इन्सान की सोच ही जीवन का आधार है
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इन्सान की सोच ही जीवन का आधार है
Image by Ulrike Leone from Pixabay
तीन राहगीर रास्ते पर एक पेड़ के नीचे मिले। तीनों लम्बी यात्रा पर निकले थे। कुछ देर सुस्ताने के लिए पेड़ की घनी छाया में बैठ गए। तीनों के पास दो झोले थे। एक झोला आगे की तरफ और दूसरा पीछे की तरफ लटका हुआ था।
तीनों एक साथ बैठे और यहाँ-वहाँ की बाते करने लगे, जैसे - कौन कहाँ से आया? कहाँ जाना है? कितनी दूरी है? घर में कौन-कौन हैं? ऐसे कई सवाल जो अजनबी एक दूसरे के बारे में जानना चाहते हैं।
तीनों यात्री कद काठी में समान थे पर सबके चेहरे के भाव अलग-अलग थे। उनमें से एक बहुत थका, निराश लग रहा था, जैसे यात्रा ने उसे बोझिल बना दिया हो। दूसरा थका हुआ था पर बोझिल नहीं लग रहा था और तीसरा अत्यन्त आनंद में था। दूर बैठा एक महात्मा इन्हें देख मुस्कुरा रहा था।
तभी तीनों की नज़र महात्मा पर पड़ी और उनके पास जाकर तीनों ने सवाल किया कि वे मुस्कुरा क्यों रहे हैं? इस सवाल के जवाब में महात्मा ने तीनों से सवाल किया कि तुम्हारे पास दो-दो झोले हैं। इन में से एक में तुम्हें लोगों की अच्छाई को रखना है और एक में बुराई को। बताओ क्या करोगे?
एक ने कहा - मेरे आगे वाले झोले में मैं बुराई रखूँगा ताकि जीवन भर मैं उन्हें देखता रहूँ और उनसे दूर रहूँ और पीछे अच्छाई रखूँगा ताकि मुझमें अभिमान न आए। दूसरे ने कहा - मैं आगे अच्छाई रखूँगा ताकि उन जैसा बनूँ और पीछे बुराई ताकि उनसे अच्छा बनूँ। तीसरे ने कहा - मैं आगे अच्छाई रखूँगा ताकि उनके साथ संतुष्ट रहूँ और पीछे बुराई रखूँगा और पीछे के थैले में एक छेद कर दूंगा जिससे वह बुराई का बोझ कम होता रहे और अच्छाई ही मेरे साथ रहे अर्थात वह बुराई को भुला देना चाहता था।
यह सुनकर महात्मा ने कहा - पहला जो सफ़र से थक कर निराश दिख रहा है जिसने कहा कि वह बुराई सामने रखेगा, वह इस यात्रा की भांति जीवन से थक गया है क्योंकि उसकी सोच नकारात्मक है। उसके लिए जीवन कठिन है।
दूसरा जो थका है पर निराश नहीं, जिसने कहा अच्छाई सामने रखूँगा पर बुराई से बेहतर बनने की कोशिश में वह थक जाता है क्योंकि वह बेवजह असम्भ्व कार्य की होड़ में है।
तीसरा जिसने कहा वह अच्छाई आगे रखता है और बुराई को पीछे रख उसे भुला देना चाहता है, वह संतुष्ट है और जीवन का आनंद ले रहा है। इसी तरह वह जीवन यात्रा में खुश है।
जीवन में जब तक व्यक्ति दूसरों में बुराई को ढूंढेगा, वह खुश नहीं रह सकता। जीवन भी एक यात्रा है जिसमें सकारात्मक सोच जीवन को ख़ुशहाल बनाती है।
मित्रों! जीवन में क्रोध सबसे बड़ा बोझ है और क्षमा सबसे सुन्दर और सरल रास्ता है जो जीवन को भारहीन बनाता है..!!
बचपन भविष्य की नींव है। इसे बोझिल नहीं भारहीन बनाइए।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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