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Showing posts from March, 2025

सच्चे वैराग्य की महिमा

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 सच्चे वैराग्य की महिमा Image by hartono subagio from Pixabay दो भाई भर्तृहरि और शुभचन्द्र बहुत दिनों के बाद मिले। ‘भैया! यह तुमने क्या हालत बना रखी है? बहुत दिनों से खोज कर रहा था तुम्हारी। जब तुम्हारी ऐसी दशा का पता चला तो अपने शिष्यों के साथ तुम्हारे लिए आधी तुम्बी रस भेजा था, परंतु तुमने उसे यूं ही लुढ़का दिया। आप इसकी महिमा नहीं जानते। मुझे बारह वर्ष तक पंचाग्नि में तप तपते हुए हो गए, तब जाकर मेरे गुरु ने यह दिया था मुझे। मेरी बारह वर्ष की तपस्या को तुमने यूं ही मिट्टी में मिला दिया। फिर भी मुझसे रहा नहीं गया और यह आधा बचा हुआ रस लेकर आया हूं।’ निर्ग्रन्थ तपोनिधि आचार्य शुभचन्द्र ने छोटे भाई भर्तृहरि की बात सुनी। आचार्य शुभचन्द्र ने पूछा - ‘इस रस से क्या होता है?’ गेरुए वस्त्र पहने, जटा बढ़ाए, मृगचर्म लपेटे साधु भर्तृहरि ने कहा - ‘इस रस से सोना बनाया जाता है, भैया।’ ‘सोना!’ - शुभचन्द्र ने दूसरी तुम्बी ली और पर्वत पर पटक दी। सारा रस बह गया। शुभचन्द्र ने पूछा - ‘भर्तृहरि! कहां बना सोना?’ भर्तृहरि दुःखी मन से बोला - ‘भैया! तांबे का बनता है सोना, पत्थर का नहीं।’ शुभ...

दृढ़ संकल्प का प्रभाव - प्रेरणात्मक

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 दृढ़ संकल्प का प्रभाव - प्रेरणात्मक Image by Vũ Đỗ from Pixabay न जाने क्यों, वह भगवान के नाममात्र से ही भड़क उठता था। यहाँ तक कि किसी आस्तिक से बात करना भी वह गुनाह समझता था। एक बार उसके गाँव में एक बड़े महात्मा प्रवचन देने के लिये आए। पूरा गाँव उनका प्रवचन सुनने के लिए उमड़ पड़ा। कई दिनों तक महात्मा जी का प्रवचन चलता रहा। मगर उसने उधर जाना तक उचित न समझा। एक दिन वह संध्या के समय अपने खेत से लौट रहा था। तभी प्रवचन दे रहे महात्मा जी का स्वर उसके कानों से टकराया, “अगर तुम जीवन में सफल होना चाहते हो, तो मन में कुछ न कुछ दृढ़ संकल्प कर लो और पूर्ण निष्ठा से उसे पूरा करने में लगे रहो। एक न एक दिन तुम्हें उसका सुफल जरूर मिलेगा।” न चाहते हुए भी आखिर यह बात उसके कानों से टकरा ही गयी। उसने इस बात को भूल जाना चाहा, लेकिन जब रात में सोया तो रह-रहकर महात्मा जी के कहे शब्द उसके दिमाग में गूँजने लगे। लाख कोशिश करके भी वह उनसे अपना पीछा नहीं छुड़ा पाया। आखिर थक-हारकर उसने इस कथन की सत्यता को परखने का निश्चय किया, लेकिन वह क्या दृढ़ संकल्प करे? उसने ऐसी बात सोचनी चाही, जिससे कभी भी कोई...

उपदेश

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 उपदेश एक बार एक स्वामी जी भिक्षा मांगते हुए एक घर के सामने खड़े हुए और उन्होंने आवाज लगायी - ‘भिक्षा दे दे, माते!’ घर से महिला बाहर आयी। उसने उनकी झोली में भिक्षा डाली और कहा, “महात्मा जी! कोई उपदेश दीजिए।” स्वामी जी बोले, “आज नहीं, कल दूँगा। कल खीर बना कर देना।” दूसरे दिन स्वामी जी ने पुनः उस घर के सामने आवाज दी - ‘भिक्षा दे दे, माते!’ उस घर की स्त्री ने उस दिन खीर बनायी, जिसमें बादाम-पिस्ते भी डाले थे। वह खीर का कटोरा लेकर बाहर आयी। स्वामी जी ने अपना कमंडल आगे कर दिया। वह स्त्री जब खीर डालने लगी, तो उसने देखा कि कमंडल में गोबर और कूड़ा भरा पड़ा है। उसके हाथ ठिठक गए। वह बोली, “महाराज! यह कमंडल तो गन्दा है।” स्वामी जी बोले, “हाँ, गन्दा तो है, किन्तु खीर इसमें डाल दो।” स्त्री बोली, “नहीं, महाराज! तब तो खीर ख़राब हो जायेगी। दीजिये यह कमंडल, मैं इसे शुद्ध कर लाती हूँ।” स्वामी जी बोले, ‘मतलब जब यह कमंडल साफ़ हो जायेगा, तभी खीर डालोगी न?” स्त्री ने कहा, “जी, महाराज!” स्वामी जी बोले, “मेरा भी यही उपदेश है। मन में जब तक चिन्ताओं का कूड़ा-कचरा और बुरे संस्कारों का गोबर भरा है, तब...

संस्कार

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 संस्कार Image by hartono subagio from Pixabay एक संत ने एक विश्वविद्यालय का आरंभ किया, इस विद्यालय का प्रमुख उद्देश्य था ऐसे संस्कारी युवक-युवतियों का निर्माण करना था, जो समाज के विकास में सहभागी बन सकें। एक दिन उन्होंने अपने विद्यालय में एक वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया, जिसका विषय था - “जीवों पर दया एवं प्राणीमात्र की सेवा।” निर्धारित तिथि को तयशुदा वक्त पर विद्यालय के कॉन्फ्रेंस हॉल में प्रतियोगिता आरंभ हुई। किसी छात्र ने सेवा के लिए संसाधनों की महत्ता पर बल देते हुए कहा कि हम दूसरों की तभी सेवा कर सकते हैं, जब हमारे पास उसके लिए पर्याप्त संसाधन हों। वहीं कुछ छात्रों की यह भी राय थी कि सेवा के लिए संसाधन नहीं, भावना का होना जरूरी है। इस तरह तमाम प्रतिभागियों ने सेवा के विषय में शानदार भाषण दिए। आखिर में जब पुरस्कार देने का समय आया तो संत ने एक ऐसे विद्यार्थी को चुना, जो मंच पर बोलने के लिए ही नहीं आया था। यह देखकर अन्य विद्यार्थियों और कुछ शैक्षिक सदस्यों में रोष के स्वर उठने लगे। संत सबको शांत कराते हुए बोले - ‘प्यारे मित्रों व विद्यार्थियों! आप सबको शिक...

पूर्वजन्म

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 पूर्वजन्म Image by manseok Kim from Pixabay कंस को मारने के बाद भगवान श्री कृष्ण कारागृह में गए और वहाँ से माता देवकी तथा पिता वसुदेव को छुड़ाया। तब माता देवकी ने श्री कृष्ण से पूछा, “बेटा! तुम भगवान हो, तुम्हारे पास असीम शक्ति है, फिर तुमने चौदह साल तक कंस को मारने और हमें यहाँ से छुड़ाने की प्रतीक्षा क्यों की?” भगवान श्री कृष्ण ने कहा, “क्षमा करें आदरणीय माता जी! क्या आपने मुझे पिछले जन्म में चौदह साल के लिए वनवास में नहीं भेजा था।” माता देवकी आश्चर्यचकित हो गई और फिर पूछा, “बेटा कृष्ण! यह कैसे संभव है? तुम ऐसा क्यों कह रहे हो?” भगवान श्री कृष्ण ने कहा, “माता! आपको अपने पूर्व जन्म के बारे में कुछ भी स्मरण नहीं है, परंतु तब आप कैकेई थी और आपके पति राजा दशरथ थे।” माता देवकी ने और ज्यादा आश्चर्यचकित होकर पूछा, “फिर महारानी कौशल्या कौन हैं?” भगवान श्री कृष्ण ने कहा, “वही तो इस जन्म में माता यशोदा हैं। चौदह साल तक जिनको पिछले जीवन में माँ के जिस प्यार से वंचित रहना पड़ा था, वह उन्हें इस जन्म में मिला है।” अर्थात् प्रत्येक प्राणी को इस मृत्युलोक में अपने कर्मों का भोग भो...

सत्यवादी जग में सुखी

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 सत्यवादी जग में सुखी Image by hartono subagio from Pixabay एक बार की बात है कि नारद, पर्वत और वसु तीनों बचपन में गुरु क्षीर कदम्ब से पढ़ा करते थे। उन तीनों के सामने गुरु जी ने ‘अजैर्यष्टव्यमिति’ का अर्थ बताते हुए ‘अज’ शब्द का अर्थ बताया था कि ‘अज’ का अर्थ धान भी होता है और बकरा भी। तुम्हें यहाँ ध्यान में रखना है कि 3 वर्ष पुराने ‘धान’ से ही हवन करना है। एक बार नारद और पर्वत में ‘अज’ के अर्थ को लेकर बहस हो गई - ‘पर्वत! यह क्या गजब कर रहे हो? ‘अजैर्यष्टव्यमिति’ का अर्थ तुम यह कर रहे हो कि बकरों का यज्ञ में होम कराना! अरे दुष्ट! गुरु जी ने इस शब्द का अर्थ बतलाया था कि तीन वर्ष पुराने धान से होम करना क्योंकि उनमें पुनः उगने की शक्ति नहीं रहती।’ नारद की बात सुनकर गुरु-पुत्र पर्वत, जो पिता की मृत्यु के बाद स्वयं ही गुरु बन बैठा था, नारद से झगड़ने लगा और किसी भी तरह अपना पक्ष छोड़ने को तैयार नहीं हुआ। वाद-विवाद ने जब तूल पकड़ ली, तो दोनों में एक समझौता हुआ कि न्याय हेतु राजा वसु के पास जाया जाए। वे जो निर्णय देंगे, वही दोनों को मान्य होगा। पर्वत अपनी माँ गुरुमाता के पास गया ...

विकारों के पांच गधे

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 विकारों के पांच गधे Image by beauty_of_nature from Pixabay एक महात्मा कहीं जा रहे थे। रास्ते में वह आराम करने के लिये रुके। एक पेड़ के नीचे लेट कर सो गये। नींद में उन्होंने एक स्वप्न देखा कि वे रास्ते में जा रहे हैं और उन्हें एक व्यापारी मिला, जो पांच गधों पर बड़ी-बड़ी गठरियां लादे हुए जा रहा था। गठरियां बहुत भारी थी, जिसे गधे बड़ी मुश्किल से ढो पा रहे थे। साधु ने व्यापारी से प्रश्न किया - “इन गठरियों में तुमने ऐसी कौन-सी चीजें रखी हैं, जिन्हें ये बेचारे गधे ढो नहीं पा रहे हैं?” व्यापारी ने जवाब दिया - “इनमें इंसान के इस्तेमाल की चीजें भरी हैं। उन्हें बेचने मैं बाजार जा रहा हूँ।” साधु ने पूछा - “अच्छा! कौन-कौन सी चीजें हैं, जरा मैं भी तो जानूं।” व्यापारी ने कहा - “यह जो पहला गधा आप देख रहे हैं, इस पर अत्याचार की गठरी लदी है।” साधु ने पूछा - “भला अत्याचार कौन खरीदेगा?” व्यापारी ने कहा - “इसके खरीदार हैं राजा-महाराजा और सत्ताधारी लोग। काफी ऊंची दर पर बिक्री होती है इसकी।” साधु ने पूछा - “इस दूसरी गठरी में क्या है?” व्यापारी बोला - “यह गठरी अहंकार से लबालब भरी है और इसके...