जाकी रही भावना जैसी
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जाकी रही भावना जैसी
Image by Willi Heidelbach from Pixabay
गंगा किनारे एक संत का आश्रम था। आश्रम में रहकर तीन शिष्य शिक्षा प्राप्त करते थे। जैसा कि हर गुरु करते हैं, वह संत जी समय-समय पर अपने शिष्यों की परीक्षा लेते रहते थे।
एक दिन उन्होंने शिष्यों को बुलाया और मंदिर बनाने का आदेश दिया।
तीनों शिष्य गुरु की आज्ञा से मंदिर बनाने लगे। मंदिर पूरा होने में काफी दिन लग गए।
जब मंदिर पूरी तरह बनकर तैयार हो गया, तब संत जी ने तीनों को अपने पास बुलाया। उन्होंने पहले शिष्य से पूछा - जब मंदिर बन रहा था, तब तुम्हें कैसा अनुभव हो रहा था?
शिष्य ने उत्तर दिया - गुरुदेव! मुझे पूरे दिन काम करना पड़ता था। लगता था कि मुझ में और एक गधे में कोई अंतर ही नहीं रह गया है। मंदिर के निर्माण का कार्य करते-करते मैं तो परेशान हो गया था।
संत जी ने दूसरे शिष्य से भी यही प्रश्न पूछा, तो वह बोला - गुरुदेव! मैं भी सारा दिन कार्य करता था। मंदिर के निर्माण कार्य के दौरान मेरे मन में तो यही विचार आ रहा था कि जल्द-से-जल्द मंदिर बन जाए, जिससे ईश्वर प्रसन्न हो जाएं और हमारा कुछ कल्याण हो जाए।
संत ने तीसरे शिष्य को बुला कर भी पूछा तो उसने भाव भरे हृदय से उत्तर दिया - गुरुदेव! मैं तो प्रभु की सेवा कर रहा था। मंदिर के निर्माण कार्य के दौरान मैं प्रतिदिन प्रभु का धन्यवाद करता था क्योंकि उन्होंने मेरी मेहनत का कुछ अंश स्वीकार किया। मैं स्वयं को बहुत भाग्यशाली मानता हूँ।
संत ने उसे गले लगा लिया। फिर अन्य शिष्यों को समझाते हुए कहा - तुम तीनों के कार्य करने के ढंग में अंतर था। मंदिर तो तुम तीनों ही बना रहे थे। एक गधे की तरह कार्य कर रहा था, दूसरा स्वयं के कल्याण के लिए और तीसरा समर्पित भाव से कार्य कर रहा था।
हम मंदिरों में जाकर भगवान को भजते हैं। हाथ जोड़े भजन गा रहे होते हैं, तभी कोई फोन आ जाए तो शुरू कर देते हैं वही दुनिया के प्रपंच। फिर से लग गए भजन में। आपका बस शरीर था वहाँ, हृदय नहीं। भगवान तो भैया मन में बसते हैं, तन में कहां?
भावों का यही अंतर तुम्हारे कार्य की गुणवत्ता में भी देखा जा सकता है। क्या किया जा रहा है, वह तो महत्वपूर्ण है ही लेकिन उससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है कार्य के पीछे का भाव। जैसी भावना रहती है, फल उसके अनुरूप ही आता है।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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धन्यवाद।
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ReplyDeleteExcellent, keep going ahead
ReplyDeleteJesi soch se kam karte hain vesa Hi hota hai bhagwan ka Nam le kar kam karne se kam badya hota hai dil and Man dono Sthir te khush ho jate hain ji
ReplyDeleteVery good 👍👍👍
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