सेवा धर्म ही असली भक्ति
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सेवा धर्म ही असली भक्ति
Image by S. Hermann & F. Richter from Pixabay
एक शहर में अमीर सेठ रहता था। वह बहुत फैक्ट्रियों का मालिक था।
एक शाम अचानक उसे बहुत बेचैनी होने लगी। डॉक्टर को बुलाया गया, सारी जाँचें करवा ली। परन्तु कुछ भी नहीं निकला। उसकी बेचैनी बढ़ती गयी।
उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है। रात हुई। नींद की गोलियां भी खा ली, पर न नींद आने को तैयार और न ही बैचेनी कम होने का नाम ले।
वह रात को उठकर तीन बजे घर के बगीचे में घूमने लगा। घूमते-घूमते उसे लगा कि बाहर थोडा-सा सुकून है, तो वह बाहर सड़क पर पैदल निकल पड़ा।
चलते-चलते हज़ारों विचार मन में चल रहे थे। अब वह घर से बहुत दूर निकल आया था और थकान की वजह से एक चबूतरे पर बैठ गया।
उसे थोड़ी शान्ति मिली तो वह आराम से बैठ गया।
इतने में एक कुत्ता आया और उसकी चप्पल उठाकर ले गया। सेठ ने देखा तो वह दूसरी चप्पल उठाकर कुत्ते के पीछे भागा।
कुत्ता पास ही बनी झुग्गी-झोपड़ियों में घुस गया। सेठ भी उसके पीछे था। सेठ को करीब आता देखकर कुत्ते ने चप्पल वहीं छोड दी और चला गया।
सेठ ने राहत की सांस ली और अपनी चप्पल पहनने लगा। इतने में उसे किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी।
वह और करीब गया तो एक झोपड़ी में से आवाज़ आ रही थी।
उसने झोपड़ी के फटे हुए बोरे में झाँक कर देखा तो वहाँ एक औरत फटेहाल मैली-सी चादर पर दीवार से सटकर रो रही है और ये बोल रही है कि हे भगवान्! मेरी मदद कर और रोती जा रही है।
सेठ के मन में आया कि यहाँ से चले जाओ। कहीं कोई गलत न सोच ले।
वह थोड़ा आगे बढ़ा तो उसके दिल में ख़्याल आया कि आखिर वह औरत क्यों रो रही है? उसको तकलीफ़ क्या है?
और उसने अपने दिल की सुनी और वहाँ जाकर दरवाज़ा खटखटाया।
उस औरत ने दरवाज़ा खोला और सेठ को देखकर घबरा गयी। सेठ ने हाथ जोड़कर कहा - तुम घबराओ मत। मुझे तो बस इतना जानना है कि तुम रो क्यों रही हो?
औरत की आखों से आँसू टपकने लगे और उसने पास ही गुदड़ी में लिपटी हुई 7-8 साल की बच्ची की ओर इशारा किया और रोते-रोते कहने लगी कि मेरी बच्ची बहुत बीमार है। उसके इलाज में बहुत खर्चा आएगा। मैं तो घरों में जाकर झाड़ू-पोछा करके जैसे-तैसे हमारा पेट पालती हूँ। मैं कैसे इलाज कराऊं इसका?
सेठ ने कहा - तो किसी से माँग लो।
इस पर औरत बोली - मैंने सबसे माँग कर देख लिया। खर्चा बहुत है, कोई भी देने को तैयार नहीं।
सेठ ने कहा - तो ऐसे रात को रोने से मिल जायेगा क्या?
औरत ने कहा - कल एक संत यहाँ से गुजर रहे थे तो मैने उनको मेरी समस्या बताई तो उन्होंने कहा - बेटा ... तुम सुबह 4 बजे उठकर अपने ईश्वर से माँगो। बोरी बिछाकर बैठ जाओ और रो-गिड़गिड़ा कर उससे मदद माँगो। वह सबकी सुनता है तो तुम्हारी भी सुनेगा।
मेरे पास इसके अलावा कोई चारा नहीं था। इसलिए मैं उससे माँग रही थी और वह बहुत ज़ोर से रोने लगी।
ये सब सुनकर सेठ का दिल पिघल गया और उसने तुरन्त फोन लगाकर एम्बुलेंस बुलवायी और उस लड़की को अस्पताल में एडमिट करवा दिया।
डॉक्टर ने डेढ़ लाख का खर्चा बताया तो सेठ ने उसकी जवाबदारी अपने ऊपर ले ली और उसका इलाज कराया।
उस औरत को अपने यहाँ नौकरी देकर अपने बंगले के सर्वेन्ट क्वाटर में जगह दी और उस लड़की की पढ़ाई का जिम्मा भी ले लिया।
सेठ कर्म प्रधान तो था पर नास्तिक था। अब उसके मन में सैंकड़ों सवाल चल रहे थे, क्योंकि उसके शरीर की बेचैनी तो उसी वक्त ख़त्म हो गयी थी जब उसने एम्बुलेंस को बुलवाया था।
वह यह सोच रहा था कि आखिर कौन सी ताकत है जो मुझे वहाँ तक खींच ले गयी? क्या यही ईश्वर है और यही उसकी सेवा है? और यदि ये ईश्वर है तो सारा संसार आपस में धर्म, जात-पात के लिये क्यों लड़ रहा है क्योंकि न मैने उस औरत की जात पूछी और न ही ईश्वर ने जात-पात देखी।
बस ईश्वर ने तो उसका दर्द देखा और मुझे आधी रात को इतना घुमाकर उस तक पहुंचा दिया।
अब सेठ समझ चुका था कि मन की शांति के लिए कर्म के साथ सेवा भी कितनी ज़रूरी है क्योंकि इतना सुकून उसे जीवन में कभी भी नहीं मिला था।
तो दोस्तों! मानव और प्राणी मात्र की सेवा का धर्म ही असली भक्ति है।
यदि ईश्वर की कृपा पाना चाहते हो तो इंसानियत अपना लो और समय-समय पर उन सबकी मदद करो जो लाचार या बेबस है, क्योंकि ईश्वर इन्हीं भोले और लाचार लोगों के आस-पास रहता है।
सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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