सच्चे वैराग्य की महिमा
👼👼💧💧👼💧💧👼👼 सच्चे वैराग्य की महिमा Image by hartono subagio from Pixabay दो भाई भर्तृहरि और शुभचन्द्र बहुत दिनों के बाद मिले। ‘भैया! यह तुमने क्या हालत बना रखी है? बहुत दिनों से खोज कर रहा था तुम्हारी। जब तुम्हारी ऐसी दशा का पता चला तो अपने शिष्यों के साथ तुम्हारे लिए आधी तुम्बी रस भेजा था, परंतु तुमने उसे यूं ही लुढ़का दिया। आप इसकी महिमा नहीं जानते। मुझे बारह वर्ष तक पंचाग्नि में तप तपते हुए हो गए, तब जाकर मेरे गुरु ने यह दिया था मुझे। मेरी बारह वर्ष की तपस्या को तुमने यूं ही मिट्टी में मिला दिया। फिर भी मुझसे रहा नहीं गया और यह आधा बचा हुआ रस लेकर आया हूं।’ निर्ग्रन्थ तपोनिधि आचार्य शुभचन्द्र ने छोटे भाई भर्तृहरि की बात सुनी। आचार्य शुभचन्द्र ने पूछा - ‘इस रस से क्या होता है?’ गेरुए वस्त्र पहने, जटा बढ़ाए, मृगचर्म लपेटे साधु भर्तृहरि ने कहा - ‘इस रस से सोना बनाया जाता है, भैया।’ ‘सोना!’ - शुभचन्द्र ने दूसरी तुम्बी ली और पर्वत पर पटक दी। सारा रस बह गया। शुभचन्द्र ने पूछा - ‘भर्तृहरि! कहां बना सोना?’ भर्तृहरि दुःखी मन से बोला - ‘भैया! तांबे का बनता है सोना, पत्थर का नहीं।’ शुभ...