारा करती थी। वह अपने बच्चे के लिए कभी खिलौना नहीं ला सकी। एक दिन उसे काम के बदले अनाज मिला। वह अनाज को हाट में बेचने गई और जाते समय उसने बेटे से पूछा, ‘बोल, बेटे! तेरे लिए हाट से क्या लेकर आऊं?’ बेटे ने झट जवाब दिया, ‘ढोल। मेरे लिए एक ढोल ले आना, मां।’ माँ जानती थी कि उसके पास कभी इतने पैसे नहीं होंगे कि वह बेटे के लिए ढोल खरीद सके। वह हाट गई, वहाँ अनाज बेचा और उन पैसों से कुछ बेसन और नमक ख़रीदा। उसे दुःख था कि वह बेटे के लिए कुछ नहीं ला पाई। वापस आते हुए रास्ते में उसे लकड़ी का एक प्यारा-सा टुकड़ा दिखा। उसने उसे उठा लिया और आकर बेटे को दे दिया। बेटे की कुछ समझ में नहीं आया कि उसका वह क्या करे। दिन के समय वह खेलने के लिए गया, तो उस टुकड़े को अपने साथ ले गया। एक बुढ़िया अम्मा चूल्हे में उपले (गोबर से बने हुए) जलाने की कोशिश कर रही थी, पर सीले उपलों ने आग नहीं पकड़ी। चारों तरफ़ धुआं ही धुआं ह...