आँख वाला अंधा
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आँख वाला अंधा
Image by Schwoaze from Pixabay
एक जुलाहे की बेटी गौतम बुद्ध के दर्शन को आई। अत्यंत आनंद और अहोभाव से उसने बुद्ध के चरणों में सिर रखा।
बुद्ध ने उससे पूछा - ‘बेटी! कहां से आती हो?’
‘भंते! नहीं जानती हूँ,’ वह बोली।
उसकी अभी ज्यादा उम्र भी नहीं थी। अठारह वर्ष की थी वह केवल।
बुद्ध ने कहा - ‘कहाँ जाओगी बेटी?’
‘भंते!’ उसने कहा, ‘नहीं जानती हूँ।’
‘क्या नहीं जानती हो?’ बुद्ध ने पूछा।
वह बोली - ‘भंते! जानती हूँ।’
‘जानती हो!’ बुद्ध ने कहा।
वह बोली - ‘कहाँ भगवन्! ज़रा भी नहीं जानती हूँ।’
ऐसी बातचीत सुनकर अन्य उपस्थित लोग बहुत नाराज़ हुए।
गाँव के लोग जुलाहे की बेटी को भली-भांति जानते हैं कि यह क्या बकवास कर रही है! यह कोई ढंग है भगवान से बात करने का? यह कोई शिष्टाचार है?
गाँव के लोगों ने कहा कि सुन पागल! यह तू किस तरह की बात कर रही है? होश में है या नहीं। किससे बात कर रही है? उसे डांटा-डपटा भी, लेकिन भगवान ने कहा - ‘पहले उसकी सुनो भी और गुनो भी कि वह क्या कहती है?’ बुद्ध हंसे और उन्होंने कहा - ‘बेटी! इन सबको समझाओ कि तूने क्या कहा।’
तो उस युवती ने कहा - ‘जुलाहे के घर से आ रही हूं। भगवन्! यह तो आप जानते ही हैं और ये गांव के लोग भी जानते हैं। लेकिन कहां से आ रही हूँ, यह जन्म कहाँ से हुआ, मुझे पता नहीं। वापस जुलाहे के घर जाऊँगी, यह मैं भी जानती हूँ, आप भी जानते हैं, ये गांव के लोग भी जानते हैं। यह कोई नई बात है क्या! इसलिए आपसे तभी मैंने कहा कि जानती हूँ। लेकिन इस जन्म के बाद जब मृत्यु होगी तो कहाँ जाऊँगी, मुझे कुछ पता नहीं है।
जब मैंने आपकी दृष्टि से सोचा कि आप पूछ रहे हैं, कहाँ से आ रही है, जुलाहे के घर से? तो मैंने कहा - जानती हूँ। जब आपने कहा - कहां जा रही है? मैंने सोचा कि पूछते हैं, कहाँ वापस जाएगी जुलाहे के घर? तो मैंने कहा - जानती हूं। लेकिन फिर जब मैंने आपकी आंखों में देखा तो मैंने कहा - नहीं! नहीं। बुद्ध और ऐसा प्रश्न क्या खाक पूछेंगे? वह पूछ रहे हैं कि कहाँ से आती है, किस लोक से? कहां तेरा जीवन-स्रोत है? तो मैंने कहा - नहीं भगवन्! नहीं जानती हूँ। फिर मैंने सोचा कि जब आप पूछते हैं, कहाँ जाती है तो मैंने सोचा - मरने के बाद कहाँ जाऊंगी? बुद्ध तो ऐसे ही प्रश्न पूछेंगे न! तो मैंने कहा - नहीं जानती हूँ।
इसलिए तब बुद्ध ने यह गाथा कही - ‘यह सारा लोक अंधा है। यहाँ सत्य देखने वाला विरला ही है। जाल से मुक्त हुए पक्षी की भांति विरला ही स्वर्ग को जाता है।’
उस लड़की को उन्होंने कहा - तेरे पास आँख है। तू देख पाती है। ये गाँव के लोग अंधे हैं। आँख वाला जब बोले तो अंधों की समझ में नहीं आता, क्योंकि आँख वाला ऐसी बातें करेगा जो अंधे मान ही नहीं सकते कि ऐसा हो सकता हैं। आँख वाला कहेगा - प्रकाश। आंख वाला कहेगा - रंग। आंख वाला कहेगा - कैसा प्यारा इंद्रधनुष; लेकिन अंधा उन दृश्यों को कैसे समझेगा?
अतः स्वयं के बारे में जानो कि तुम कहाँ से आए हो और तुम्हें कहाँ जाना है। यह जन्म किसलिए मिला है? क्या केवल खाने और सोने के लिए? नहीं! वास्तविकता को पहचानो और अपना कल्याण करो। समय रहते समय की पहचान कर लो तो यह मानव-जीवन सार्थक हो जाएगा।
आँख वाले होकर अंधे न बनो।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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