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Showing posts from April, 2021

दस दिन की मोहलत

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 दस दिन की मोहलत Image by Werner Weisser from Pixabay एक राजा था। उसने 10 जंगली कुत्ते पाल रखे थे, जिनका उपयोग वह लोगों को उनके द्वारा की गई ग़लतियों पर मृत्यु दंड देने के लिए करता था। एक बार ऐसा हुआ कि राजा के एक पुराने विश्वयसनीय मंत्री से कोई ग़लती हो गयी। अतः क्रोधित होकर राजा ने उसे शिकारी कुत्तों के सम्मुख फिकवाने का आदेश दे डाला। सज़ा दिए जाने से पूर्व राजा ने मंत्री से उसकी आखिरी इच्छा पूछी। “राजन्! मैंने आज्ञाकारी सेवक के रूप में आपकी 10 सालों से सेवा की है। मैं सज़ा पाने से पहले आपसे 10 दिनों की मोहलत चाहता हूँ”, मंत्री ने राजा से निवेदन किया। राजा ने उसकी बात मान ली। दस दिन बाद राजा के सैनिक मंत्री को पकड़ कर लाते हैं और राजा का निर्देश पाते ही उसे जंगली कुत्तों के सामने फेंक देते हैं। परंतु यह क्या, कुत्ते मंत्री पर टूट पड़ने की बजाय अपनी पूँछ हिला-हिला कर मंत्री के ऊपर कूदने लगते हैं और प्यार से उसके पैर चाटने लगते हैं। राजा आश्चर्य से यह सब देख रहा था। उसने मन ही मन सोचा कि आखिर इन जंगली कुत्तों को क्या हो गया है ? वे इस तरह क्यों व्यवहार कर रहे ह...

किसान की घड़ी

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 किसान की घड़ी Image by Bessi from Pixabay एक बार एक किसान की घड़ी कहीं खो गई। वैसे तो घड़ी कीमती नहीं थी पर किसान उससे भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ था और किसी भी तरह उसे वापस पाना चाहता था। उसने खुद भी घड़ी खोजने का बहुत प्रयास किया। कभी कमरे में खोजता तो कभी बाड़े में, तो कभी अनाज के ढेर में, पर तामाम कोशिशों के बाद भी घड़ी नहीं मिली। उसने निश्चय किया कि वह इस काम में बच्चों की मदद लेगा और उसने आवाज लगाई - “सुनो बच्चों! तुममें से जो भी मेरी खोई हुई घड़ी खोज देगा, उसे मैं 100 रुपये इनाम में दूंगा।” फिर क्या था ? सभी बच्चे ज़ोर-शोर से इस काम में लग गए। वे हर जगह की ख़ाक छानने लगे। ऊपर-नीचे, बाहर आँगन में, हर जगह, पर घंटो बीत जाने पर भी घड़ी नहीं मिली। अब लगभग सभी बच्चे हार मान चुके थे और किसान को भी यही लगा कि घड़ी नहीं मिलेगी। तभी एक लड़का उसके पास आया और बोला - “काका! मुझे एक मौका और दीजिए। पर इस बार मैं यह काम अकेले ही करना चाहूँगा।” किसान का क्या जा रहा था ? उसे तो घड़ी चाहिए थी। उसने तुरंत ‘हाँ’ कर दी। लड़का एक-एक कर के घर के कमरों में जाने लगा और जब वह किसान...

कर्मों की दौलत

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 कर्मों की दौलत Image by Heike Frohnhoff from Pixabay एक राजा था। जिसने अपने राज्य में क्रूरता से बहुत सी दौलत इकट्ठी करके शाही खजाना बनाया हुआ था और आबादी से बाहर जंगल में एक सुनसान जगह पर बनाए तहखाने में सारे खजाने को खुफिया तौर पर छिपा दिया था। खजाने की सिर्फ दो चाबियां थी। एक चाबी राजा के पास और एक उसके खास मंत्री के पास थी। इन दोनों के अलावा किसी को भी उस खुफिया खजाने का राज मालूम नहीं था। एक रोज़ किसी को बताए बगैर राजा अकेले अपने खजाने को देखने निकला। तहख़ाने का दरवाज़ा खोल कर अंदर दाखिल हो गया। वह अपने खजाने को देख-देख कर खुश हो रहा था और खजाने की चमक से सुकून पा रहा था। उसी वक्त मंत्री भी उस इलाके से निकला और उसने देखा कि खजाने का दरवाज़ा खुला है। वह हैरान हो गया और उसे ख्याल आया कि कहीं कल रात जब मैं खजाना देखने आया था, तब शायद खजाने का दरवाज़ा खुला रह गया होगा। उसने जल्दी-जल्दी खजाने का दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया और वहां से चला गया। उधर खजाने को निहारने के बाद राजा जब संतुष्ट हुआ और दरवाजे के पास आया तो यह क्या ? दरवाज़ा तो बाहर से बंद हो गया था। उसने ज...

शबरी के पैरों की धूल

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 शबरी के पैरों की धूल Image by Hans Braxmeier from Pixabay शबरी एक आदिवासी भील की पुत्री थी। देखने में बहुत साधारण, पर दिल से बहुत कोमल थी। इनके पिता ने इनका विवाह निश्चित किया, लेकिन आदिवासियों की एक प्रथा थी कि किसी भी अच्छे कार्य से पहले निर्दोष जानवरों की बलि दी जाती थी। इसी प्रथा को पूरा करने के लिए इनके पिता शबरी के विवाह के एक दिन पूर्व सौ भेड़-बकरियाँ लेकर आए। तब शबरी ने पिता से पूछा - पिताजी इतनी सारी भेड़-बकरियाँ क्यों लाए हो ? पिता ने कहा - शबरी! यह एक प्रथा है जिसके अनुसार कल प्रातः तुम्हारी विवाह की विधि शुरू करने से पूर्व इन सभी भेड़-बकरियों की बलि दी जाएगी। यह कहकर उसके पिता वहाँ से चले गए। प्रथा के बारे में सुनकर शबरी को बहुत दुःख हुआ और वह पूरी रात उन भेड़-बकरियों के पास बैठी रही और उनसे बातें करती रही। उसके मन में एक ही विचार था कि कैसे वह इन निर्दोष जानवरों को बचा पाए। तभी एकाएक शबरी के मन में ख्याल आया और वह सुबह होने से पूर्व ही अपने घर से भाग कर जंगल में चली गई ताकि उन निर्दोष जानवरों को बचा सके। शबरी भली-भांति जानती थी कि अगर एक बार वह इस तरह...

मधुर भाषा

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मधुर भाषा Image by István Mihály from Pixabay एक बार एक राजा अपने सहचरों के साथ शिकार खेलने जंगल में गया था। वहाँ शिकार के चक्कर में एक दूसरे से बिछड़ गए और एक दूसरे को खोजते हुए राजा एक नेत्रहीन संत की कुटिया में पहुँच कर अपने बिछड़े हुए साथियों के बारे में पूछा। नेत्रहीन संत ने कहा - महाराज! इस रास्ते पर सबसे पहले आपके सिपाही गए हैं। उनके बाद आपके मंत्री गए। अब आप स्वयं पधारे हैं। इसी रास्ते से आप आगे जाएं तो मुलाकात हो जाएगी। संत के बताए हुए रास्ते पर राजा ने घोड़ा दौड़ाया और जल्दी ही अपने सहयोगियों से जा मिला और नेत्रहीन संत के कथनानुसार ही एक दूसरे से आगे-पीछे पहुंचे थे। यह बात राजा के दिमाग में घर कर गई कि नेत्रहीन संत को कैसे पता चला, कौन किस ओहदे  वाला व्यक्ति वहाँ से जा रहा है। लौटते समय राजा ने अपने अनुचरों को साथ लेकर संत की कुटिया में पहुंच कर संत से प्रश्न किया कि आप नेत्रविहीन होते हुए कैसे जान गए कि कौन जा रहा है और कौन आ रहा है ? राजा की बात सुन कर नेत्रहीन संत ने कहा - महाराज! आदमी की हैसियत का ज्ञान नेत्रों से नहीं, उसकी बातचीत से होता है। सब...

इन्सान की सोच ही जीवन का आधार है

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 इन्सान की सोच ही जीवन का आधार है Image by Ulrike Leone from Pixabay तीन राहगीर रास्ते पर एक पेड़ के नीचे मिले। तीनों लम्बी यात्रा पर निकले थे। कुछ देर सुस्ताने के लिए पेड़ की घनी छाया में बैठ गए। तीनों के पास दो झोले थे। एक झोला आगे की तरफ और दूसरा पीछे की तरफ लटका हुआ था। तीनों एक साथ बैठे और यहाँ-वहाँ की बाते करने लगे, जैसे - कौन कहाँ से आया ? कहाँ जाना है ? कितनी दूरी है ? घर में कौन-कौन हैं ? ऐसे कई सवाल जो अजनबी एक दूसरे के बारे में जानना चाहते हैं। तीनों यात्री कद काठी में समान थे पर सबके चेहरे के भाव अलग-अलग थे। उनमें से एक बहुत थका, निराश लग रहा था, जैसे यात्रा ने उसे बोझिल बना दिया हो। दूसरा थका हुआ था पर बोझिल नहीं लग रहा था और तीसरा अत्यन्त आनंद में था। दूर बैठा एक महात्मा इन्हें देख मुस्कुरा रहा था। तभी तीनों की नज़र महात्मा पर पड़ी और उनके पास जाकर तीनों ने सवाल किया कि वे मुस्कुरा क्यों रहे हैं ? इस सवाल के जवाब में महात्मा ने तीनों से सवाल किया कि तुम्हारे पास दो-दो झोले हैं। इन में से एक में तुम्हें लोगों की अच्छाई को रखना है और एक में बुराई क...

आँख वाला अंधा

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 आँख वाला अंधा Image by Schwoaze from Pixabay एक जुलाहे की बेटी गौतम बुद्ध के दर्शन को आई। अत्यंत आनंद और अहोभाव से उसने बुद्ध के चरणों में सिर रखा। बुद्ध ने उससे पूछा - ‘बेटी! कहां से आती हो ? ’ ‘भंते! नहीं जानती हूँ,’ वह बोली। उसकी अभी ज्यादा उम्र भी नहीं थी। अठारह वर्ष की थी वह केवल। बुद्ध ने कहा - ‘कहाँ जाओगी बेटी ? ’ ‘भंते!’ उसने कहा, ‘नहीं जानती हूँ।’ ‘क्या नहीं जानती हो ? ’ बुद्ध ने पूछा। वह बोली - ‘भंते! जानती हूँ।’ ‘जानती हो!’ बुद्ध ने कहा। वह बोली - ‘कहाँ भगवन्! ज़रा भी नहीं जानती हूँ।’ ऐसी बातचीत सुनकर अन्य उपस्थित लोग बहुत नाराज़ हुए। गाँव के लोग जुलाहे की बेटी को भली-भांति जानते हैं कि यह क्या बकवास कर रही है! यह कोई ढंग है भगवान से बात करने का ? यह कोई शिष्टाचार है ? गाँव के लोगों ने कहा कि सुन पागल! यह तू किस तरह की बात कर रही है ? होश में है या नहीं। किससे बात कर रही है ? उसे डांटा-डपटा भी, लेकिन भगवान ने कहा - ‘पहले उसकी सुनो भी और गुनो भी कि वह क्या कहती है ? ’ बुद्ध हंसे और उन्होंने कहा - ‘बेटी! इन सबको समझाओ कि तूने क्या कहा।’ तो उस युवती ने ...