गुरुवर की करुणा
गुरुवर की करुणा
एक बार एक व्यक्ति गुरुवर के पास गया और बोला, “प्रभु! मुझे दीक्षा देकर मेरा उद्धार करें, परंतु मेरी कुछ शर्तें हैं। कृपया मुझे निराश न करें।“
गुरुवर उसकी विनम्रता पर मुस्कराए और बोले, “ठीक है, मैं तुम्हें दीक्षा दूँगा। अपनी इच्छाएँ बताओ।“
वह व्यक्ति चरण स्पर्श कर बोला, “गुरुवर! मैं शराब नहीं छोड़ सकता, लेकिन भजन करना चाहता हूँ।“
गुरुवर ने शांत स्वर में पूछा, “और कोई इच्छा?“
वह झिझकते हुए बोला, “मैं चोटी भी नहीं रखना चाहता।“
गुरुवर ने मुस्कुराकर कहा, “और कुछ?“
वह व्यक्ति प्रसन्न होकर बोला, “नहीं, प्रभु! अब और कोई इच्छा नहीं है।“
गुरुवर ने प्रेमपूर्वक उसके मस्तक पर तिलक लगाया, गले में कंठी पहनाई और कानों में गुरु मंत्र देकर कहा, “आज से तुम्हें वैष्णव जीवन जीना है। मिथ्याचार और व्यभिचार छोड़कर प्रतिदिन कम से कम 40 मिनट ईश्वर का भजन करना है। साथ ही, जब भी तुम शराब पियो, उसका दुष्परिणाम मुझे समर्पित कर देना। तुम्हारे पापों का दंड मैं भोगूँगा।“
शिष्य भारी मन से घर लौटा। घर पहुँचते ही जब परिवार वालों ने उसके मस्तक पर तिलक और गले में कंठी देखी, तो उसे सम्मान की दृष्टि से देखने लगे। उसकी बातों का घर परिवार और समाज में महत्व बढ़ने लगा।
शुरू में उसने भजन करना शुरू किया, लेकिन धीरे-धीरे शराब पीने की इच्छा फिर से जाग उठी। एक दिन उसने शराब की बोतल खोली और गिलास भरकर मुँह से लगाया। उसी क्षण उसे गुरुवर का स्मरण हुआ और यह विचार आया कि उसके दुष्कर्म का दंड गुरुवर को सहना पड़ेगा।
गिलास उसके हाथ से छूट गया और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। अगले दिन वह गुरुवर के पास पहुँचा, चरणों में गिरकर रोने लगा।
गुरुवर ने पूछा, “क्या हुआ? क्या मैंने तुम्हें कठिन जीवन दे दिया?“
शिष्य बोला, “नहीं, प्रभु। आपने तो मुझे उद्धार का मार्ग दिया, लेकिन मैंने आपका ही जीवन संकट में डाल दिया। मेरे पापों का दंड आप क्यों सहें? यह मेरा अपराध है।“
गुरुवर मुस्कुराए और बोले, “सच्चे शिष्य की यही पहचान है कि वह गुरु की पीड़ा को अपनी समझने लगे। यही शरणागति का मार्ग है, जिसमें तुम्हारा उद्धार निश्चित है।“
गुरुवर का प्रभाव ऐसा होता है जैसे इत्र की सुगंध, जो पास से गुजर कर भी मनुष्य के व्यक्तित्व को सँवार देती है। उनके जीवन में आने से साधारण व्यक्ति का जीवन एक सुंदर झील के समान निर्मल और शांत हो जाता है।
इस प्रकार गुरुवर की करुणा और मार्गदर्शन ने उस शिष्य के जीवन को संवार दिया।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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