सच्चा वैरागी
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सच्चा वैरागी
Image by Susanne Jutzeler, Schweiz 🇨🇭 💕Thanks for Likes from Pixabay
एक साधु को एक नाविक रोज़ इस पार से उस पार ले जाता था, बदले में कुछ नहीं लेता था। वैसे भी साधु के पास पहले पैसा कहाँ होता था।
नाविक सरल था। पढ़ा-लिखा तो नहीं पर समझ की कमी नहीं थी। साधु रास्ते में ज्ञान की बात कहते, कभी भगवान की सर्वव्यापकता बताते और कभी अर्थसहित श्रीमदभगवद्गीता के श्लोक सुनाते।
नाविक मछुआरा बड़े ध्यान से सुनता और बाबा की बात हृदय में बैठा लेता।
एक दिन उस पार उतरने पर साधु नाविक को अपनी कुटिया में ले गये और बोले - वत्स! मैं पहले व्यापारी था। धन तो कमाया था, पर अपने परिवार को आपदा से नहीं बचा पाया था। अब यह धन मेरे किसी काम का नहीं। तुम ले लो। तुम्हारा जीवन संवर जायेगा और तेरे परिवार का भी भला हो जाएगा।
नाविक बोला - नहीं, बाबाजी! मैं ये धन नहीं ले सकता। मुफ्त का धन घर में जाते ही आचरण बिगाड़ देगा। कोई मेहनत नहीं करेगा, आलसी जीवन लोभ, लालच और पाप बढ़ायेगा। आप ही ने मुझे ईश्वर के बारे में बताया। मुझे तो आजकल लहरों में भी कई बार वो नज़र आता है! जब मै उसकी नज़र में ही हूँ तो फिर अविश्वास क्यों करूँ? मैं अपना काम करूँ और शेष उसी पर छोड़ दूँ!
प्रसंग तो समाप्त हो गया पर एक सवाल छोड़ गया कि इन दोनों पात्रों में साधु कौन था?
एक वह था, जिसने दुःख आया तो भगवा पहना, संन्यास लिया, धर्म ग्रंथों का अध्ययन किया, याद किया और समझाने लायक स्थिति में भी आ गया, फिर भी धन की ममता नहीं छोड़ पाया और सुपात्र को देने की तलाश करता रहा।
और दूसरी तरफ वो निर्धन नाविक! सुबह खा लिया तो शाम का पता नहीं, फिर भी पराये धन के प्रति कोई ललक नहीं। संसार में लिप्त रहकर भी निर्लिप्त रहना आ गया। भगवा नहीं पहना, संन्यास नहीं लिया, पर उस का ईश्वरीय सत्ता में विश्वास जम गया।
श्रीमदभगवद्गीता के श्लोकों को न केवल समझा बल्कि उन्हें व्यावहारिक जीवन में कैसे उतारना है, ये सीख गया और पल भर में धन के मोह को ठुकरा गया!
वास्तव में वैरागी कौन? विचार कीजिए..!!
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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