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Showing posts from July, 2025

दूध की नदी

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  दूध की नदी         आजकल बहुत लोग सोचते है कि अगर कोई बूढ़ा इंसान है तो उसका कोई महत्त्व नहीं है। लेकिन आज आप लोगों को एक कहानी के माध्यम से बताना चाहता हूँ कि बुजुर्गों का महत्त्व  क्या है। तो चलिए दोस्तों! शुरू करते हैं आज की कहानी "दूध की नदी"।   एक बार की बात है, एक लड़का था, जिसका नाम “रवि“ था और वह एक शहर में नौकरी करता था। उसके साथ एक लड़की भी काम करती थी, जिसका नाम “कोमल“ था। काम करते-करते ये दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे और विवाह करने की सोची।  फिर इन दोनों ने अपने-अपने घर में यह बात बताई। लड़के के घर वाले बहुत खुले विचारों के थे, तो वे बहुत जल्दी मान गए। लेकिन लड़की के पिता को यह पसन्द नहीं था और जब लड़के के घरवाले लड़की के घर लड़की का हाथ मांगने पहुँचे, तो कोमल के पिता ने एक शर्त रख दी कि बारात में कोई भी बुजुर्ग व्यक्ति नहीं आएगा, बच्चों को अपने आप ही सब काम करने दो,,,.....तो सबने बिना विचारे उनकी वह शर्त मान ली और दोनों परिवार विवाह की तैयारी करने लगे। सब बहुत प्रसन्न थे क्योंकि आज वह दिन था, जब रवि और कोमल का विवाह होना था। सब त...

अरबपति स्टीव जॉब्स

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  अरबपति स्टीव जॉब्स  56 साल की उम्र में मरे अरबपति स्टीव जॉब्स के मृत्यु से पहले आखिरी शब्दः.. मैं व्यापार जगत में सफलता के शिखर पर पहुंच गया हूं। दूसरों की नज़र में मेरा जीवन एक उपलब्धि है। हालाँकि, काम के अलावा मुझे कोई खुशी नहीं थी। धन बस एक सच्चाई है, जिसका मैं आदी हो गया हूँ।   इस क्षण अस्पताल के बिस्तर पर लेटे हुए और अपने पूरे जीवन को याद करते हुए, मुझे एहसास होता है कि जिस पहचान और धन पर मुझे इतना गर्व था, वह मृत्यु के सामने फीकी और महत्वहीन हो गई है। आप अपनी कार चलाने या पैसे कमाने के लिए किसी को काम पर रख सकते हैं। लेकिन आप किसी को बीमारी सहने और मरने के लिए नहीं रख सकते। खोई हुई भौतिक वस्तुएं मिल सकती हैं। लेकिन एक चीज़ है, जो खो जाने पर कभी नहीं मिलती - “ज़िंदगी“।  हम अभी जीवन के जिस भी चरण में हैं, समय के साथ हमारा सामना उस दिन से होगा, जब जीवन का परदा बंद हो जाएगा। अपने परिवार, जीवनसाथी और दोस्तों से प्यार करें... उनके साथ अच्छा व्यवहार करें, उनके साथ छल- कपट, बेईमानी न करें। जैसे- जैसे हम बड़े और समझदार होते हैं, हमें धीरे-धीरे एहसास होता है कि हम 300 रुपए...

कान कटा गधा

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  कान कटा गधा एक बार की बात है, शेर को भूख लगी तो उसने लोमड़ी से कहा - मेरे लिए कोई शिकार ढूंढकर लाओ, अन्यथा मैं तुम्हें ही खा जाऊँगा। लोमड़ी एक गधे के पास गई और बोली - मेरे साथ शेर के समीप चलो क्योंकि वह तुम्हें जंगल का राजा बनाना चाहता है। गधा लोमड़ी के साथ चला गया। शेर ने गधे को देखते ही उस पर हमला कर दिया और उसके कान काट लिए, लेकिन गधा किसी प्रकार बच कर भागने में सफल रहा। तब गधे ने लोमड़ी से कहा - तुमने मुझे धोखा दिया। शेर ने तो मुझे मारने का प्रयास किया और तुम कह रही थी कि वह मुझे जंगल का राजा बनायेगा। लोमड़ी ने कहा - मूर्खता भरी बातें मत करो। शेर ने तुम्हारे कान इसीलिए काट लिए ताकि तुम्हारे सिर पर ताज सुगमता पूर्वक पहनाया जा सके, समझे! आओ, चलो, लौट चलें शेर के पास। गधे को यह बात ठीक लगी, इसलिए वह पुनः लोमड़ी के साथ चला गया। शेर ने फिर गधे पर हमला किया तथा इस बार उसकी पूँछ काट ली। गधा फिर लोमड़ी से यह कहकर भाग चला - तुमने मुझसे फिर झूठ कहा, इस बार शेर ने तो मेरी पूँछ भी काट ली। लोमड़ी ने कहा - शेर ने तो तुम्हारी पूँछ इसलिए काट ली ताकि तुम सिंहासन पर सहजता पूर्वक बैठ सको। चलो पुनः उसके...

मेरी कहानी

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 मेरी कहानी मेरा एक बेटा आई.ए.एस. है। एक बेटा डॉक्टर है और....एक बेटा प्रिन्सिपल है॥ पर....मैं कौन हूँ? रिटायरमेंट के बाद, जब जीवन में ख़ालीपन और अकेलापन आया, तब आत्मचिंतन की एक गहरी अनुभूति हुई। (कृपया ध्यान से पढ़ें और मनन करें...) तो बताता हूँ, मैं कौन हूँ? मैंने एक फ़्लैट ख़रीदा। एक बंगला बनाया। एक बड़ा सा फ़ार्म हाउस बनाया। फिर भी आज, चार दीवारों में क़ैद हूँ। साइकिल से शुरुआत की, फिर मोपेड, बाइक और कारों में चला। पर फिर भी आज, कमरे में नंगे पाँव चलता हूँ। प्रकृति मुस्कुराई और पूछा, “तुम कौन हो, मेरे मित्र?” मैंने गर्व से उत्तर दिया, “मैं... मैं हूँ।” मैंने राज्यों, देशों और विदेशों की यात्राएँ कीं। फिर भी आज मेरी यात्रा ड्राइंग रूम और रसोई तक सीमित है। मैंने अनेक संस्कृतियाँ और परंपराएँ समझीं। फिर भी आज, अपने ही परिवार को समझने की कोशिश करता हूँ। प्रकृति मुस्कुराई और पूछा, “तुम कौन हो, मेरे मित्र?” मैंने फिर गर्व से उत्तर दिया, “मैं... मैं हूँ।” मैंने जन्मदिन, सगाई और शादी को बड़े धूमधाम से, उत्सव जैसा बनाया। फिर भी आज किराने का बजट बनाता हूँ। कभी गायों और कुत्तों के लिए रोटियाँ बन...

स्वामी विवेकानंद और जर्मन दार्शनिक ड्यूसेन

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 स्वामी विवेकानंद और महान जर्मन दार्शनिक ड्यूसेन की भेंट यह पहली बार था जब ड्यूसेन को किसी हिन्दू योगी की एकाग्रता, बोध क्षमता और संयम की शक्ति का परिचय हुआ था। बात उस वक़्त की है, जब स्वामी विवेकानंद जर्मनी गए थे। अपने प्रवास के दौरान वे पॉल ड्यूसेन नाम के अत्यंत प्रभावशाली दार्शनिक और विद्वान के घर मेहमान थे। स्वामी विवेकानंद पॉल ड्यूसेन के अध्ययन कक्ष में बैठे हुए थे और दोनों में कुछ बातचीत हो रही थी। वहीं टेबल पर जर्मन भाषा में लिखी हुई एक किताब पड़ी हुई थी, जो संगीत के बारे में थी। इस किताब के बारे में ड्यूसेन ने विवेकानंद से काफी तारीफ़ें की थीं। स्वामीजी ने ड्यूसेन से वह किताब केवल एक घंटे के लिए देने के लिए कहा ताकि वे इसे पढ़ सकें। लेकिन विवेकनद की इस बात पर उस दार्शनिक को बहुत आश्चर्य हुआ। उनके आश्चर्य का कारण यह था कि एक तो वह किताब जर्मन भाषा में थी जो स्वामी विवेकानंद जानते नहीं थे। दूसरे वह किताब इतनी मोटी थी कि उसे पढ़ने में कई हफ्तों का समय चाहिए था। पॉल ड्यूसेन को विवेकानंद की इस बात का बुरा लगा क्योंकि वे खुद इस किताब को कई दिनों से पढ़ रहे थे और अभी आधा भी नहीं पढ़ पाय...

वीर सरदार भगत सिंह जी

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  वीर सरदार भगत सिंह जी भगत सिंह की बैरक की साफ-सफाई करने वाले भंगी का नाम बोघा था। भगत सिंह उसको बेबे (मां) कहकर बुलाते थे। जब कोई पूछता कि भगत सिंह! ये भंगी बोघा तेरी बेबे कैसे हुआ? तब भगत सिंह कहता - मेरा मल-मूत्र या तो मेरी बेबे ने उठाया, या इस भले पुरूष बोघे ने। बोघे में मैं अपनी बेबे (मां) देखता हूं। यह मेरी बेबे ही है। यह कहकर भगत सिंह बोघे को अपनी बाहों में भर लेता। भगत सिंह जी अक्सर बोघा से कहते - बेबे! मैं तेरे हाथों की रोटी खाना चाहता हूँ। पर बोघा अपनी जाति को याद करके झिझक जाता और कहता - भगत सिंह! तू ऊँची जात का सरदार, और मैं एक अदना सा भंगी, भगतां! तू रहने दे, ज़िद न कर। सरदार भगत सिंह भी अपनी ज़िद के पक्के थे। फांसी से कुछ दिन पहले जिद करके उन्होंने बोघे को कहा - बेबे! अब तो हम चंद दिन के मेहमान हैं, अब तो इच्छा पूरी कर दे! बोघे की आँखों में आंसू बह चले। रोते-रोते उसने खुद अपने हाथों से उस वीर शहीद ए आजम के लिए रोटिया बनाई और अपने हाथों से ही खिलाई। भगत सिह के मुंह में रोटी का ग्रास डालते ही बोघे की रुलाई फूट पड़ी। ओए भगतां! ओए मेरे शेरा! धन्य है तेरी मां, जिसने तुझे जन्...

गुरुवर की करुणा

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  गुरुवर की करुणा   एक बार एक व्यक्ति गुरुवर के पास गया और बोला, “प्रभु! मुझे दीक्षा देकर मेरा उद्धार करें, परंतु मेरी कुछ शर्तें हैं। कृपया मुझे निराश न करें।“  गुरुवर उसकी विनम्रता पर मुस्कराए और बोले, “ठीक है, मैं तुम्हें दीक्षा दूँगा। अपनी इच्छाएँ बताओ।“ वह व्यक्ति चरण स्पर्श कर बोला, “गुरुवर! मैं शराब नहीं छोड़ सकता, लेकिन भजन करना चाहता हूँ।“  गुरुवर ने शांत स्वर में पूछा, “और कोई इच्छा?“  वह झिझकते हुए बोला, “मैं चोटी भी नहीं रखना चाहता।“  गुरुवर ने मुस्कुराकर कहा, “और कुछ?“  वह व्यक्ति प्रसन्न होकर बोला, “नहीं, प्रभु! अब और कोई इच्छा नहीं है।“ गुरुवर ने प्रेमपूर्वक उसके मस्तक पर तिलक लगाया, गले में कंठी पहनाई और कानों में गुरु मंत्र देकर कहा, “आज से तुम्हें वैष्णव जीवन जीना है। मिथ्याचार और व्यभिचार छोड़कर प्रतिदिन कम से कम 40 मिनट ईश्वर का भजन करना है। साथ ही, जब भी तुम शराब पियो, उसका दुष्परिणाम मुझे समर्पित कर देना। तुम्हारे पापों का दंड मैं भोगूँगा।“ शिष्य भारी मन से घर लौटा। घर पहुँचते ही जब परिवार वालों ने उसके मस्तक पर तिलक और गले में कंठ...